Lok Sabha Chunav: कभी कांग्रेस का था गढ़ मेरठ, अब हिस्से में सीट भी नहीं
Lok Sabha Election 2024: 17 में से सात बार मेरठ सीट पर कांग्रेस पार्टी की जीत हो चुकी है। हालांकि इस बार गठबंधन में ये सीट सपा के हिस्से में चली गई है।
Meerut News: मेरठ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक बड़ा जिला है। सांप्रदायिक सौहार्द को प्रभावित करने वाली घटनाएं यहां अक्सर सामने आती रही हैं। लड़कियों की सुरक्षा और लव जिहाद जैसे विवादों से भी मेरठ का नाता रहा है। वैसे मेरठ को रावण की ससुराल भी कहा जाता है। बताया जाता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी मेरठ की रहने वाली थी और यहां पर मंदोदरी के पिता मय दानव का राज महल हुआ करता था।
7 बार जीत चुकी है कांग्रेस
राजनीति की बात करें तो मेरठ का प्रदेश की राजनीति में भी काफी प्रभाव माना जाता है। मेरठ से ही बीजेपी के विधायक रहे लक्ष्मीकांत वाजपेयी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। इसके अलावा मेरठ से जीते सांसद केन्द्र सरकार और पार्टी संगठन में अहम पदों पर रह चुके हैं। पार्टी की बात करें तो यहां कभी कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था लेकिन अब यहां बीजेपी, सपा और बसपा का दबदबा नजर आता है। बसपा फीकी पड़ी है तो सपा ने तेजी पकड़ ली है। कांग्रेस की हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस बार गठबंधन में इंडिया गठबंधन के तहत सीट तक सपा के हिस्से में आई है। जिले में 7 विधानसभा क्षेत्र हैं। लेकिन,यहां कई सालों से कांग्रेस का प्रतिनिधित्व नहीं है। यही हाल मेरठ लोकसभा सीट का है जहां 1999 के बाद से कांग्रेस को जीत नसीब नही हो सकी है। वैसे इस सीट पर 17 बार चुनावों में सात बार कांग्रेस बाजी मारने में सफल हो चुकी है। लेकिन,यह सब पुरानी बाते हैं।
मेरठ रहा है कांग्रेस का गढ़
मेरठ में कांग्रेस एक वह दौर भी रहा है जब कांग्रेस से टिकट का मतलब दिल्ली-लखनऊ का पहुंचने का टिकट हुआ करता था। जिले की 11 सीटों में से अधिकांश सीटों पर कांग्रेस का कब्जा रहा करता था। गौरतलब है कि पहले बागपत जनपद भी मेरठ का ही हिस्सा था। 1984 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो जिले की मेरठ शहर,मेरठ कैंट,खरखौदा,किठौर,हस्तिनापुर,सरधना,खेकड़ा,बागपत,सिवालखास(सु) पर कांग्रेस को शानदार कामयाबी मिली थी। इस चुनाव के बाद से कांग्रेस का पतन होना शुरु हुआ था। मसलन,अगले चुनाव यानी 1989 में कांग्रेस का मेरठ में खाता तक नहीं खुल सका। 1991 में मेरठ शहर,कैंट,खरखौदा,किठौर और हस्तिनापुर के चुनावी दंगे के कारण रद्द हो गए थे। शेष बची सीटों सरधना,खेकड़ा,बागपत,छपरौली,बरनाना व सिवासखास में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इसी तरह 1993 में कांग्रेस के हिस्से में केवल एक सीट(बागपत) आई थी।