सर्व शिक्षा अभियान पर लगा ग्रहण, सवाल- CM सर! बिना किताबों के कैसे पढ़ेगा यूपी?
लखनऊ. यूपी में गरीब बच्चों को पढ़ाने और उनके भविष्य को उज्जवल बनाने के दावे करने वाला सर्व शिक्षा अभियान दम तोड़ता नज़र आ रहा है। इसका मुख्य कारण इस शैक्षिक सत्र में आधा साल बीत जाने के बाद भी सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों के हाथों में निःशुल्क पाठ्य पुस्तकों का अब तक ना पहुंचना है।
इस मामले पर जब newstrack.com की टीम ने पड़ताल की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। पड़ताल में पता चला कि गरीब बच्चों के भविष्य को दांव पर लगाकर करोडों का घोटाला करने की तैयारी के चलते अब तक किताबों की छपाई पूरी नहीं हो पाई है। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि इन हालातो में प्रदेश के एक लाख से अधिक प्राइमरी और 35 हज़ार से ज्यादा उच्च प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले गरीब बच्चों के बर्बाद होते भविष्य का जिम्मेदार कौन होगा?
प्रदेश में इस साल छपनी थी 13 करोड़ से अधिक किताबें
यूपी में सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत सरकारी स्कूलों के बच्चों को निःशुल्क किताबों का वितरण किया जाता है। इस साल शैक्षिक सत्र 2016-17 के लिए भी सूबे में पंजीकृत कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों के लिए 110 टाईटिलों की 13 करोड़, 21 लाख, 86 हज़ार, पांच सौ किताबो की छपाई होनी थी। इसके लिए 17 अप्रैल 2016 को टेंडर भी आमंत्रित कर लिए गए थे, लेकिन अभी तक किताबों की छपाई और उनके वितरण का काम पूरा नहीं हो सका है। इस समय अक्टूबर महीना शुरू हो गया है और आधा सत्र बीत चुका है और ज्यादातर स्कूलों में पढ़ाई ठप्प पड़ी है। इतना ही नहीं इन स्कूलों में अर्धवार्षिक परीक्षाएं भी होने वाली हैं। राजधानी और इससे सटे कुछ स्कूलों में पुरानी किताबों के सहारे पढ़ाई करवाई जा रही है। ऐसे में सवाल ये है कि जब सरकार ने किताबों की छपाई और वितरण के लिए बजट का आवंटन समय से कर दिया था तो किस कारण के चलते इसमें देरी हो रही है।
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किसके इशारे पर दो बार संशोधित की गई टेंडर की शर्ते
सर्व शिक्षा अभियान के पाठ्य पुस्तक अधिकारी अमरेन्द्र सिंह ने साल 2016-17 के लिए किताबों की छपाई का टेंडर 23 फ़रवरी 2016 को आमंत्रित किया था। इसके अनुसार छपाई करने में इच्छुक पब्लिशर्स को 26 मार्च 2016 तक अपनी निविदाएं बंद लिफाफे में कार्यालय को रिसीव करवानी थी। इसके बाद 14 मार्च को टेंडर की शर्तो में भुगतान सम्बन्धी एक संशोधन किया गया था। इसके बाद 22 मार्च को किताबों की छपाई में विशेष प्रकार के कागज का इस्तेमाल करने और उसे निश्चित उत्पादन क्षमता वाली मिलो से लेने सम्बन्धी एक और संशोधन किया गया है। इसके बाद अप्रैल 2016 में एक फ्रेश टेंडर आमंत्रित किया गया।
पाठ्य पुस्तक अधिकारी द्वारा टेंडर में बार बार संशोधन और बार-बार टेंडर आमंत्रित करने के कृत्य की जब हमने पड़ताल की तो पाया कि 22 मार्च को टेंडर की शर्तो में बदलाव किया गया। वो किसी निजी कागज सप्लाई करने वाली कंपनी को फायदा पहुंचाने की नियत से किया गया है। इसमें साफ़ साफ़ उल्लेख है कि पाठ्य पुस्तक की छपाई में काम आने वाला कागज ऐसी मिल से हो जिसकी प्रतिदिन की वास्तविक उत्पादन क्षमता न्यूनतम 200 मीट्रिक टन हो। इस शर्त के चलते ऐसी कंपनी टेंडर प्रक्रिया के दायरे में आ गई, जो घाटे में चल रही थी और बंद होने वाली थी।
सर्व शिक्षा अभियान कार्यालय के सूत्रों के मुताबिक जो कागज मिलें टेंडर के दायरे में आई। उनकी प्रतिदिन की वाटर मार्क पेपर के उत्पादन कि क्षमता को न देखकर प्रतिदिन की कुल उत्पादन क्षमता को टेंडर में मांगा गया, जबकि वाटर मार्क पेपर का प्रोडक्शन करने में ये सारी कंपनियां काफी लो परफ़ॉर्मर हैं।
अब ऐसे में सवाल ये है कि यूपी के नौनिहालों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करवाने वाली इस टेंडर प्रक्रिया में किसके इशारे पर बार बार संशोधन किया गया? इसके अलावा जब किताबों की छपाई वाटरमार्क कागजों पर होनी थी तो उनकी कुल उत्पादन क्षमता को टेंडर प्रक्रिया में क्यों रखा गया?
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पब्लिशर ने किया खुलासा- ख़ास को फायदा पहुचाने और कमीशन के खेल के चलते बदली शर्ते
पाठ्य पुस्तकों को छापने का जिम्मा लेने वाले एक पब्लिशर ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि किसी ख़ास को फायदा पहुंचाने और कमीशन के खेल के चलते इन किताबों को छापने में देरी हो रही है। टेंडर की शर्तो के हिसाब से जिस वाटरमार्क पेपर पर किताबों की छपाई होनी है। वही पेपर अभी तक पब्लिशर को नहीं मिल पाया है। इसके चलते किताबों की छपाई का काम रुका पड़ा है।
पब्लिशर की माने तो 22 मार्च 2016 को टेंडर की शर्तो में कुछ संशोधन किए गए थे। उसके अनुसार किताबों की छपाई के लिए ऐसी मिल से कागज लेना है, जिसकी प्रतिदिन उत्पादन क्षमता 200 मीट्रिक टन हो। इसके अलावा किताबों की छपाई एक विशेष वाटरमार्क कागज पर होनी है जो ऐसी ही मिल से लिया गया हो। इस नियम के चलते ख़ास मिलो से कागज लेने पर सहमति बनी और खुद को इन मिलो का प्रतिनिधि बताने वाले शख्स ने विभाग को कागज सप्लाई करवाने के लिए राज़ी कर लिया, लेकिन हकीकत ये है कि अभी तक उस मिल द्वारा सिर्फ 20 से 30 परसेंट कागज की ही सप्लाई की गई है। ऐसे में किताबों की छपाई रुकी हुई है। इस रसूखदार शख्स ने पूरी डील की है और अपने जानने वाले पब्लिशर्स को ही किताबों की छपाई का काम दिलवाने में सफलता प्राप्त की है, लेकिन ये पब्लिशर भी कागज की कमी के चलते काम नहीं कर पा रहे हैं।
ऐसे में अब पब्लिशर्स पर भी गाज गिर सकती है क्योंकि टेंडर आवंटन के बाद 75 दिनों के अंदर किताबें छाप कर विभाग को देना था लेकिन सितम्बर में समय सीमा ख़त्म हो चुकी है और नियमों के अनुसार देर से किताबें सप्लाई करने पर जहां भुगतान में कटौती का नियम है वहीं विभाग इन पब्लिशर्स को ब्लैकलिस्ट करने पर भी विचार कर सकता है।
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इन चार वजहों से नहीं हो पा रही जिलो में किताबो की आपूर्ति
इसके अलावा पब्लिशर की मानें तो चार प्रमुख कारणों से किताबों की छपाई विभाग के गले की हड्डी बन गया है। पहला तो जब विभाग में निचले स्तर से केवल वर्जिन पल्प युक्त कागज पर छपाई की बात प्रस्तावित थी। तो विभाग में किसी उच्चाधिकारी के इशारे पर बैम्बू अथवा वुड बेस्ड कागज पर छपाई की शर्त मंजूर की गई। क्योंकि इतनी बड़ी मात्रा में बैम्बू अथवा वुड बेस्ड वॉटरमार्क कागज का उत्पादन करके उसकी सप्लाई पब्लिशर्स को करना किसी भी कागज मिल के लिए टेढ़ी खीर है। इसके अलावा ये इकोफ्रेंडली भी नहीं है।
दूसरा, जब अप्रैल में टेंडर खोला गया तो होली फेथ नामक फर्म के टेंडर में बुक छपाई की कास्टिंग सबसे कम थी, लेकिन बाद में विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से उस फर्म के कर्मचारी से ये लिखवा लिया गया कि टेंडर में लिखी गई दरें गलती से लिखी गई हैं और उसकी फर्म इन दरों पर काम नहीं कर सकती। इसके बाद उस फर्म को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया और उसकी जमानत राशि जब्त कर ली गई। कम्पनी के उस कर्मचारी ने किस दबाव या लालच में अपनी रोज़ी रोटी देने वाली फर्म को ब्लैकलिस्ट करवा दिया, ये एक बड़ा सवाल है? इतना ही नहीं अप्रैल में टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने वाली 34 फर्मो में से ज्यादातर को ऐसे आरोप लगाकर प्रक्रिया से बाहर किया गया जो पब्लिशर्स के हिसाब से तर्कसंगत नहीं थे।
तीसरा, जिन मिलों को कागज सप्लाई करने का ठेका दिया गया। उनके वाटर मार्क उत्पादन करने की क्षमता को नज़रअंदाज करके उनकी कुल उत्पादन क्षमता का हर जगह जिक्र किया गया। वाटरमार्क पेपर उत्पादन करने में अधिक समय लगता है और इस प्रकार के पेपर की उत्पादन क्षमता हर मिल में वास्तविक उत्पादन क्षमता से बहुत कम होती है। क्या अधिकारियों को इस टेक्निकल बात की जानकारी नहीं थी।
चौथा, जिन फर्मों को किताब छपाई का काम मिला है उनकी क्षमता कम है जबकि उन्हें ज्यादा काम का आवंटन किया गया है। इन्हीं वजहों के चलते यूपी में अर्धवार्षिक परीक्षाएं करीब आने पर भी शत प्रतिशत किताबों की सप्लाई नहीं की जा सकी है।
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सर्व शिक्षा अभियान के राज्य परियोजना निदेशक जी एस प्रियदर्शी ने कहा कि नियमानुसार किताबों को समय सीमा के अंदर बच्चों तक पहुंच जाना चाहिए, लेकिन इस सब कामो के बारे में वास्तविक जानकारी पाठ्य पुस्तक अधिकारी अमरेन्द्र सिंह ही दे पाएंगे। क्योंकि टेंडर प्रक्रिया उन्हीं के द्वारा सम्पादित की गई है। इसके अलावा निविदा समिति में सर्व शिक्षा अभियान की ओर से वित्त नियंत्रक ने प्रतिभाग किया था। डिटेल जानकारी पाठ्य पुस्तक अधिकारी को ही है।
पाठ्य पुस्तक अधिकारी अमरेन्द्र सिंह से संपर्क करने पर उनकी सहायक गीता पन्त ने जानकारी दी कि वे ऑफिसियल काम से बाहर गए हैं। हालांकि उन्होंने बताया कि पाठ्य पुस्तकों की छपाई की प्रक्रिया में देर हो रही है, लेकिन पाठ्य पुस्तक अधिकारी ने सारे काम नियम कानून से किए हैं। इनसे मोबाइल पर संपर्क के सारे प्रयास विफल रहे।
लखनऊ, सीतापुर, उन्नाव समेत अलग अलग जिलों के शिक्षा विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों से संपर्क करने पर पता चला कि अभी शत प्रतिशत किताबे छप कर नहीं आई हैं। इसके चलते कई स्कूलों में पुरानी किताबो से काम चलाया जा रहा है, लेकिन 110 टाईटिलो में से कितने टाईटिलो की किताबे छाप कर बंट चुकी हैं, इसका सटीक आंकड़ा कोई नहीं दे पाया।
क्या कहते हैं निदेशक बेसिक शिक्षा दिनेश बाबू शर्मा?
किताबों कि छपाई की प्रक्रिया तेजी से चल रही है। अब तक 110 टाईटिल की करोडों किताबों में से 60 परसेंट किताबों की छपाई पूरी की जा चुकी है। इस काम में कुल 22 पब्लिशर लगे हुए हैं। हिंदुस्तान पेपर कारपोरेशन ने अगस्त महीने में वाटरमार्क के पेपर की सप्लाई नहीं की थी, जिसके चलते किताबे छपने में दिक्कत हुई है। हमने उनको दो बार बुलाकर बात करी थी, अब उनकी तरफ से पेपर की सप्लाई में दिक्कत नहीं है। हम पब्लिशर्स से भी जल्द से जल्द किताबे छाप कर आपूर्ति करने को कह चुके हैं। टेंडर प्रक्रिया निष्पक्ष हुई है, किसी भी प्रकार की गड़बड़ी नहीं हुई है। हमारी प्राथमिकता प्रदेश के बच्चो के हाथो में जल्द से जल्द शत प्रतिशत किताबें पहुंचाना है।
क्या कहते हैं सचिव बेसिक शिक्षा अजय कुमार सिंह?
किताबों की छपाई को लेकर देरी हो रही है। इसका कारण शासन के साथ अनुबंधित पेपर मिल हिंदुस्तान पेपर कारपोरेशन के द्वारा वाटरमार्क पेपर की सप्लाई समय से और डिमांड के अनुरूप न करना है। इसके पीछे मिल ने अपनी फाइनेंसियल दिक्कतों का हवाला दिया है। हालांकि पेपर सप्लाई के काम में डॉ अन्य मिलो स्टार पेपर्स मिल लिमिटेड और ओरिएंट पेपर्स मिल भी लगी हैं और उनकी तरफ से कोई दिक्कत नहीं आई है। हम प्रयास कर रहे हैं कि जल्द से जल्द शत प्रतिशत किताबो का वितरण सारे जिलो में हो जाएं। जहां तक पब्लिशर के द्वारा समय सीमा से ज्यादा समय में किताब छापने की बात है तो उसको डायरेक्टर बेसिक देख रहे हैं और उनके भुगतान को लेकर पेनल्टी लगाने पर विचार भी कर रहे हैं। हम आगे प्रयास करेंगे कि कुछ ऐसी लाइन ऑफ़ एक्शन बनाए कि भविष्य में मिल और पब्लिशर दोनों की ओर से कोई दिक्कत न हो।