Masane Ki Holi 2023: बाबा विश्वनाथ की नगरी में खेली जाती है चिता भस्म की अनोखी होली, जानिए इसके पीछे क्या है मान्यता, देखें फोटो

Masane Ki Holi: उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो मथुरा,वृंदावन,बरसाना और महादेव की नगरी काशी में होली का अलग ही अंदाज दिखता है। काशी में होली की शुरुआत रंगभरी एकादशी से होती है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2023-03-03 20:36 IST

Masane Ki Holi 

Masane Ki Holi 2023: वैसे तो होली का त्योहार पूरे देश-दुनिया में उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है मगर देश में कुछ जगहों पर अनोखी होली खेली जाती है। यदि उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो मथुरा,वृंदावन,बरसाना और महादेव की नगरी काशी में होली का अलग ही अंदाज दिखता है। काशी में होली की शुरुआत रंगभरी एकादशी से होती है। देशभर में होली रंग और गुलाल के साथ खेली जाती है मगर बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में चिता भस्म के साथ खेली जाने वाली मसाने की होली पूरी दुनिया में विख्यात है।

जलती चिताओं के बीच होली का यह अद्भुत और अनोखा रंग पूरी दुनिया में सिर्फ काशी में ही देखने को मिलता है। यही कारण है कि इसे देखने के लिए काफी संख्या में लोग महाश्मशान पर जुटते हैं।


वाराणसी के महाश्मशान मणिकार्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट पर चिता की भस्म के साथ खेली जाने वाली होली सबके लिए आकर्षण और कौतूहल का केंद्र बनती है।रंगभरी एकादशी के दिन इस अनोखी होली की शुरुआत होती है जिसमें बाबा भोलेनाथ के भक्त चिता की भस्म से सराबोर हो जाते हैं।


क्यों खेली जाती है चिता की भस्म से होली

मणिकार्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर चिताओं की भस्म के साथ खेली जाने वाली अनूठी होली के पीछे काफी प्राचीन मान्यता है। जानकारों का कहना है कि जब रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे तो उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी।


भगवान विश्वनाथ ने अपने गणों के साथ तो होली खेल ली मगर वे अपने प्रिय महाश्मशान पर भूत-प्रेत, पिशाच और अघोरी के साथ होली नहीं खेल सके थे।


रंगभरी एकादशी से शुरू होने वाले पंच दिवसीय होली पर्व की अगली कड़ी में भगवान विश्वनाथ ने महाश्मशान पर भूत-प्रेत, पिशाच और अघोरियों संग चिता की भस्म के साथ होली खेली थी। यह परंपरा सदियों पुरानी बताई जाती है और आज भी इस परंपरा का निर्वाह किया जा रहा है।


महाश्मशान पर बदल जाता है माहौल

मोक्ष की नगरी माने जाने वाले काशी में चिता की आग कभी ठंडी नहीं होती। यहां के महाश्मशान पर जलाने के लिए दूर-दूर के इलाकों से शव लाए जाते हैं। इसी कारण महाश्मशान पर हमेशा भीड़भाड़ बनी रहती है।


शवों को जलाए जाने के कारण घाट पर चारों ओर मातम और सन्नाटा तो जरूर पसरा रहता है मगर साल में एक दिन ऐसा भी आता है जब यहां खेली जाने वाली होली के कारण यहां का माहौल पूरी तरह बदला हुआ नजर आता है। डमरू, घंटे-घड़ियाल, मृदंग और साउंड सिस्टम पर बजने वाले गानों के बीच अबीर-गुलाल के साथ हवा में चारों ओर चिता की भस्म उड़ाई जाती है।


सदियों पुरानी है यह परंपरा

डोम राजा परिवार के बहादुर चौधरी का कहना है कि यह परंपरा सदियों पुरानी है। बाबा भोलेनाथ मां पार्वती का गौना कराने के बाद भूत-प्रेतों और अपने गणों के साथ होली खेलने के लिए महाश्मशान पर आते हैं और इसी के बाद काशी में होली की शुरुआत हो जाती है।


श्री काशी महाश्मशान नाथ सेवा समिति के अध्यक्ष चैनू प्रसाद गुप्ता का कहना है कि मणिकर्णिका महाश्मशान पर चिता भस्म की होली सदियों से खेली जा रही है। इसे शास्त्र सम्मत न मानने वालों को इसकी प्राचीनता का पता नहीं है।


महाश्मशान पर दिखता है अद्भुत नजारा

हरिश्चंद्र घाट पर खेली जाने वाली चिता भस्म की होली से पहले शिव बारात निकाली जाती है। शिव बारात में तांत्रिक,औघड़, शिव भक्त और अन्य काशीवासी शामिल होते हैं। हरिश्चंद्र घाट पर होली खेलने से पहले महाश्मशान नाथ की आरती की जाती है। इस बारात के हरिश्चंद्र घाट पर पहुंचने के बाद अबीर-गुलाल और चिता की भस्म के साथ होली खेली जाती है।


इसके अगले दिन मणिकर्णिका महाश्मशान घाट पर इसी तरह की एक और अद्भुत होली का नजारा दिखता है। चिता भस्म की होली से पहले मसान बाबा का विशेष श्रृंगार किया जाता है। महाश्मशान घाट पर खेली जाने वाली है होली इस बात का संदेश भी देती है शिव ही अंतिम सत्य है।


चिता की भस्म से खेली जाने वाली यह होली देश-दुनिया में काफी चर्चित हो चुकी है। इसी कारण इसे देखने के लिए भारी हुजूम भी उमड़ता है। इन क्षणों को कैमरे में कैद करने के लिए काफी दूर-दूर से एक फोटोग्राफर भी दोनों महाश्मशान घाटों पर पहुंचते हैं।


खेलैं मसाने में होरी दिगंबर

इस संबंध में यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि प्रसिद्ध गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र का गाया हुआ गीत खेलैं मसाने में होरी दिगंबर काफी प्रसिद्ध हो चुका है। यूं तो छन्नूलाल मिश्र ने होली से जुड़े हुए अनेक गाने गाए हैं मगर इस गाने को सबसे ज्यादा प्रसिद्धि हासिल हुई।


पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित छन्नूलाल मिश्र कजरी, ठुमरी, भजन और चैती आदि के लिए जाने जाते हैं। वैसे खेले मसाने में होरी उनका सबसे चर्चित गीत है। इस गीत के बोल इस प्रकार हैं-

गीत

खेलैं मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

लखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से रंग-गुलाल हटा के,

चिता, भस्म भर झोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

गोप न गोपी श्याम न राधा, ना कोई रोक ना, कौनऊ बाधा


ना साजन ना गोरी, ना साजन ना गोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

नाचत गावत डमरूधारी, छोड़ै सर्प-गरल पिचकारी

पीटैं प्रेत-थपोरी दिगंबर खेलैं मसाने में होरी

भूतनाथ की मंगल-होरी, देखि सिहाए बिरिज की गोरी

धन-धन नाथ अघोरी दिगंबर, खेलैं मसाने में होरी

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