बिजली विभाग पर एक लाख हर्जाना, पैसा केरल बाढ़ पीड़ित राहत कोष में भेजने का निर्देश

Update:2018-08-29 19:14 IST

इलाहाबाद : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गढ़मुक्तेश्वर हापुड़ के विद्युत विभाग पर एक लाख रूपये हर्जाना लगाया है और कहा है कि हर्जाना राशि महानिबंधक के नाम से जमा की जाए और वह यह राशि केरल बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष में भेजी जाए। याचिका की अगली सुनवाई 11 सितम्बर को होगी।

यह आदेश न्यायमूर्ति शशिकांत गुप्ता तथा न्यायमूर्ति अजित कुमार की खण्डपीठ ने गौरव शर्मा की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने बिजली विभाग के खिलाफ याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। अंतिम अवसर देने के बाद भी जब जवाब दाखिल नहीं हुआ तो कोर्ट ने अधिशासी अभियंता को तलब कर लिया। कोर्ट के निर्देश पर अधिशासी अभियंता राकेश कुमार पेश हुए और सफाई दी कि उन्होंने 25 मई 18 को चार्ज संभाला है।

कोर्ट ने आदेश का पालन न करने के स्पष्टीकरण को संतोषजनक नहीं माना और कहा कि इसी नहीं ऐसे कई मामलों में बिजली विभाग जवाबी हलफनामा दाखिल करने में ढिलाई बरतता है। ऐसा करना लोक न्याय व्यवस्था व लोक सम्पत्ति के खिलाफ है। वस्तुतः समय से हलफनामा दाखिल न करना सिस्टम को फेल करना है। यह लोगों का सिस्टम से विश्वास घटाने वाला है। कोर्ट ने कहा कि बिजली विभाग की लापरवाही लोक समय व धन की बर्बादी करने वाली है। कोर्ट ने विभाग द्वारा देरी से दाखिल जवाबी हलफनामा को एक लाख रूपये हर्जाना जमा करने की शर्त पर स्वीकार कर लिया है। याची को भी इसका जवाब दाखिल करने का समय दिया है। कोर्ट ने बिजली विभाग को हर्जाना राशि बैंक ड्राफ्ट के मार्फत 11 सितम्बर तक महानिबंधक के नाम से जमा करना है। जो इसे केरल बाढ़ पीड़ितों की सहायताकोष में भेजेंगे।

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हाईकोर्ट ने वकील का कोर्ट में गाउन, बैंड उतरवाया, दूसरे वकील के रोल पर कर रहा था बहस

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मुकदमे की सुनवाई के दौरान उस समय सकते में आ गयी जब एक वकील ने कोर्ट को बहस कर रहे वकील के बारे में बताया कि उसके एडवोकेट रोल का बिना अनुमति प्रयोग कर बहस कर रहे मेरे नाम के वकील कोर्ट को गुमराह कर रहे हैं।

वकील जितेन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि अपील में दर्ज एडवोकेट रोल मेरा है जिसका गलत इस्तेमाल हो रहा है। कोर्ट ने दूसरे के एडवोकेट रोल पर बहस करने वाले वकील जितेन्द्र कुमार सिंह को अगले आदेश तक किसी भी न्यायालय में बहस करने पर रोक लगा दी है और महानिबंधक को इस मामले की विस्तृत जांचकर 14 सितम्बर 18 को सील कवर लिफाफे में रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। साथ ही अपील की पत्रावली भी सील कर दी है और कहा कि इसे कोई न खोले।

कोर्ट ने अधिवकता जितेन्द्र कुमार सिंह का गाउन व बैण्ड उतरवा लिया और पुलिस अभिरक्षा में लेकर कोर्ट रूम 51 से महानिबंधक कार्यालय तक ले जाने का निर्देश दिया तथा महानिबंधक को प्रारंभिक पूछताछ कर छोड़ देने को कहा है और बहस करने वाले वकील जितेन्द्र कुमार को हाजिर होने का निर्देश दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति विपिन सिन्हा तथा न्यायमूर्ति इफाकत अली खान की खण्डपीठ ने रामगोपाल की अर्जी पर दिया है। मालूम हो कि सुबह दस बजे जब केस पुकारा गया तो अधिवक्ता जितेन्द्र कुमार सिंह ने बहस शुरू ही की थी कि दूसरे अधिवक्ता जितेन्द्र कुमार सिंह ने आपत्ति की कि असली जितेन्द्र सिंह वह है जो वकील बहस कर रहे हैं उन्होंने एडवोकेट रोल का गलत इस्तेमाल किया है। इससे पहले भी ये 8 से 10 बार ऐसा कर चुके हैं।

कोर्ट ने जब पूछताछ शुरू की तो विरोधाभासी बयान दिये। कहा मुंशी की गलती से रोल लिख गया। फाइल कवर पर रोल प्रिंट होने की बात पर कहा कि उनका रोल स्थायी पता न होने के कारण अस्वीकार कर दिया गया। किन्तु उसका 1999 का बार कौंसिल में पंजीकरण है। परिचय पत्र कोर्ट ने फाइल में ले लिया। कोर्ट आफिसर, महानिबंधक व निबंधक शिष्टाचार को बुलाया और पुलिस अभिरक्षा में महानिबंधक कार्यालय में भेज दिया। कोर्ट ने महानिबंधक को विस्तृत जांच रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है।

नगर निगम घोटाला-तीन माह में एसआईटी जांच पूरी करने का निर्देश, दोषी अधिकारियों पर हो कार्यवाही

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इलाहाबाद नगर निगम पेंशन घोटाले की जांच कर रही एसआईटी को तीन माह में जांच पूरी करने तथा घोटाले के दोषी पाये जाने पर अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने का निर्देश दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति एस.पी. केशरवानी ने गबन राशि की वसूली व पेंशन आदि जब्त करने के आदेश के खिलाफ सहायक एकाउन्टेंट राज बहादुर माथुर की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। मालूम हो कि 16 फरवरी 1985 से 30 जून 1995 के दौरान पेंशन मद में करोड़ों का भुगतान कर अधिकारियों ने हजम कर लिया। 1999 की आडिट रिपोर्ट में इस घोटोले का खुलासा हुआ। चार करोड़ 75 लाख 80 हजार रूपये की बंदरबांट कर ली गयी। 900 पेंशनर थे और 2800 लोगों को पेंशन का भुगतान कर दिया गया। कई लोगों को एक से अधिक बार एक समय में भुगतान किया गया। सेन्ट्रलाइज्ड कैडर सहित निगम के 19 अधिकारियों की जांच की गयी। के.के.शर्मा को दोषी करार दिया, प्रतिकूल प्रविष्टि सहित दो इन्क्रीमेंट रोक दिये गये। याची पर भी कार्यवाही की गयी।

कोर्ट ने करोड़ों के घोटाले की जांच एक से दूसरी एजेंसी को सौंपने व जांच लटकाये रखने की आलोचना की और कहा कि विजिलेन्स ने अधिकारियों को बचाने का प्रयास किया। घटना की प्राथमिकी भी दर्ज करायी गयी। पुलिस को जांच करने नहीं दिया गया। नौ साल बाद विजिलेन्स रिपोर्ट शासन को भेजी गयी, मुख्य सचिव ने 13 दिसम्बर 1917 को हाईपावर कमेटी गठित कर दी। 19 आरोपियों में से 11 की मौत हो चुकी है, बचे 8 आरोपियों में से 7 सेवानिवृत्त हो चुके हैं। 31 मई 2018 को प्रमुख सचिव नगर विकास ने एसआईटी जांच बैठा दी है। एसआईटी को कहा गया है कि वह जीवित आरोपियों का पता लगाये, जीवित आरोपियों की सम्पत्ति की जांच करे। कोर्ट ने कहा कि सरकार एसआईटी से जांच करा रही है। किन्तु जांच का अन्त हो और तीन माह में जांच पूरी कर तुरन्त दोषियों पर कार्यवाही की जाय।

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