सिविल पुलिस को जीआरपी में तीन साल के लिए भेजने को चुनौती

Update: 2017-07-04 14:05 GMT

इलाहाबाद: प्रदेश के विभिन्न जिलों के सिविल पुलिस के सैकड़ों कांस्टेबलों, हेड कांस्टेबलों और उपनिरीक्षकों को जीआरपी में स्थानान्तरित करने के खिलाफ दाखिल याचिका पर हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार और पुलिस मुख्यालय से जवाब मांगा है।

मामले की सुनवाई सात जुलाई को होगी। प्रदेश भर के सैकड़ों स्थानान्तरित पुलिस कर्मियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर स्थानान्तरण को चुनौती दी है। हरिशंकर प्रसाद, हरिहर प्रसाद, राजकुमार सिंह आदि की याचिका पर न्यायमूर्ति अभिनव उपाध्याय सुनवाई कर रहे हैं।

याची के अधिवक्ता विजय गौतम ने बताया कि 21 जून 2017 को पुलिस उपमहानिरीक्षक कार्मिक और पुलिस महानिरीक्षक उत्तर प्रदेश द्वारा अलग अलग आदेश जारी कर सिविल पुलिस के हजारों कर्मचारियों का स्थानान्तरण जीआरपी में कर दिया गया। स्थानान्तरण आदेश में डीआईजी रेेंज से प्राप्त नामों के आधार पर तीन वर्ष के लिए जीआरपी में स्थानान्तरित किया गया है। तीन वर्ष की अवधि समाप्त होने पर सभी पुनः सिविल पुलिस में वापस आ जायेंगे।

याचीगण का कहना है कि स्थानान्तरण आदेश जारी करने से पूर्व उनकी सहमति नहीं ली गयी। याचीगण का नामांकन सक्षम अधिकारियों द्वारा नहीं किया गया तथा पिक एण्ड चूज की पालिसी अपनायी गयी है।

अधिवक्ता विजय गौतम ने कोर्ट को बताया कि पुलिस महानिदेशक लखनऊ ने 14 नवम्बर 14 को सर्कुलर जारी कर व्यवस्था दी है कि 47 वर्ष से अधिक आयु के पुलिस कर्मी जीआरपी में स्थानान्तरित नहीं किये जायेंगे तथा इच्छुक पुलिस कर्मियों का स्थानान्तरण ही किया जाए। इस सर्कुलर का पालन स्थानान्तरण करते समय नहीं किया गया। कोर्ट ने सात जुलाई तक इस मामले में यथास्थिति से अवगत कराने के लिए कहा है।

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