गीडा स्थापना दिवस: उद्यमियों के साथ पहुंचे कांग्रेसी सांसद का तेवर देख नारायण दत्त तिवारी ने कर दी थी गीडा की घोषणा

Gorakhpur News: गीडा को लेकर चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज की तरफ से संघर्ष अस्सी के दशक में शुरू हो गया था। पहले गोरखपुर को देश के पिछले इलाकों में शामिल कराने के लिए संघर्ष हुआ।

Update:2024-11-30 09:12 IST

स्थापना दिवस पर रोशन हुआ गीडा का प्रशानिक कार्यालय  (photo: social media )

Gorakhpur News: गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) 30 नवम्बर को स्थापना दिवस का 35वां वर्षगांठ मना रहा है। ऐसे में गीडा को लेकर संघर्ष करने वाले बेहद भावुक हैं। उन्हें संघर्ष के एक-एक पल याद है। चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के पूर्व अध्यक्ष एसके अग्रवाल का कहना है कि 35 साल बाद गीडा का जो वजूद दिख रहा है, उसके लिए लंबा संघर्ष हुआ है। 11 दिसम्बर, 1988 को धुरियापार में चीनी मिल का शुभारंभ करने पहुंचे तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को पूर्व सांसद मदन पांडेय के पुरजोर मांग के बाद मंच से ही गीडा की स्थापना की घोषणा करनी पड़ी थी।

उद्यमी बताते हैं कि पूर्व सांसद ने ही 1986 में गोरखपुर को देश के पिछड़े जिलों में शामिल करने के लिए मार्मिक पत्र केन्द्र सरकार को लिखा था। प्रदेश सरकार की तरफ से 31 दिसम्बर, 1988 को ग्रोथ सेंटर की सूची के लिए गोरखपुर का नाम नहीं भेजा गया। जिसके बाद नौकरशाह, जनप्रतिनिधि से लेकर उद्यमी निराश थे। उद्यमियों ने आमरण अनशन की घोषणा की तो तत्कालीन सांसद मदन पांडेय ने मार्मिक पत्र लिखा। बाद में 28 जुलाई, 1989 को गीडा को लेकर मंजूरी दी गई। वहीं 17 अक्तूबर, 1989 को ग्रोथ सेंटर की सूची में गोरखपुर को शामिल किया गया। 30 नवम्बर, 1989 को गीडा को लेकर नोटिफिकेशन जारी हुआ।

अस्सी के दशक में शुरू हुआ था संघर्ष

गीडा को लेकर चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज की तरफ से संघर्ष अस्सी के दशक में शुरू हो गया था। पहले गोरखपुर को देश के पिछले इलाकों में शामिल कराने के लिए संघर्ष हुआ। इसके बाद देश में ग्रोथ सेंटर की सूची में शामिल कराने के लिए तो अंत में औद्योगिक प्राधिकरण को लेकर। उद्यमियों के साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों का संघर्ष 30 नवम्बर, 1989 में जमीन पर आता दिखा जब प्रदेश सरकार ने गीडा को लेकर नोटिफिकेशन जारी किया। चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के पूर्व अध्यक्ष एसके अग्रवाल बताते हैं कि फरवरी, 1989 में यूपी के बजट में गोरखपुर में सहजनवां और जौनपुर में सथरिया को औद्योगिक विकास प्राधिकरण बनाने का ऐलान किया गया था। इसके पहले केन्द्र सरकार ने 10 जनवरी, 1989 को देश के 38 ग्रोथ सेंटर में गोरखपुर के सहजनवां को शामिल किया था। पहली बार इसके लिए 10 करोड़ रुपये का बजट भी आवंटित किया गया था। पुराने उद्यमी बताते हैं कि गीडा की स्थापना की घोषणा तो हुई लेकिन इसके विकास को लेकर कोशिशें नहीं हो रही थीं। नब्बे के दशक में प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के रहते हुए अधिकारियों ने चैंबर के समक्ष गीडा में निवेश के लिए उद्यमियों की सूची के साथ ही निवेश का डिटेल मांगा था। तब चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज की तरफ से 7 मई, 1990 को निवेश के लिए 791 उद्यमियों की सूची सौंपते हुए 1200 करोड़ का निवेश प्रस्ताव दिया गया था। दावा था कि इन यूनिटों की स्थापना ने 10 हजार से अधिक को रोजगार मिलेगा।

5 करोड़ रुपये का चेक लेकर पहुंचे थे कल्याण सिंह

पूर्व अध्यक्ष एसके अग्रवाल बताते हैं कि गीडा की स्थापना की घोषणा तो हो गई लेकिन बजट के अभाव में जमीन अधिग्रहण को लेकर कोई कवायद नहीं हो रही थी। संघ के एक सक्रिय पदाधिकारी से मुलाकात के बाद वर्ष 1992 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह गीडा के विकास के लिए 5 करोड़ रुपये का चेक लेकर आए थे। जिसके बाद भूमि अधिग्रहण की कवायद शुरू हुई। गीडा के पहले सीईओ के रूप में बाबू राम की नियुक्ति हुई। इसके बाद चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के वर्तमान अध्यक्ष आरएन सिंह ने वर्ष 1993 में गीडा की पहली यूनिट स्थापित की थी।

नौकरशाहों की भी भूमिका अहम

स्थापना के संघर्ष से जुड़े उद्यमी विष्णु अजीत सरिया बताते हैं कि संयुक्त निदेशक उद्योग मनोज कुमार से लेकर अपर निदेशक उद्योग आरके मित्तल ने गीडा की बुनियाद में बड़ा योगदान दिया है। इनके साथ पूर्व अध्यक्ष एसके अग्रवाल प्रदेश सरकार की तरफ से नासिक औद्योगिक विकास को देखने के लिए नासिक भेजे गए थे। वर्ष 1992 में तत्कालीन मुख्यमंत्री गीडा के विकास के लिए 5 करोड़ रुपये का चेक लेकर गोरखपुर पहुंचे तो कमिश्नर आरएस टोलिया के प्रयासों से अधिग्रहण के काम में तेजी आई। पूर्व अध्यक्ष एसके अग्रवाल कहते हैं कि जनप्रतिनिधि, मीडिया से लेकर नौकरशाहों के संयुक्त प्रयास का नतीजा आज का विकसित गीडा है।

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