इलाहाबाद : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने संयुक्त सचिव बेसिक शिक्षा लखनऊ को नियम 8(2)(डी) के तहत महिला अध्यापिकाओं को अंतर्जनपदीय तबादलों के आनलाइन आवेदन दाखिल करने के संबंध में तत्काल आदेश जारी करने का निर्देश दिया है।
अभी तक तैयार साफ्टवेयर में पांच साल की सेवा वाले अध्यापकों के अंतर्जनपदीय तबादले के आवेदन आनलाइन स्वीकार किये जा रहे हैं। पांच साल की कम सेवा वाली महिला अध्यापिकाओं के आवेदन तकनीकी खामी के चलते नहीं भरे जा रहे हैं। सरकार ने 16 जनवरी से 29 जनवरी तक आनलाइन आवेदन दाखिल करने की अवधि नियत की है।
सरकार ने माना कि नियम 8(2)(डी) के तहत पति-पत्नी व सास-ससुर के नजदीकी जिले में तबादले की अर्जी स्वीकार की जायेगी। कोर्ट ने सरकार से इस संबंध में बेहतर सुझाव मांगा है और सभी याचिकाओं को सुनवाई हेतु छह फरवरी को पेश करने का निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति एम.सी त्रिपाठी ने विभा सिंह कुशवाहा व 21 अन्य की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। याचियों का कहना है कि वे सहायक अध्यापिका हैं। याचिका में सचिव बेसिक शिक्षा परिषद के आदेश 12 जनवरी 18 की वैधता को चुनौती दी गयी है। याची का कहना है कि ये आदेश नियम 8(2)डी के विपरीत है।
याची विभा ने कुशीनगर से बलिया अपने पति की तैनाती जिले में तबादले की मांग की है। किन्तु आवेदन स्वीकार न होने के कारण आवेदन स्वीकार नहीं हो पा रहा है। नियम 8(2)डी के तहत पति-पत्नी या सास- ससुर के पास तबादले की मांग की जा सकती है।
कोर्ट ने कहा कि सामान्य नियम पर विशेष नियम प्रभावी होंगे। सरकार ने पांच साल सेवा पूरी करने वालों को 25 फीसदी खाली पदों पर तबादले की अनुमति दी है। किन्तु इस सामान्य नियम पर विशेष नियम प्रभावी है। पांच साल से कम की अध्यापिकाओं को तबादले की अर्जी देने की छूट दी गयी है। जिनके पति पैरा मिलिट्री फोर्स में है। उन्हें सास-ससुर के नजदीक तबादले की मांग में अर्जी देने की छूट दी गयी है। अर्जी स्वीकार न होने से छूट अर्थहीन हो रही है।
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नजूल जमीन से बेदखली नोटिस के खिलाफ याचिका खारिज
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 39 पीडी टण्डन रोड इलाहाबाद स्थित नजूल जमीन पर कनाडा में रह रही कुदसिया सैदुल्लाह को एक चौथाई जमीन फ्री होल्ड करने की मांग में दाखिल याचिका पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है। जिलाधिकारी की भूमि से याची की बेदखली नोटिस के खिलाफ याचिका खारिज कर दी है।
यह आदेश न्यायमूर्ति तरूण अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति अशोक कुमार की खण्डपीठ ने दिया है। याची का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट में हुए समझौते के आधार पर जमीन का एक हिस्सा उसके पक्ष में फ्री होल्ड किया जाय और जमीन से वक्फ मुहम्मद हुसैन का नाम हटाया जाय। यह जमीन 29 कानपुर रोड व 39 पीडी टण्डन रोड पर दो एकड़ है। कोर्ट ने कहा है कि समझौते में सरकार पक्षकार नहीं थी। यह दो लाभार्थियों के बीच करार है।
याची केवल 25 फीसदी भवन के हकदार है। इसलिए एक चौथाई जमीन फ्री होल्ड करने की मांग भ्रमपूर्ण है। याची को प्रश्नगत जमीन में कोई अधिकार नहीं ह। याची ने सरकार को जमीन फ्री होल्ड करने की अर्जी भी नहीं दी है और जमीन की लीज भी समाप्त हो गयी है। नवीनीकरण भी नहीं हुआ है। जिला कलेक्टर ने 12 जून 2012 को याचीगण को लीज खत्म होने के कारण जमीन खाली करने की नोटिस जारी की थी। जिसे याचिका में चुनौती दी गयी थी। नोटिस में कोई अवैधानिकता नहीं है। याची कनाडा के स्थायी निवासी हैं। उनका जमीन पर भौतिक कब्जा भी नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है।
एक याचिका दो बार हुई सूचीबद्ध, जांच का आदेश
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मुकदमों की सूचना उपलब्ध कराने के लिए लागू नये सीआईएस सिस्टम की बदौलत तमाम गड़बड़ियां सामने आ रही हैं।
बुधवार को भी ऐसा ही हुआ जब एक ही याचिका दो अलग-अलग नोटिस नेचर और पेटीशन नंबर के साथ एक ही अदालत में सूचीबद्ध हो गयी। जब कोर्ट के समक्ष इसका खुलासा हुआ तो इसे गंभीरता से लेते हुए महानिबंधक को जांच का निर्देश दिया है। कोर्ट ने महानिबंधक से कहा कि ऐसी चूक दुबारा नहीं होनी चाहिए, वरना इसका लाभ उठा कर फर्जी दस्तावेज तैयार किया जा सकता है। रामकृष्ण कन्या हाईस्कूल गोरखपुर की याचिका पर जस्टिस मनोज मिश्र सुनवाई कर रहे थे।