हापुड़: महाभारत कालीन कार्तिक पूर्णिमा गंगा मेले के आयोजन स्थल गढ़मुक्तेश्वर को कालांतर में गणमुक्तेश्वर नाम से जाना जाता था। इससे भी पहले इसे शिवबल्लभपुर के नाम से जाना जाता था। गंगा नगरी को उसके पुराने नाम को बदलवाने को लेकर स्थानीय विधायक सहित समाजसेवियों ने कई बार मांग की है।
अंग्रेजों से लोहा लेने वाली पहली गढ़ की पहली महिला थी मंगला
देश की जंगे आजादी के सबसे पहले गदर के दौरान अपने प्राणों की बलि देने वाली सबसे पहली महिला गढ़ की मंगला थी, मुख्यमंत्री गढ़मुक्तेश्वर का नाम गणमुक्तेश्वर और मंगला के नाम पर सड़क की घोषणा कर सकते हैं धार्मिक ग्रंथ गरुण पुराण में वर्णन है कि तीर्थ के पूर्व में एक वट वृक्ष है। जहां साधकों की सिद्धियां पूर्ण होती हैं। दक्षिण में पीपल के पेड़ों की कतार तथा पश्चिम में चामुंडा मंदिर है। उत्तर में गंगा की पवित्र धारा है।
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गणों की मुक्ति का धाम है गंगा नगरी, नाम बदलने की विधायक ने की है मांग
दो कोस का क्षेत्रफल मोक्ष व मुक्ति देने वाला है। जिसे वर्तमान में गढ़मुक्तेश्वर के नाम से जाना जाता है। अब विधायक कमल मलिक और समाजसेवी इसका पुराना नाम गणमुक्तेश्वर के कराना चाहते हैं। वहीं गढ़ की रहने वाली मंगला ने अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ आवाज उठाई और पिस्टल लेकर ललकारा तो अंग्रेजों ने धोखे से पकड़ लिया। सरेआम तोप के मुंह पर बांध कर उसे उड़ा दिया गया। वर्तमान में उसके नाम पर कोई यादगार बनना तोे दूर बल्कि उसकी बरसी पर कोई कार्यक्रम तक नहीं होते,वर्ष 1857 से पहले जब गुलामी से मुक्ति और आजादी की आवाज उठने लगी थी।
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कल मेले में आ रहे सूबे के सीएम
उठने वाली मंगला की आवाज को सदा के लिए शांत करने के लिए उसे तोप के मुंह पर बांधकर गोले से उड़ा दिया था। अफसोस है कि ऐसी जांबाज देशभक्त के नाम पर आज तक कोई भी यादगार नहीं बन पाई है। जबकि 22 नवंबर यानि कल मेले में आ रहे सूबे के सीएम से लोगों को उम्मीद है कि सीएम गढ़मुक्तेश्वर को उसके पुराने नाम गणमुक्तेश्वर, जबकि नक्का कुंआ मार्ग को मंगला मार्ग के नाम किया जा सकता है। स्थानीय विधायक डॉ. कमल मलिक ने बताया कि गढ़मुक्तेश्वर के नाम को बदलवाने को लेकर दो बार उनके द्वारा मांग की गई है। जबकि मंगला के नाम से भी एक मार्ग का नाम रखने की मांग की जा रही है ।
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