झगड़ा इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड का, प्रस्तावित सुधार और भ्रम की स्थिति

Update:2020-01-24 12:27 IST

लखनऊ। हाल ही में दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने देशव्यापी बंद किया था जिस दौरान बंगाल और ओडीशा में काफी उपद्रव भी हुआ। इन ट्रेड यूनियनों का मुख्य विरोध केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित 'औद्योगिक संबंध कोड' या इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड से है। दरअसल, श्रम सुधार मोदी सरकार के एजेंडे में शामिल एक बड़ा मुद्दा है। इस दिशा में काम करते हुए सरकार ने कई काम भी किए जिनमें ईपीएफ नंबर पोर्टेबिलिटी, फर्मों द्वारा सेल्फ सर्टिफिकेशन और अप्रेंटिसशिप एक्ट में बदलाव शामिल हैं। बहुत से काम किए जाने बाकी थे लेकिन विभिन्न ट्रेड यूनियनों के प्रतिरोध के कारण श्रम कानूनों में गंभीर बदलाव का प्रयास ठंडे बस्ते में चला गया। २०१९ में सत्ता में वापसी के बाद मोदी सरकार ने श्रम कानूनों में सुधार को फिर अपने प्राथमिकता एजेंडे में शामिल किया है। इसके दो कारण हैं - पहला ये कि श्रम सुधार एक चुनावी वादा था जिसे पूरा किया जाना है और दूसरा कारण है कि निजी निवेश रुक गया है और कार्पोरेट सेक्टर बार बार ये कहता है कि बिजनेस ग्रोथ में प्राचीन श्रम कानून अड़चन हैं।

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प्रस्तावित सुधार और भ्रम की स्थिति

श्रम सुधार को लेकर श्रमिकों में भ्रम की स्थिति है क्योंकि कुछ प्रस्तावित सुधार प्रोग्रेसिव हैं तो कुछ सुधार काफी कुछ नियोक्ता के पक्ष में हैं। भारत में ९० फीसदी से अधिक श्रम शक्ति औपचारिक और असंगठित क्षेत्र में काम करती है। सरकार का इरादा है कि ४० विभिन्न केंद्रीय कानूनों और १०० राज्य कानूनों को मिला कर चार कोड या संहिताओं में बांट दिया जाए। ये चार संहिताएं हैं - वेतन नियमन, औद्योगिक संबंध, व्यवसायिक सुरक्षा - स्वास्थ्य व सेवा शर्तें तथा सामाजिक सुरक्षा नियमन। कुल मिला उद्देश्य यही है कि भारत में 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' सुनिश्चत करना।

वेतन, औद्योगिक संबंध और व्यवसायिक सुरक्षा संबंधी संहिता का मकसद है कि नियोक्ताओं को बिजनेस करने की सुगमता का अहसास हो लेकिन ट्रेड यूनियनों का आरोप है कि श्रमिकों पर इसका विपरीत प्रभाव होगा।

'सुरक्षा एवं कल्याण' संबंधी चौथे कोड में १५ केंद्रीय कानूनों को एक साथ मिला दिया गया है और इसके तहत प्राविडेंट फंड, पेंशन, लीव इनकैशमेंट और मेडिकल बेनेफिट संबंधी प्रावधान हैं। ये प्रावधान सभी श्रमिकों पर लागू हों चाहे वो पार्ट टाइम, कैजुअल, फिक्स टर्म वाले, घर से काम करने वाले या घरेलू हों।

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कारोबारी माहौल बनेगा

नए कोड में राज्यों की भूमिका बहुत सीमित कर दी गई है। केंद्र पूरे देश में एक समान न्यूनतम मजदूरी तय करेगी। ये भी तय होगा कि वैधानिक हड़ताल या कामबंदी की परिभाषा में क्या आएगा। इसके साथ नए कोड में ट्रेड यूनियनों की नई भूमिका का खाका तैयार किया गया है। सरकार का कहना है कि प्रस्तावित कोड पुराने और जटिल श्रम नियमों को सरल करेगा, कारोबारी माहौल और रोजगार में सुधार लाएगा।

श्रमिक विरोधी होने का आरोप

इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड के तहत प्रस्तावित बदलावों में कहा गया है कि जिन फर्मों में ३०० से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं सिर्फ उन्हीं फर्मों को अपने कर्मचारी हटाने के लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी। पहले ये लिमिट १०० कर्मचारी की रखी गई थी। हड़ताों पर तो लगभग पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की बात है। हड़ताल की नोटिस के लिए सख्त प्रावधान किए गए हैं और इसका उल्लंघन करने पर सख्त दंड भी रखा गया है। न्यूनतम वेतन अब सिर्फ पांच-पांच साल में रिवाइज किया जाएगा। बिल में एक विवादास्पद प्रावधान फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट का है जिससे कंपनियों को कम अवधि के लिए श्रमिकों को ठेकेदारों के जरिये सीधे काम पर रखने की अनुमति मिल जायेगी। एक निश्चित अवधि के लिए श्रमिकों को काम पर रखने से, नियोक्ता केवल उस अवधि के लिए मजदूरी और लाभ का भुगतान करने के लिए प्रतिबद्ध होंगे, जिसकी उन्हें वास्तव में आवश्यकता है। यह एक कंपनी के लिए मानव संसाधन लागत को कम करेगा। यूनियनों ने संबंधित बिल को श्रमिक विरोधी करार देते हुए कहा है कि नए कोड से नियोक्ताओं को कर्मचारियों को काम पर रखने बड़ी आसानी से निकलने की अनुमति मिल जायेगी। ये भी कहा जा रहा है कि इस कोड में श्रमिकों के हितों की रक्षा की कोई बात नहीं है। इस कोड के चलते श्रमिकों के लिए काम की बेहतर शर्तों और वेतन जैसे मुद्दों पर बातचीत करना कठिन हो जाएगा

जरूरी है श्रम कानूनों में सुधार

भारत में श्रम कानून में सुधार आवश्यक है। वर्तमान में, मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, श्रम कल्याण, व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य और औद्योगिक संबंधों के लिए केंद्र सरकार के ४४ श्रम-संबंधित कानून हैं। श्रम समवर्ती सूची में है जिससे केंद्रीय और राज्य सरकारों को कानून बनाने का अधिकार है नजीतन १०० से अधिक राज्य श्रम कानून हैं। श्रम मंत्रालय के अनुसार औद्योगिक संबंध संहिता तीन पुराने श्रम कानूनों - ट्रेड यूनियनों अधिनियम, १९२६, औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम, १९४६ और औद्योगिक विवाद अधिनियम, १९४७ की जगह लेगी।

पिछले साल पेश हुआ था बिल

इंडïस्ट्रियल रिलेशंस कोड २०१९ पिछले साल २८ नवम्बर को श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने लोक सभा में पेश किया था। ये कोड तीन श्रम कानूनों - इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट १९४७, ट्रेड यूनियन्स एक्ट १९२६ और इंडस्ट्रियल इंप्लायमेंट (स्टैंडिंग आर्डर) एक्ट १९४६ - का स्थान लेगा।

वेतन संहिता २०१९

इस साल वेतन संहिता २०१९ की अधिसूचना जारी कर दी गई है। इससे देश के करीब ५० करोड़ मजदूरों को एक समान न्यूनतम वेतन मिलने का रास्ता साफ हो गया है। अब न्यूनतम वेतन से कम वेतन देना अपराध माना जाएगा। अब एक समान काम के बदले एक जैसा वेतन देना भी जरूरी होगा। नया कानून चार पुराने कानूनों - मजदूरी भुगतान कानून १९३६, न्यूनतम मजदूरी कानून १९४८, बोनस भुगतान कानून १९६५ और समान पारिश्रमिक अधिनियम १९७६ की जगह ले चुका है। इस विधेयक के दायरे में निजी, सरकारी, संगठित और गैर-संगठित सभी तरह के क्षेत्रों में काम करने वाले कर्मचारी आएंगे। अब मजदूरी में वेतन, भत्ते आदि के रूप में बताए गए अन्य सभी घटक शामिल रहेंगे। हालांकि, इसमें कर्मचारी को मिलने वाला बोनस या कोई यात्रा भत्ता शामिल नहीं होगा। केंद्र या राज्य सरकार सामान्य कार्य दिवस के लिए काम के घंटे भी तय कर सकती है। जबकि सामान्य कार्य दिवस के दौरान अगर कर्मचारी तय घंटों से ज्यादा काम करता है तो वो ओवरटाइम मजदूरी का हकदार होगा। लेकिन यह कितना होगा ये साफ नहीं किया गया है। यहां यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि अतिरिक्त कार्य के लिए उसे मिलने वाली मजदूरी की दर, आम दर के मुकाबले कम से कम दोगुनी होगी।

विधेयक में ये भी सुनिश्चित किया गया है कि मासिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों को अगले महीने की ७ तारीख तक वेतन मिलेगा। इसके अलावा, जो लोग साप्ताहिक आधार पर काम कर रहे हैं, उन्हें हफ्ते के आखिरी दिन और दैनिक कामगारों को उसी दिन पारिश्रमिक मिलना सुनिश्चित होगा।

न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देने या अधिनियम के अन्य किसी प्रावधान का उल्लंघन करने पर उस पर ५० हजार रुपए का जुर्माना लगेगा। यदि पांच साल के दौरान वो दोबारा ऐसा करता है तो उसे कम से कम ३ माह तक का कारावास और १ लाख रुपए तक जुर्माना या फिर दोनों तरह की सजा दी जा सकेगी।

 

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