Gorakhpur News: गोरखपुर में इन स्ट्रीट बाजार में बिकता है 'धोखा', राहगीर करते हैं लाखों की खरीदारी

Gorakhpur News: गोरखपुर से देवरिया मार्ग पर कुसम्ही जंगल के बीच से गुजरने वाली सड़क के दोनों पटरियों पर 100 से अधिक फर्नीचर की दुकानों पर लगन के समय में रोज 20 से 30 लाख रुपये का कारोबार होता है।

Update: 2024-09-02 12:23 GMT

Gorakhpur News (Pic: Newstrack)

Gorakhpur News: कुसम्ही जंगल से सटी सड़क की पटरी पर फर्नीचर की दुकान और चिलुआताल के किनारे मछली की मंडी। गोरखपुर के तीन अलग-अलग राष्ट्रीय राजमार्ग पर फर्नीचर से लेकर मछली की दुकानों को देखकर हर किसी को लगता है कि फर्नीचर कुसम्ही जंगल के ही साखू की लकड़ी से बना है, और ताजी मछली चिलुआताल से ही शिकार की गईं हैं। लेकिन हकीकत उलट है। दशकों से गुलजार ये सभी स्ट्रीट बाजार धोखे के हैं। लोग भ्रम में रोज लाखों रुपये की खरीदारी करते हैं।

10 से 20 फीसदी कम कीमत पर फर्नीचर उपलब्धता

गोरखपुर से देवरिया मार्ग पर कुसम्ही जंगल के बीच से गुजरने वाली सड़क के दोनों पटरियों पर 100 से अधिक फर्नीचर की दुकानों पर लगन के समय में रोज 20 से 30 लाख रुपये का कारोबार होता है। बनशप्ती मंदिर के पास गुलजार दूकानों को देखकर लोगों को लगता है कि यहां बिक रहे फर्नीचर जंगल की साखू की लकड़ी से बने है। लोगों को मार्केट रेट से 10 से 20 फीसदी कम कीमत पर यहां फर्नीचर की उपलब्धता हो जाती है। फर्नीचर के कारोबार से जुड़े जर्नादन का कहना है कि यहां बिक रहे फर्नीचर में ज्यादेतर लकड़ी जामुन, आम की उपयोग होती है। साखू की लकड़ी भी लगती है, लेकिन से आरा मशीनों से खरीद कर लाते हैं। इसी तरह राष्ट्रीय राजमार्ग पर कालिका के नाम से कई रेस्टोरेंट हैं। सभी दावा करते हैं कि उनकी दुकान आजमगढ़ के कालिका की मशहूर मीट की दुकान की ब्रांच है। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है।

महेसरा में चिलुआताल किनारे बिकती है हैदराबाद और पोखरे की मछली

गोरखपुर से नेपाल बॉर्डर की तरफ जाने वाले हाईवे के महेसरा स्थित चिलुआताल किनारे रोज लाखों रुपये कीमत की मछली की बिक्री होती है। तमाम लोग यहां ताल की मछली के भ्रम में खरीदारी करते हैं। 70 साल के बुजुर्ग सीताराम निषाद यहां 40 साल मछली बेचते हैं। बताते हैं कि 1990 से 1995 तक यहां के चिलुआताल में मछुआरे मछली का आखेट करते थे। यहां मछली खरीदने के लिए पूरे शहर से लोग आते थे। लेकिन अब ताल कचरा डालने का स्थान बन गया है। ऐसे में मछली पालन नहीं होता है। चिलुआताल का सुंदरीकरण होना पिछले 7 साल से प्रस्तावित है। ऐसे में मछली का आखेट नहीं हो रहा है। मछली के कारोबारी महेश निषाद बताते हैं कि जिंदा मछली कैम्पियरगंज और पीपीगंज के पोखरों से लाते हैं। यहां की मंडी में हैदराबाद की मछली भी 60 फीसदी तक बिकती है। 

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