UP Politics: कौन हैं नेता रवि वर्मा? 2024 चुनाव में बिगाड़ सकते हैं सपा का खेल...तो इसलिए है कांग्रेस खुश

Lok Sabha Election 2024 : रवि प्रकाश वर्मा के सपा का साथ छोड़ने का असर लखीमपुर खीरी ही नहीं बल्कि सीतापुर, बरेली, शाहजहांपुर, बाराबंकी लोकसभा सीटों पर भी देखने को मिल सकता है। कांग्रेस रवि वर्मा के जरिए कुर्मी वोट बैंक को साधने की कोशिश में जुटी है।

Update: 2023-11-03 10:45 GMT

रवि प्रकाश वर्मा (Social Media)

Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) को कांग्रेस ने बड़ा झटका दिया है। सपा के राष्ट्रीय महासचिव रहे रवि प्रकाश वर्मा (SP Leader Ravi Verma) ने शुक्रवार (03 नवंबर) ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपने इस्तीफा देने का कारण लखीमपुर खीरी में सपा की आंतरिक गतिविधियों को बताया। इसके बाद चर्चा है कि रवि वर्मा कांग्रेस में शामिल होने जा रहे हैं। दूसरी तरफ, कांग्रेस प्रदेश कमेटी ने उन्हें पार्टी में शामिल करने की तैयारियां पूरी कर ली हैं।

कांग्रेस जॉइन करने पर रवि प्रकाश वर्मा ने कहा है, 'मैं पहले ही अपना पद छोड़ चुका था। अखिलेश मेरी बात नहीं सुन रहे थे। मैं पार्टी में सबसे सीनियर नेता रहा। गांव-गांव तक साइकिल को पहुंचाया। अब वहां मेरे लिए अपमानजनक स्थिति बन रही थी। इसलिए इस्तीफा दिया। कांग्रेस मेरा बैकग्राउंड रहा है। जल्दी ही जॉइन करूंगा।' रवि वर्मा के इतना कहते ही 2024 लोकसभा चुनाव से पहले सपा के लिए इसे झटके के तौर पर देखा जाने लगा। तो चलिए जानते हैं कौन हैं रवि प्रकाश वर्मा?

कौन हैं रवि प्रकाश वर्मा? (Who is Ravi Prakash Verma?)

लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri News) के गोला निवासी रवि प्रकाश वर्मा खीरी संसदीय सीट से दो बार सांसद रहे हैं। एक बार वो राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं। इसी साल जनवरी महीने में समाजवादी पार्टी ने उन्हें तीसरी बार राष्ट्रीय महासचिव बनाया था। मगर, कुछ ही महीनों बाद उनकी सपा से अनबन सामने आने लगी। उसी वक़्त से ये कयास लगाया जा रहा था कि, रवि वर्मा लोकसभा चुनाव से पहले सपा का साथ छोड़ सकते हैं।

रवि प्रकाश वर्मा का राजनीतिक सफर

बता दें, रवि प्रकाश वर्मा के पिता बाल गोविंद वर्मा (Bal Govind Verma) साल 1962 से 1971 और 1980 में सांसद चुने गए थे। कुछ दिन बाद उनका देहांत हो गया। जिसके बाद हुए उपचुनाव में रवि प्रकाश की माता जी उषा वर्मा सांसद चुनी गईं। वह वर्ष 1984 से 1989 तक सांसद रहीं। फिर रवि प्रकाश वर्ष ने राजनीति में कदम रखा। वर्ष 1998 से 2004 तक सपा से सांसद रहे। इसके बाद 2014 से 2020 तक राज्यसभा सदस्य भी रहे।  

खीरी सीट पर नहीं बन रही थी बात

कुल मिलकर कहें तो रवि प्रकाश वर्मा को राजनीति विरासत में मिली। उनके माता-पिता भी सांसद रह चुके हैं। अब कयास लगाया जा रहा है कि उनकी बेटी पूर्वी वर्मा (Purvi Verma) भी सपा का दामन छोड़ सकती हैं। कहा तो ये भी जा रहा है कि, समाजवादी पार्टी ने खीरी सीट से लोकसभा प्रत्याशी के तौर पर रवि प्रकाश वर्मा को छोड़ किसी और नेता को प्राथमिकता दी है। रवि प्रकाश वर्मा भी इसी सीट से दावेदार थे। हालांकि, उनकी बात पार्टी आलाकमान से नहीं बन रही थी। आख़िरकार उन्होंने सपा छोड़ने का फैसला लिया। 

रवि प्रकाश वर्मा बिगाड़ सकते हैं खेल?

रवि प्रकाश वर्मा पुराने राजनेता हैं। अपने इलाके में उनका कद भी बड़ा है। वो कुर्मी समाज के कद्दावर नेता हैं। लखीमपुर खीरी जिले की आबादी करीब 50 लाख के आसपास है। जिले में ओबीसी आबादी सबसे अधिक करीब 35 फीसदी है।  इनमें कुर्मी आबादी सबसे ज्यादा है। समाजवादी पार्टी इसी गणित को साधते हुए रवि प्रकाश वर्मा को अपना प्रत्याशी बनाती रही थी। जनवरी महीने में राष्ट्रीय महासचिव बनाने के पीछे भी इसी जाति के वोट बैंक को साधना था। 2024 लोकसभा चुनाव में टिकट न मिलने की बनती स्थिति को देखते हुए वो सपा से नाराज चल रहे थे। यहां बता दें कि, रवि वर्मा की बेटी पूर्वी वर्मा भी सपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुकी हैं, मगर उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

कुर्मी वोट बैंक पर पड़ सकता है असर

रवि वर्मा के सपा का साथ छोड़ने का असर लखीमपुर खीरी ही नहीं बल्कि सीतापुर, बरेली, शाहजहांपुर, बाराबंकी लोकसभा सीटों पर भी देखने को मिल सकता है। कांग्रेस रवि वर्मा के जरिए कुर्मी वोट बैंक को साधने की कोशिश में जुटी है। कांग्रेस को उम्मीद है कि, रवि वर्मा के पार्टी जॉइन करते ही कई अन्य कुर्मी नेता भी उनके साथ आ सकते हैं। 

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