Mayawati Birthday: चार बार संभाली यूपी की कमान मगर अब सियासी वजूद बचाने की चुनौती

Mayawati Birthday: मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को दिल्ली में हुआ था। मायावती के पिता का नाम प्रभुदयाल और मां का नाम रामरती था। मायावती का पैतृक गांव बादलपुर उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जिले में स्थित है।;

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2025-01-15 10:49 IST

Mayawati Birthday  (photo: social media )

Mayawati Birthday: बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती सियासी मैदान में लगातार फेल साबित हो रही हैं। बसपा के संस्थापक कांशीराम से प्रभावित होने के बाद सियासी मैदान में उतरने वाली मायावती चार बार मुख्यमंत्री के रूप में उत्तर प्रदेश की कमान संभाल चुकी हैं। 15 जनवरी 1956 को पैदा होने वाली मायावती का आज जन्मदिन है और इस मौके पर पार्टी की ओर से प्रदेश भर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। राजनीति के मैदान में सक्रिय होने के बाद से ही मायावती प्रमुख सियासी किरदार बनी हुई है। दलित वोट बैंक पर मायावती की मजबूत पकड़ मानी जाती रही है और इसी कारण मायावती हर चुनाव में काफी अहम फैक्टर बनकर उभरती रही हैं।

वैसे पिछले कई चुनावों से मायावती अपनी सियासी ताकत दिखाने में नाकाम साबित हुई है। यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव और फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है। समर्थकों के बीच बहन जी के नाम से जानी जाने वाली मायावती के लिए यूपी में 2027 की जंग काफी अहम मानी जा रही है। जानकारों का मानना है कि इस चुनाव में फेल होने के बाद मायावती के सियासी वजूद पर संकट खड़ा हो जाएगा।

कांशीराम से मुलाकात के बाद बदल गई जिंदगी

मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को दिल्ली में हुआ था। मायावती के पिता का नाम प्रभुदयाल और मां का नाम रामरती था। मायावती का पैतृक गांव बादलपुर उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जिले में स्थित है। मायावती 6 भाई और दो बहन हैं। मायावती की मां ने अनपढ़ होने के बावजूद अपने बच्चों की पढ़ाई में खासी दिलचस्पी ली। मायावती ने 1975 में दिल्ली के कालिंदी कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद 1976 में उन्होंने गाजियाबाद के वीएमएलजी कॉलेज से बीएड की डिग्री ली। बाद में उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की।

शिक्षा पूरी करने के बाद मायावती ने शिक्षिका के रूप में भी काम किया मगर इसी दौरान मायावती की मुलाकात कांशीराम से हुई जिसके बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई। मायावती के पिता उन्हें आईएएस बनाना चाहते थे और वे अपनी बेटी पर कांशीराम के इस असर को देखकर खुश नहीं थे मगर मायावती धीरे-धीरे कांशीराम के मिशन के साथ जुड़ती चली गईं। बाद में उन्होंने सियासी मैदान में कदम रखा। सियासी मैदान में सक्रिय होने के बाद मायावती ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।


चार बार बनीं यूपी की मुख्यमंत्री

सियासी मैदान में उतरने के साथ ही मायावती ने महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरू कर दी थी। मायावती ने 1989 में पहली बार लोकसभा का चुनाव जीता। इसके बाद वे 1998, 1999 और 2004 का लोकसभा चुनाव जीतने में भी कामयाब रहीं। 1994 में वे पहली बार राज्यसभा के लिए चुनी गई थीं। उन्होंने भाजपा के सहयोग से 3 जून 1995 को पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली। इसके बाद 18 अक्टूबर 1995 तक वे प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। 21 मार्च 1997 को वे फिर दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनीं। मायावती को 3 मई 2002 को तीसरी बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।

2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती की अगुवाई में बसपा ने उत्तर प्रदेश में अपनी ताकत दिखाई थी। 12 मई 2007 को चौथी बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती ने मुख्यमंत्री के रूप में पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। मुख्यमंत्री के रूप में कानून व्यवस्था को लेकर मायावती ने काफी सख्त तेवर अपनाया था जिसकी मिसाल आज तक दी जाती है। इस तरह मायावती अभी तक सियासी नजरिए से काफी अहम माने जाने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की चार बार कमान संभाल चुकी हैं।


2012 के चुनाव से कमजोर पड़ीं मायावती

उत्तर प्रदेश में 2012 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद मायावती सियासी रूप से काफी कमजोर दिखी हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने 224 सीटों पर जीत हासिल करके प्रदेश में सरकार बनाई थी जबकि बसपा 80 सीटों पर सिमट गई थी। भाजपा को 47 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि कांग्रेस 28 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी।

2017 का विधानसभा चुनाव मायावती के लिए और भी खराब रहा। 2017 के चुनाव में भाजपा गठबंधन ने 324 सीटों पर जीत हासिल करके प्रचंड बहुमत हासिल किया था। भाजपा को 311 सीटों पर जीत मिली थी जबकि सहयोगी दलों अपना दल ने 9 और सुभासपा ने 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। सपा-कांग्रेस गठबंधन को 54 सीटों पर जीत मिली थी जबकि बसपा 19 सीटों पर सिमट गई थी।

2022 के विधानसभा चुनाव में मायावती की कमजोर होती पकड़ पर पूरी तरह मुहर लगा दी। 2022 के चुनाव में भाजपा गठबंधन को 273 सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि सपा गठबंधन 125 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की। कांग्रेस को दो सीटों पर कामयाबी मिली जबकि बसपा सिर्फ एक सीट ही जीत सकी।


लोकसभा चुनाव में भी फेल हो गईं मायावती

यदि लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखा जाए तो उससे भी साबित होता है कि मायावती की पकड़ लगातार कमजोर पड़ती जा रही है। 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा 20 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में मोदी लहर ने ऐसा असर दिखाया कि बसपा का खाता तक नहीं खुल सका। मायावती के लिए 2014 का लोकसभा चुनाव बड़ा सियासी झटका था।

उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़ी हार के बाद मायावती ने 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया। सपा से गठबंधन करने का मायावती को फायदा भी मिला और बसपा 2019 के चुनाव में 10 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। मायावती की जीत में सपा से हाथ मिलाने का भी खासा असर रहा,लेकिन चुनाव के बाद सपा से बसपा का गठबंधन टूट गया।


2024 के चुनाव में नहीं खुल सका खाता

2024 के लोकसभा चुनाव में मायावती के सामने ताकत दिखाने की बड़ी चुनौती थी मगर इस चुनाव में भी मायावती पूरी तरफ फ्लॉप साबित हुईं। 2024 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने प्रदेश की उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे मगर पार्टी एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हुई। बसपा का खाता खुलने की बात तो दूर, किसी भी सीट पर बसपा का प्रत्याशी दूसरे नंबर पर भी नजर नहीं आया।

2024 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने किसी भी दल के साथ गठबंधन से पहले ही इनकार कर दिया था। उन्होंने अपने दम पर ताकत दिखाने की बात कही थी मगर मायावती को इस चुनाव में लगभग 9.39 फीसदी वोट मिले, जो बसपा के गठन से अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है। बसपा ने जब 1989 में अपना पहला चुनाव लड़ा था,तब भी बसपा को 9.90 फीसदी वोट मिले थे और उसने लोकसभा की दो सीटों पर जीत हासिल की थी।


अब 2027 में बसपा के सामने बड़ी चुनौती

उत्तर प्रदेश में अब 2027 में विधानसभा चुनाव होने वाला है। दलित,मुस्लिम और अति पिछड़ा गठजोड़ मायावती की बड़ी ताकत रहा है मगर यदि प्रदेश के पिछले चुनावों को देखा जाए तो यह वोट बैंक मायावती के हाथ से छिटकता दिख रहा है। प्रदेश के मौजूदा सियासी हालात को देखते हुए मायावती का किसी भी दूसरे राजनीतिक दल से गठबंधन होता नहीं दिख रहा है।

सपा से उनका गठबंधन पहले ही टूट चुका है और भाजपा व कांग्रेस पर वे हमलावर रुख अपनाती रही हैं। ऐसे में मायावती के सामने अकेले दम पर 2027 में अपनी ताकत दिखाने की बड़ी चुनौती है।


सियासी वजूद पर मंडराने लगा खतरा

अभी तक मायावती युवाओं को अपनी पार्टी से जोड़ने में विफल साबित हुई हैं। दलित-मुस्लिम वोट बैंक भी उनसे छिटकता हुआ नजर आ रहा है। सियासी जानकारों का मानना है कि यदि मायावती 2027 के चुनाव में अपनी ताकत नहीं दिखा सकीं तो उनका सियासी वजूद खतरे में पड़ जाएगा।

चुनाव के दौरान मायावती की निष्क्रियता पर भी पहले से ही सवाल उठते रहे हैं। अब यह देखने वाली बात होगी कि आने वाले दिनों में मायावती अपनी ताकत दिखाने में कहां तक कामयाब हो पाती हैं।

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