Jhansi News: महज सवा तीन एकड़ भूमि पर चल रही जैविक खेती की रिसर्च
Jhansi News: किसानों को जैविक खेती की ओर प्रेरित करने के लिए केवीके सहित केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में रिसर्च की जा रही है। इसमें गेहूं, चना, अलसी, सरसों के अलावा सब्जियों में लौकी, कद्दू और भिंडी का चयन किया गया है।
Jhansi News: जैविक खेती के आंदोलन को प्रारंभ हुए लगभग 22-23 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन जैविक खेती पर रिसर्च ही चल रही है। कृषि विज्ञान केंद्र सहित केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में जैविक खेती पर लगभग सवा तीन एकड़ भूमि पर जैविक खेती पर प्रयोग किए जा रहे हैं। जिनमें केवीके 3 एकड़ और केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय महज एक हजार वर्गमीटर जगह में शोध कार्य को कर रहा है। मजे की बात तो यह है कि इस सवा तीन एकड़ भूमि पर खाद्यान्न फसलों के अलावा सब्जी और फल पर भी प्रयोग किया जा रहा है। इसके अलावा गौपालन, बकरी पालन, मछली पालन सहित कृषि से जुड़े अन्य पहलुओं पर भी शोध चल रहे हैं।
किसानों को जैविक खेती की ओर प्रेरित करने के लिए केवीके सहित केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में रिसर्च की जा रही है। इसमें गेहूं, चना, अलसी, सरसों के अलावा सब्जियों में लौकी, कद्दू और भिंडी का चयन किया गया है। रिसर्च में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और अन्य रसायनों का प्रयोग बिल्कुल नहीं किया जा रहा है। पूरी तरह से जैविक पद्धति से फसलें उगाई जा रहीं हैं। पर रकबा इतना कम है कि खाद्यान्न, सब्जियों, फल उत्पादन के साथ-साथ पशुपालन, मछली पालन पर रिसर्च कैसे संभव होगी, यह सवाल पैदा हो गया है।
जैविक खेती को बढ़ावा देने की कही जा रही बात
रासायनिक खादों के दुष्प्रभावों से फसल उत्पादों को बचाने के लिए दो दशक पूर्व सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात कही गई थी। झांसी के कृषि विभाग से जुड़े अधिकारी और विभागीय अमला इसके क्रियान्वयन पर जुट गया। तत्कालीन उप निदेशक कृषि ने झांसी के कई गांवों में जैविक खेती की अलख जगाई। किसानों ने खेती में रासायनिक खादों, कीटनाशकों यहां तक कि भंडारण में भी रसायनों का उपयोग बंद कर दिया।
झांसी के गणेशगढ़, रामगढ़ और बघौरा को 2007-8 तक रसायनमुक्त गांव बनाने का दावा भी किया। इस दौरान कृषि विभाग ने इन गांवों में वर्मी कंपोस्ट(केंचुआ खाद), मटका खाद, कंपोस्ट खाद का उपयोग किया जाने लगा। लेकिन जब यहां के किसान जैविक उत्पाद लेकर बाजार में गए तो उन्हें अपेक्षित कीमत नहीं मिली। इसकी वजह थी कि रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए गए गेहूं और सब्जी की कीमत ही जैविक उत्पादों पर लगाई गई। जबकि जैविक पद्धति से उत्पादित फसलों की लागत कहीं अधिक थी। साथ ही बाजार में कोई जैविक खाद, कीटनाशकों या फसल सुरक्षा उत्पाद न होने से जैविक खेती धीरे-धीरे कम होने लगी। इसके बाद लगभग 10-12 वर्ष तक जैविक की बात होनी लगभग बंद सी हो गई। बाद में सरकार को कृषि विभाग को कोई टास्क देना था तो प्राकृतिक खेती का शिगूफा छेड़ दिया। साथ ही जीरो बजट खेती की बात की जाने लगी। इस बीच गो आधारित खेती का फंडा भी सामने आया है। ऐसे में किसान खुद निर्णय नहीं ले पा रहा है। कि वह क्या करे?
सरकार ने जैविक खेती को पुन: बढ़ावा देने की बात कही। इसके तहत केवीके (कृषि विज्ञान केंद्र) में तीन एकड़ प्रक्षेत्र में गेहूं, अलसी और चना की जैविक खेती पर रिसर्च करने की बात कही गई। इसके अनुपालन में वर्ष 2023-24 से इस पर रिसर्च प्रारंभ की गई है। वहीं केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय द्वारा जैविक खेती पर प्रयोग किए जा रहे हैं। चूंकि विश्वविद्यालय में एक बीघा जमीन पर जैविक खाद्यान्न, सब्जियों और फलों की खेती पर प्रयोग किए जा रहे हैं। इसका एक हेक्टेयर रकबा किया जाएगा।