Lucknow Ravan Dahan Time: लखनऊ में इतने बजे रावण दहन, यहां देखें सही समय
Lucknow Ravan Dahan Time: राजधानी लखनऊ में लगभग 300 वर्षों से दशहरा के शुभ अवसर पर रावण के साथ में कुंभकरण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं, लेकिन इस बार नहीं जलाए जाएंगे।
Lucknow Ravan Dahan: राजधानी लखनऊ में लगभग 300 वर्षों से दशहरा के शुभ अवसर पर रावण के साथ में कुंभकरण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं, लेकिन इस बार रामलीला समिति ने पुतलों को जलाने को लेकर एक बहुत बड़ा फैसला लिया है। रामलीला समित ने इस बार फैसला लिया है कि इस दशहरे के दिन यानि की 5 अक्टूबर को रावण के साथ में कुंभकरण और मेघनाद के पुतले नहीं जलाए जाएंगे। रामलीला समित ने रावण के साथ में मेघनाद और कुंभकरण के पुतले न जलाए जाने का कारण भी स्पष्ट करते हुए कहा है कि रामायण के सभी ग्रंथों में इस बात का वर्णन देखने को मिलता है, कुंभकरण और मेघनाद ने रावण को लाख समझाया था कि भगवान राम के खिलाफ युद्द न लड़ो, लेकिन रावण ने अपने भाई और पुत्र की बातों को मानने से इनकार कर दिया था। जब रावण ने मेघनाद और कुंभकरण की सलाह नहीं मानी तो उन्हे भी युद्ध के मैदान में आना पड़ा। ऐशबाग रामलीला कमेटी ने इन्ही सब बिंदुओं पर अध्यन करने के बाद में 300 सालों से चली आ रही पुरानी परंपरा को बदलने का फैसला कर लिया है।
लखनऊ में रावण जलाने का समय - 7:00 PM
लखनऊ ऐशबाग में रावण दहन की तैयारियां, रावण के पुतले को लैमिनेट किया गया, बारिश से बचाने के लिए लैमिनेट किया पुतला ऐशबाग रामलीला मैदान में होगा रावण दहन। शाम 7 बजे रावण दहन किया जाएगा।
रामलीला समित के अध्यक्ष हरिश्चन्द्र अग्रवाल का कहना है कि लखनऊ के ऐशबाग की रामलीला में रावण के साथ में कुंभकरण और मेघनाद के पुतले न जलाए जाएं इस बात को लेकर पिछले 5 सालों से मंथन चल रहा था। लेकिन रामलीला के कई सदस्यों ने उस समय इस प्रस्ताव को इसलिए खारिज कर दिया था कि रावण के साथ में मेघनाद और कुंभकरण के पुतले जलाना पुरानी परंपरा के अनुसार होता है, इसलिए इसमें बदलाव नहीं किया जा सकता है।
रामलीला समित के अध्यक्ष हरिशचन्द्र द्विवेदी का कहना है कि रामचरितमानस का कोई भी संस्करण पढ़ लीजिए उसमें पता चलता है कि रावण के सुपुत्र मेघनाद ने रावण को समझाया था कि भगवान राम विष्णु के अवतार हैं इसलिए हम लोगों कों उनके खिलाफ युद्ध नहीं करना चाहिए। दूसरी तरफ कुंभकरण की यदि अगर बात की जाए तो कुंभकरण ने भी मना किया था कि रावण माता सीता का उन्हे अपहरण नहीं करनी चाहिए था। लेकिन रावण ने किसी की भी कोई बात नहीं मानी और रावण ने भगवान राम के खिलाफ लड़ने का आदेश कर दिया। जिसके बाद कुंभकरण और मेघनाद को मजबूरी वश युद्ध में आना पड़ा। इसीलिए हम लोग 300 साल पुरानी परंपरा को खत्म करने का फैसला लिया। इस बार ऐशबाग की रामलीला में रावण के साथ में मेघनाद और कुंभकरण के पुतले नहीं जलाए जाएंगे।