1986 के बाद राजनीतिक मुद्दा बना अयोध्या विवाद, जानिए इतिहास
अयोध्या का वर्षों पुराना विवाद चर्चा में तब आया जब 25 जनवरी 1986 को वकील उमेश चन्द्र पांडे ने फैजाबाद अदालत में दावा दायर किया कि श्री रामजन्मभूमि पर लगा ताला अनाधिकृत है। मुंसिफ ने जब अपने आदेश में ताला खोलने से इंकार कर दिया, तो आदेश के खिलाफ जिला न्यायाधीश की अदालत में अपील की गयी।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: अयोध्या का वर्षों पुराना विवाद चर्चा में तब आया जब 25 जनवरी 1986 को वकील उमेश चन्द्र पांडे ने फैजाबाद अदालत में दावा दायर किया कि श्री रामजन्मभूमि पर लगा ताला अनाधिकृत है। मुंसिफ ने जब अपने आदेश में ताला खोलने से इंकार कर दिया, तो आदेश के खिलाफ जिला न्यायाधीश की अदालत में अपील की गयी। इसके बाद एक फरवरी को जिला अदालत के मुख्य न्यायधीश कृष्ण मोहन पांडे ने सुनवाई के पश्चात ताला खोलने के आदेश दिए।
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तब मो. हासिम ने इस फैसले के खिलाफ अपील की और इसके बाद मुस्लिम समाज ने कांग्रेस के खिलाफ नाराजगी व्यक्त करते हुए काला दिवस मनाया। कई जगह आगजनी व हिंसा हुई। इसका राजनीतिक परिणाम यह रहा कि मुसलमान कांग्रेस से नाराज हो गया और 1989 के चुनाव में कांग्रेस प्रदेश की सत्ता से बेदखल हो गयी।
अयोध्या विवाद का अगला पडाव उस समय आया जब राम मंदिर निर्माण के लिए उमड़े हुजूम को रोकने के लिए मुलायम सरकार के आदेश पर पहले 30 अक्टूबर और बाद में 2 नवंबर 1990 को पुलिस ने लाठियां बरसाकर कारसेवकों को रोकना चाहा, लेकिन जब कारसेवक नहीं रूके तो उन पर गोली चलाने का आदेश दिया। इस घटना का परिणाम यह रहा कि केंद्र में वीपी सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने विश्वास मत खो दिया और चन्द्रशेखर ने प्रधानमंत्री का पद संभाला।
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चंद्रशेखर ने एक दिसम्बर 1990 को मुलायम सरकार की तरफ से की गयी कार्यवाही को उचित बताया। इसके बाद 1991 के विधानसभा चुनाव में मुलायम का सूपड़ा साफ हो गया और 24 जून 1991 को प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा सरकार का गठन हुआ।
कल्याण सिंह की सरकार के गठन होते ही हिन्दूवादी ताकतें सक्रिय हो गईं। 29 और 30 नवम्बर 1992 को नई दिल्ली में पंचम धर्म संसद की बैठक में इस विवाद का समाधान न होने पर 6 दिसम्बर को पुन: अयोध्या में कारसेवा करने की घोषणा कर दी गयी।
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परिणाम यह रहा कि इस दिन देश भर से अयोध्या आये उन्मादी कारसेवकों ने बाबरी ढांचे का विध्वंस कर दिया जिसके बाद केन्द्र सरकार ने यूपी के अलावा भाजपा शासित तीन अन्य राज्यों हिमाचंल प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश की सरकारों को बर्खास्त कर दिया।