लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनउ बेंच में चल रहा दो दिवसीय राज्य स्तरीय न्यायिक अधिकारीगण सम्मेलन 2017 रविवार को संपन्न हो गया। समापन अवसर पर प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए हुए करीब साढ़े बारह सौ प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके सीकरी ने मध्यस्तता से मुकदमों के निपटारे पर अधिक जोर दिया।
उन्होंने कहा कि तमाम विवाद जैसे कि पारिवारिक मसले व सिविल प्रकृति के तमाम मुकदमों को मध्यस्तता के जरिये ही कम समय में निपटाया जा सकता है। इसमें समय व पैसे की काफी बचत हो सकती है। उन्होने मुकदमो को तेजी के साथ निपटाने की बात कही परंतु साथ ही इस बात पर भी जोर दिया कि इसमें न्याय को पीछे नहीं छूटना चाहिए।
जस्टिस सीकरी ने कहा कि न्यायपालिका को संवेदनशील होना चाहिए। खासकर उन्होने रेप पीड़िता के साथ अति संवेदनशीलता से पेश आने की बात कही।
कार्यक्रम में महिलाअेां का शारीरिक रूप से शोषण विषय पर बोलते हुए पद्मश्री सुनीता कृष्णन ने कहा कि महिलाओं को शारीरिक प्रताड़ना के चंगुल से छुड़ाने के बाद उन्हें तत्काल मां बाप के साथ जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योकि इससे पुनः उनके उसी दलदल में फंसने का अंदेशा होता है। इसके पीछे का कारण बताते हुए उन्हेाने कहा कि कई बार फर्जी मां बाप बनकर पीड़िताओ को छुड़ाने की बातें सामने आयी हैं।
त्वरित न्याय के लिए प्रबंधन तथा व्यवहार एवं आपराधिक मामलेां केा पांच वर्ष में समाप्त करने के लिए कार्ययोजना विषय पर बोलते हुए जस्टिस कृष्ण मुरारी व जस्टिस विक्रम नाथ ने अधीनस्थ न्यायालय के जजों को मुकदमों में कम से कम तारीखें देने की बात पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यदि अति आवश्यक हो तो ही तारीख बढ़ायी जाये और वह भी छोटी छोटी तारीखें ही दी जाएं।
कार्यक्रम का समापन करते हुए चीफ जस्टिस दिलीप बी भोंसले ने कहा कि सम्मेलन का उद्देश्य अधीनस्थ न्यायालयों के जजों को टिप्स देना था कि किस प्रकार से विचाराधीन केसों की संख्या को कम किया जा सके। कार्यक्रम में उच्च न्यायिक सेवा के न्यायिक अधिकारियों ने भाग लिया था।