UP News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा-यूपी के धर्मांतरण विरोधी कानून का मकसद धर्मनिरपेक्षता की भावना को बनाए रखना

UP News: हाईकोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 का मकसद सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देना है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2024-08-13 10:51 IST

Allahabad High Court   (photo: social media )

UP News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यौन शोषण और जबरन इस्लाम कबूल कराने के आरोपी की जमानत खारिज करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान अपना धर्म मानने और उसका प्रचार करने का अधिकार तो जरूर देता है,लेकिन यह धर्म परिवर्तन करने के सामूहिक अधिकार में तब्दील नहीं होता। जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की एकल पीठ ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की है।

हाईकोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 का मकसद सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देना है। यह अधिनियम भारत की सामाजिक सद्भावना को दर्शाता है। इस अधिनियम का उद्देश्य देश में धर्मनिरपेक्षता की भावना को बनाए रखना है।

झूठे मामले में फंसाने की दलील

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यौन शोषण एवं जबरन इस्लाम कबूल कराने के आरोपी अजीम की जमानत अर्जी खारिज करते हुए यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। जमानत याचिका दायर करने वाले अजीम के विरुद्ध लड़की को जबरन इस्लाम कबूल कराने और उसका यौन शोषण करने के आरोप में धारा 323/504/506 आईपीसी और धारा 3/5(1) उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के तहत मामला दर्ज है। याची की ओर से दलील दी गई कि उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया है।

आरोपी अजीम ने यह भी दावा किया कि पीड़िता उसके साथ रिश्ते में थी और उसने स्वेच्छा से अपना घर छोड़ा था। पीड़िता धारा 161 और 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज कराए गए अपने बयानों में शादी की पुष्टि भी कर चुकी है।

इस्लाम अपनाने के लिए डाला गया दबाव

सरकारी वकील ने याची की ओर से दाखिल जमानत का विरोध किया। सरकारी वकील ने धारा 164 सीआरपीसी के तहत सूचना देने वाले के बयान का हवाला भी दिया। इसमें धर्म परिवर्तन करके इस्लाम अपनाने के लिए दबाव डालने का उल्लेख किया गया था। बयान में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि याची और उसके परिवार के सदस्य पीड़िता को इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर कर रहे थे।

इसके साथ ही बकरीद के दिन उसे पशु बलि देखने और मांसाहारी भोजन पकाने व खाने के लिए भी मजबूर किया गया था। यह भी कहा था कि आवेदक ने उसे कथित तौर पर बंदी बनाकर रखा था और परिवार के सदस्यों की ओर से पीड़िता को कुछ इस्लामी अनुष्ठान करने के लिए भी मजबूर किया गया।

हाईकोर्ट ने खारिज की जमानत याचिका

सरकारी वकील की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने माना कि याची यह प्रदर्शित करने के लिए कोई भी सामग्री रिकॉर्ड पर नहीं ला सका कि विवाह/निकाह से पहले सूचना दी गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2021 के अधिनियम की धारा 3 और 8 का प्रथम दृष्टया उल्लंघन बताते हुए याची की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया।

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