Lok Sabah Election: खीरी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र , केंद्रीय मंत्री के सामने हैट-ट्रिक लगाने की चुनौती

Lok Sabah Election: खीरी को लखीमपुर-खीरी जिले के नाम से भी जाना जाता है। पहले इस जगह को लक्ष्मीपुर जिले के नाम से जाना जाता था

Report :  Neel Mani Lal
Update: 2024-05-12 09:37 GMT

Lakhimpur Kheri Photo - Social Media 

Lok Sabah Election: खीरी को लखीमपुर-खीरी जिले के नाम से भी जाना जाता है। पहले इस जगह को लक्ष्मीपुर जिले के नाम से जाना जाता था। पुराने समय में यह जिला खर के वृक्षों से घिरा हुआ था सो शायद इसीलिए इसका नाम खीरी पड़ गया। यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में गोला- गोकरनाथ छोटी काशी, देवकाली, लिलौटीनाथ और मेढक मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा क्षेत्र हैं।यह जिला शारदा, घाघरा, जैसी नदियों के साथ प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, जो तराई के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ गन्ने की प्रमुख खेती होती है और प्रदेश में सबसे अधिक चीनी मिले यहीं हैं।

विधानसभा क्षेत्र

खीरी लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। ये हैं: पालिया, निघासन, गोला गोकर्णनाथ, श्रीनगर और लखीमपुर। 2022 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को इन सभी सीटों पर जीत मिली थी। 2017 के चुनाव में भी भाजपा ने पांचों सीटों पर क्लीन स्वीप किया था।


जातीय समीकरण

अनुमान है कि खीरी में करीब सवा तीन लाख मुस्लिम आबादी है । जबकि सवा चार लाख दलित हैं। लेकिन सबसे ज्यादा 4 लाख 75 हजार ओबीसी हैं। इसके अलावा 16 प्रतिशत ब्राह्मण हैं और सिख मतदाता भी ठीक ठाक संख्या में हैं। ओबीसी में कुर्मी बिरादरी के मतदाता ही इस सीट पर निर्णायक भूमिका अदा करते हैं।


राजनीतिक इतिहास और पिछले चुनाव

खीरी संसदीय सीट पर कांग्रेस का लंबे समय तक दबदबा रहा है। इस सीट पर वर्मा परिवार का 35 साल तक कब्जा रहा है। इसी सीट से पिता, मां और बेटा तीनों सांसद बने वह भी तीन-तीन बार। यहां से वरिष्ठ कांग्रेसी नेता बाल गोविंद वर्मा लंबे समय तक सांसद रहे। जब उनकी मृत्यु हुई तो उनकी पत्नीव ऊषा वर्मा सांसद बनीं। उसके बाद उनके बेटे रवि वर्मा यहां से सांसद रहे। उन्होंउने लेकिन कांग्रेस की जगह सपा का दामन थाम लिया था।

पिछले चुनावों की बात करें तो 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के खुशवक्त राय यहाँ के पहले प्रतिनिधि बने थे।

इसके बाद 1962, 67 और 71 में कांग्रेस के बालगोविन्द वर्मा ने जीत दर्ज की। 1977 के लहर में जनता पार्टी के सूरत बहादुर शाह ने इस सीट पर कब्ज़ा जमाया।

1980 के चुनाव में कांग्रेस के बाल गोविन्द वर्मा जीत गए और उनके निधन के बाद उसी साल हुए उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट पर उषा वर्मा विजयी रहीं। उषा वर्मा ने इसके बाद 1984,1989 और 2004 के चुनाव में भी जीत दर्ज की।

1991 और 1996 के चुनाव में भाजपा के गेंदन लाल कनौजिया ने सीट पर कब्जा जमाया तो 1998 और 1999 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के रवि प्रकाश वर्मा विजयी रहे।

2009 के कांग्रेस के जफ़र अली नकवी ने जीत दर्ज की। इसके बाद 2014 और 2019 के चुनाव में लगातार भाजपा के अजय मिश्र विजयी रहे।

इस बार कौन है मैदान में

इस बार भाजपा ने फिर अजय मिश्र "टेनी’’ पर भरोसा जताया है जबकि समाजवादी पार्टी ने उत्कर्ष वर्मा और बसपा बे अंशय कालरा को उतारा है। लगातार दो बार जीतकर केंद्र में मंत्री बनने के बाद अजय मिश्रा टेनी की निगाहें जीत की हैट्रिक पर हैं।


स्थानीय मुद्दे

बेरोजगारी, पेयजल, शिक्षा, जंगली जानवरों से डर, अधूरे विकास कार्य, ग्रामीण क्षेत्रों में विकास तथा किसानों की समस्याएं प्रमुख मुद्दे हैं।

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