Chitrakoot: चित्रकूट में पाठा के घनघोर जंगल में 82 राज गिद्धों का बसेरा
Chitrakoot: धर्मनगरी चित्रकूट की जिस पावन धरा में भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल का सर्वाधिक समय बिताया है, उसी विंध्य पर्वत की श्रंखलाओं व घनघोर जंगलों से घिरी धरा में जटायु प्रजाति के राज गिद्धों का बसेरा है।
Chitrakoot: धर्मनगरी चित्रकूट की जिस पावन धरा में भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल का सर्वाधिक समय बिताया है, उसी विंध्य पर्वत की श्रंखलाओं व घनघोर जंगलों से घिरी धरा में जटायु प्रजाति के राज गिद्धों का बसेरा है। यह प्रजाति विलुप्त हो रही है, जिसे बचाने के लिए प्रदेश सरकार ने गोरखपुर के महाराजगंज में अलग से संवर्धन केन्द्र संचालित कर रखा है। केन्द्र की टीम ने राज गिद्ध के जोड़े को पाठा के जंगल से पकड़ा है और उसे अपने साथ संवर्धन केन्द्र ले गई है।
रानीपुर टाईगर रिजर्व क्षेत्र के जंगलों में मौजूदा समय पर 82 राज गिद्ध बसेरा बनाए हुए है। यह जटायु प्रजाति के गिद्ध है, जो कि विलुप्त होते जा रहे है। सरकार इन गिद्धों को विलुप्त होने से बचाने का प्रयास कर रही है। इसके लिए गोरखपुर में जटायु संरक्षण एवं संवर्धन केन्द्र महाराजगंज खोला गया है। यहां की सात सदस्यीय टीम पशु चिकित्साधिकारी डा दुर्गेश नंदन की अगुवाई में पिछले करीब एक वर्ष से डेरा डाले हुए है। दो दिन पहले टाईगर रिजर्व के मारकुंडी रेंज स्थित जंगल से टीम ने राज गिद्ध का एक जोड़ा पकड़ा है। जिसमें नर व मादा दोनों शामिल है।
रामचरित मानस में गिद्धराज जटायु का वर्णन
इस जोड़े को टीम अपने साथ जटायु संरक्षण एवं संवर्धन केन्द्र महाराजगंज ले गए है। गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस में गिद्धराज जटायु का वर्णन आता है। वह प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्तों में शामिल है। रानीपुर टाईगर रिजर्व के उपनिदेशक डीएफओ नरेन्द्र सिंह ने बताया कि टीम काफी पहले से रुकी हुई थी।
पिछले वर्ष भी टीम ने जोडा़ पकड़ा था। राज गिद्धों के नाम से पहचानी जाने वाली यह जटायु प्रजाति है। पर्यावरण संतुलन में गिद्धराज की अहम भूमिका है। इनके कुनबे को बढ़ाने के लिए संवर्धन केन्द्र खोला गया है। बताया कि राज गिद्ध की गर्दन लाल होती है। अब तक यहां से पांच मादा व एक नर गिद्ध को संवर्धन केन्द्र भेजा जा चुका है। एक दिन पहले पकड़े गए जोड़े को केन्द्र पहुंचाकर क्वारंटाइन पर रखा गया है।