526 करोड़ की लागत से बाबा दरबार से गंगा तट तक प्रस्तावित बीस फीट चौड़े पाथवे का व्यापक विरोध
आशुतोष सिंह
वाराणसी: गंगा किनारे बसी बाबा विश्वनाथ की नगरी को घाटों और गलियों का शहर कहा जाता है। यहां जितने घर हैं उतने मंदिर। कहते हैं काशी के कंकड़-कंकड़ में शिव का वास है। यहां भारत की सभी संस्कृतियां, परंपराएं लघु-दीर्घ रूप में जरूर मिलेंगे और यही इसकी खासियत है। इतने पुराने शहर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपना संसदीय क्षेत्र बनाया है। यह जितना पुराना शहर है, यहां उतनी समस्याएं मुंह बाए खड़ी है।
मोदी की हसरत है कि बाबा विश्वनाथ के दरबार का कायाकल्प किया जाए। बाबा का दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं और मां गंगा के बीच का फासला कम करने के साथ ही इसे आसान भी बनाया जाए। इसी के तहत गंगा पाथवे योजना बनाई गई। 526 करोड़ की इस योजना के तहत बाबा दरबार से गंगा तट तक बीस फीट चौड़ा पाथवे बनाया जाना है, लेकिन इसका व्यापक विरोध शुरू हो गया है।
धरोहर को ध्वस्त करने की तैयारी
इसके लिए प्रदेश शासन से चालीस करोड़ रुपये जारी भी किए जा चुके हैं। हालांकि यह सपना तभी साकार हो पाएगा जब विश्वनाथ गली की कई धरोहर को ध्वस्त किया जाए। पक्के महाल के नाम से मशहूर इस इलाके के 167 घरों को जमींदोज किए बगैर योजना परवान नहीं चढ़ सकती। बाबा के सानिध्य में रहने वाले यहां के नागरिकों ने इसी कारण अपने आशियाने को बचाने के लिए विरोध शुरू कर दिया है। धरोहर बचाओ संघर्ष समिति के तत्वावधान में लोगों ने जिला प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
विधानपरिषद में गूंजा मामला
यह आवाज अब राजनीतिक रंग भी लेने लगी है। योजना के बहाने विरोधी बीजेपी सरकार को घेरने में जुट गए हैं। इस कड़ी में समाजवादी पार्टी आगे दिख रही है। सपा नेताओं ने इस योजना को वाराणसी की धरोहर के साथ छेड़छाड़ बताया है। समाजवादी पार्टी के एमएलएसी शतरुद्र प्रकाश ने पिछले दिनों विधानपरिषद में गंगा पावन पथ परियोजना पर सवाल उठाए। शतरुद्र प्रकाश के मुताबिक बाबा विश्वनाथ मंदिर से गंगा तट तक बीस फीट चौथा कॉरिडोर बनाने को लेकर वीडीए की ओर से सर्वे किया जा रहा है। इस प्रस्तावित कॉरिडोर के अन्तर्गत दो सौ साल पुराने मकान, पौराणिक मंदिर, 56 विनायकों में से अनेक विनायक, दुकानें आदि सबकुछ आ रहे हैं। इस प्रस्तावित योजना से हजारों लोग अपने घरों से बेदखल हो जाएंगे।
तेज होने लगा है बाशिंदों का विरोध
क्षेत्रीय निवासी राजनाथ तिवारी ने बताया कि हाल में कुछ अति महत्वाकांक्षी तत्वों के साथ विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने न्यास की ओर से विश्वनाथ को गंगा दर्शन का नया शिगूफा छोड़ा है। इस तरह की खबरें की जा रही हैं कि विश्वनाथ मंदिर से लगायत ललिता घाट तक की बस्ती साफ कर दी जाएगी। गंगा को मंदिर के द्वार तक लाया जाएगा। 166 भवनों की पहचान भी कर ली गई। बिना सरकारी अनुमति के मकानों की नपाई भी की जा रही है। वे बताते हैं कि इस योजना के निर्माताओं को न तो दुनिया के इस प्रचीनतम जिंदा शहर के भूगोल की जानकारी है और न वे इसकी ऐतिहासिक- सांस्कृतिक विरासत से ही अवगत हैं। जिस बस्ती को जमींदोज करने की बात चल रही है वह त्रिशूल पर बसी काशी के मध्य त्रिशूल यानी विंध्य पर्वत माला की तीन छोटी पहाडिय़ों में एक विश्वेश्वर पर स्थित है।
प्रमुख मांगें
. सभी धरोहरों की सुरक्षा और संरक्षण की समुचित व्यवस्था हो।
. धरोहरों को हेरिटेज की श्रेणी में लाए जाने की दिशा में प्रयास किए जाएं।
. प्रस्तावित बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर और गंगा पाथवे जैसी गैरकानूनी योजनाओं को तत्काल खारिज किया जाए। इसके साथ ही मकानों को चिन्हीकरण बंद किया जाए।
. भविष्य में ऐसी योजनाएं बनाते वक्त माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों और सरकार की ओर से दाखिल शपथपत्रों को संज्ञान में रखा जाए।
. गंगा के 200 मीटर के दायरे में किसी भी प्रकार का नया निर्माण प्रतिबंधित हो।
. वाराणसी नगर के विकास की कोई भी योजनाएं बनाए जाने से पहले उस पर नगर निगम की बैठक में संस्तुति लिया जाना अनिवार्य हो।
. समुचित वेंडिंग जोन बनाकर 24 हजार से अधिक ठेला-पटरी दुकानदारों की आजीविका सुनिश्चित की जाए।