चुनाव परिणामों में दिखा मोदी-योगी का असर, केवल 34 मुस्लिम चेहरे जीते हैं विधानसभा चुनाव
Muslim MLA in UP 2022 : 2014 लोकसभा चुनाव में Brand Modi आने के बाद से मुस्लिम समुदाय की लोकसभा से लेकर विधानसभा तक में नुमाइंदगी कम होती जा रही है।
देश की आजादी के बाद हर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय (Muslim community) एक बड़ा वोट बैंक रहा है। सभी राजनीतिक दलों की निगाहें इन पर रही है। लेकिन, साल 2014 के लोकसभा चुनाव में 'ब्रांड मोदी' (Brand Modi) आने के बाद से मुस्लिम समुदाय की लोकसभा से लेकर विधानसभा तक में नुमाइंदगी कम होती जा रही है।
विधानसभा चुनाव 2022 में भी केवल 34 मुस्लिम प्रत्याशी ही चुनाव जीतने में कामयाब रहे। सबसे अधिक 67 मुस्लिम विधायक 2012 के विधानसभा चुनाव में उस समय जीत कर आए थे जब प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी।
इस बार जीते सभी 34 मुस्लिम विधायक सपा गठबंधन से
प्रदेश में 147 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम मतदाता किसी भी दल के उम्मीदवार की हार-जीत का फैसला करने की हैसियत रखता है। हालांकि, इस बार पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में 10 मुस्लिम विधायक ज्यादा जीते हैं। फिर भी, यूपी विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की मौजूदगी के सुनहरे अतीत से काफी दूर है। इस बार जीतने वाले मुस्लिम प्रत्याशियों की कुल संख्या 34 है। ये सभी सपा गठबंधन के हैं। इनमें अमरोहा से महबूब अली, बहेड़ी से अताउर रहमान, बेहट से उमर अली खान, भदोही से जाहिद, भोजीपुरा से शहजिल इस्लाम, बिलारी से मो. फहीम, चमरौआ से नसीर अहमद, गोपालपुर से नफीस अहमद, इसौली से मो. ताहिर खान, कैराना से नाहिद हसन, कानपुर कैंट से मो. हसन, कांठ से कमाल अख्तर, किठौर से शाहिद मंजूर, कुंदरकी से जिया उर रहमान, लखनऊ पश्चिम से अरमान खान, मटेरा से मारिया शाह, मऊ से अब्बास अंसारी, मेरठ से रफीक अंसारी, महमूदाबाद से सुहेब उर्फ मन्नू अंसारी, मुरादाबाद ग्रामीण से मो. नासिर, नजीबाबाद से तस्लीम अहमद, निजामाबाद से आलम बदी, पटियाली से नादिरा सुल्तान, रामनगर से फरीद मो. किदवई, रामपुर से मो. आजम खान, संभल से इकबाल महमूद, सिकंदरपुर से जियाउद्दीन रिजवी, सीसामऊ से हाजी इरफान सोलंकी, सिवालखास से गुलाम मोहम्मद, स्वार से मो. अब्दुल्ला आजम, ठाकुरद्वारा से नवाब जान, थानाभवन से अशरफ अली, डुमरियागंज से सैय्यदा खातून और सहारनपुर से आशु मलिक शामिल हैं।
एक नजर इतिहास पर
प्रदेश के राजनीतिक इतिहास को पलटें, तो वर्ष 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में 44 मुस्लिम विधायक जीते थे। वर्ष 1957 में यह संख्या घटकर 37 रह गई थी। उसके बाद वर्ष 1962 के विधानसभा चुनाव में 29 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की। जबकि वर्ष 1967 में यह संख्या घटकर 24 पर आ टिकी। इस चुनाव में मुसलमानों की कम नुमाइंदगी को देखते हुए अल्पसंख्यक मतदाताओं ने वर्ष 1969 के चुनाव में 34, 1974 में 40, 1977 में 48, 1980 में 49 और 1985 में 50 उम्मीदवारों को जिताकर विधानसभा भेजा।
..फिर बनने लगी अलग रणनीति
मुस्लिम मतदाताओं की एकजुटता को देखकर राजनीतिक दलों ने इस वोट बैंक को साधने के लिए अलग रणनीति बनानी शुरू कर दी। मुस्लिम वोट बैंक पर कई दलों की दावेदारी से यह वोट बैंक भी बिखरने लगा। जिसका नतीजा ये हुआ, कि वर्ष 1989 में मुस्लिम विधायकों की संख्या 50 से घटकर 41 पर पहुंच गयी। साल 1991 में 'मंडल और मंदिर' आंदोलन की राजनीति ने मुस्लिम वोटों की राजनीति को हाशिये पर डाल दिया। जिसके बाद मुस्लिम विधायकों की संख्या 23 पर आकर सिमट गई।
2012 में सर्वाधिक 64 मुस्लिम विधायक पहुंचे सदन
इसके बाद के विधानसभा चुनावों में प्रदेश की राजनीति में मुलायम सिंह, कांशीराम, बेनी प्रसाद वर्मा और सोने लाल पटेल जैसे नेता जातियों की राजनीति को मुख्य धारा में ले आए और मुस्लिम वोट बैंक इन जातीय नेताओं के साथ जुड़कर अपने को मजबूत समझने लगा। लेकिन, विधानसभा में इनकी संख्या में कोई खास इजाफा नहीं हुआ। वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में मुसलमानों ने अपनी घटती नुमाइंदगी को संदीजगी से लिया। जिसके चलते उनके 44 विधायकों ने जीत दर्ज की। वर्ष 2007 में यह संख्या बढ़कर 57 तक पहुंच गई। इस चुनाव में बसपा को पूर्ण बहुमत मिला था। लेकिन वर्ष 2012 में हुए चुनाव में उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 68 विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे। वर्ष 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे के बाद प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक का समीकरण पूरी तरह से बदल गया। पहले वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव तथा 2017 के विधानसभा चुनाव तथा वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मुसलमानों की वोट बैंक की ताकत कम हुई है। दरअसल, प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम समुदाय के वोटों का रंग तभी खिलता है जब उसके साथ अन्य जातियां भी मिल जाती हैं।