और जब अपने अंधे मां-बाप को कंधे पर लादकर घर लाई 'श्रवण कुमारी'
: जहां कलयुग में बेटे अपने माता पिता को वृद्धआश्रम मे छोड़ देते है। वहीँ एक असी भी बेटी है जो अपने अंधे माता-पिता को हरिद्वार से बग्गी में खीच कर बागपत
शामली: जहां कलयुग में बेटे अपने माता पिता को वृद्धआश्रम मे छोड़ देते है। वहीँ एक ऐसी भी बेटी है जो अपने अंधे माता-पिता को हरिद्वार से अपने कंधे पर लादकर बागपत के निवाडा अपने गांव लेकर आयी। श्रवण कुमार जिन्हें अपने माता पिता की सेवा के लिए जाना जाता है, उनके बाद अब इस बेटी को भी श्रवण कुमारी के नाम से बुलाया जा रहा है।
क्या है पूरा मामला?
- जनपद बागपत के निवाडा गांव की एक नाबालिग लड़की कावड़ियों के साथ हरिद्वार चली गई थी।
- काफी दिन बीत गये मगर वो वापस नहीं लौटी। इस बात की चिंता उसके अंधे मां-बाप को ना सोने देती थी ना कुछ करने देती थी ।
- लड़की के अंधे मां-बाप उसको खोजने खच्चर बग्गी में अपनी बड़ी बहोती और छोटे 10 वर्षीय बेटे के साथ हरिद्वार गये।
- हरिद्वार के पथरिया रोड पर अपनी बग्गी छोड़ वो लोग अपनी बेटी-बहन को तलाशने चले गये।
- बेटी तो मिली नहीं मगर उनकी बग्गी कोई चुरा ले गया।
- उनके पास इतने भी रूपए नहीं थे कि दूसरी बग्गी कर सकें।
- बड़ी बेटी बहोती ने जब अपने अंधे मां-बाप की हालत देखी तो फैसला किया कि वो खुद उनको अपने कंधे पर खींचकर गाँव वापस लाएगी।
- और बिलकुल ऐसा ही हुआ। 7 दिन से अपने मां-बाप को खींचकर आज ये कलयुगी श्रवण कुमारी अपने गांव पहुंच गई।
बोहती ने बताया कि मेरे मां-पापा को दिखाई नही देता है। मैं उन्हे हरिद्वार से बग्गी में खीचकर ला रही हूं। हमारा खच्चर चोरी हो गया था। आज सात दिन हो गए हमे चलते हुए।
बोहती के अंधे पिता ने बताया कि हम निवाडा गांव के हैं। हमारी लडकी कावड़ियों के साथ हरिद्वार चली गई थी। हम उसको तलाशने हरिद्वार गये थे। वो तो नहीं मिली मगर हमारा खच्चर किसी ने चुरा लिया जिसके बाद हमारे सामने वापस लौटने की समस्या खड़ी हो गई। तभी हमारी बेटी बोहती 7 दिन से हमें खींचकर ला रही है।