Meerut News: नासा के पूर्व वैज्ञानिक का आवास अब शैक्षिक उद्देश्यों के लिए CCSU के हवाले
Meerut News: यह घर शहर के बुढ़ाना गेट क्षेत्र में है और लगभग 400 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। इस संपत्ति की कीमत करोड़ों में बताई जा रही है।
Meerut News: पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की विशेष अपील पर मिसाइल की आंख कहे जाने वाले इंफ्रा रेड डिटेक्टर को देश में ही निर्मित करने के मिशन पर भारत लौटे नासा के पूर्व वैज्ञानिक और मेरठ निवासी डॉ रमेश चंद त्यागी की अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उनके परिवार ने उनका पैतृक घर मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय को दान कर दिया है। यह घर शहर के बुढ़ाना गेट क्षेत्र में है और लगभग 400 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। इस संपत्ति की कीमत करोड़ों में बताई जा रही है।
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय कि कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला ने आज न्यूजट्रैक बातचीत में इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि डॉ रमेश चंद त्यागी जो कि प्रोफेसर थे। नासिक के वैज्ञानिक रहे हैं। उन्होंने चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के छात्रों के साथ पीएचडी भी की है । उनके दोनों बच्चे अमेरिका में हैं। उन्होंने अपने पैतृक घर को शैक्षिक उद्देश्यों के लिए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय को दान किया है। विश्वविद्यालय इस जमीन का उपयोग कैसे करेगा। इस सवाल के जवाब में कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला ने कहा कि यहां लाइब्रेरी भी हो सकती है। लर्निंग कंप्यूटर सेंटर भी हो सकता है। डॉ रमेश चंद त्यागी जी म्यूजिक के बहुत शौकीन थे। म्यूजिक को लेकर भी कुछ हो सकता है। फिलहाल इसका निर्णय कमेटी करेगी।
87 वर्ष की आयु में बीमारी के कारण निधन हुआ
सीसीएसयू में निदेशक (अनुसंधान और विकास) प्रोफेसर बीर पाल सिंह का कहना है कि उन्होंने त्यागी जी के साथ बहुत काम किया। न्यूज़ट्रैक के साथ बातचीत में प्रोफेसर वीरपाल सिंह ने बताया कि शहर के बुढ़ाना गेट निवासी नासा के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. आरसी त्यागी का चार साल पहले 87 वर्ष की आयु में बीमारी के कारण निधन हो गया था। उनके दोनों बेटे डॉ. दिनेश त्यागी और डॉ. राजेश त्यागी अमेरिका में हैं। डॉ. आरसी त्यागी की भांजी शिखा त्यागी ने चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला से मुलाकात करके उनके पैतृक आवास को विश्वविद्यालय का पुस्तकालय अथवा अध्ययन केंद्र बनाने के लिए देने की इच्छा जताई। विश्वविद्यालय ने इस मामले में कानूनी राय ली और मकान को लेने की मंजूरी दे दी। मकान देने की कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद डॉ. आरसी त्यागी के बेटे डॉ. दिनेश त्यागी और भांजी शिखा त्यागी ने कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला को मकान के कागजात सौंप दिए।
शिखा त्यागी न्यूज़ट्रैक से बातचीत में कहती है- मौसा जी (आरसी त्यागी) बुढ़ाना गेट वाले मकान में ही पैदा हुए थे। इसी मकान में पले-बढ़े भी थे। मैंने कई बार मौसा जी से कहा कि वह इस मकान को बेचकर दिल्ली मेरे पास आ जाएं। लेकिन, मौसा जी, यह मकान बेचने के पक्ष में बिल्कुल नहीं थे। उनकी आखिरी इच्छा यही थी कि अच्छी एक्टिविटीज में मकान का उपयोग हो जाए। वह कहते थे कि शैक्षिक उद्देश्यों के लिए घर का उपयोग हो ताकि भविष्य की पीढ़ियों को बेहतर भारत के लिए तैयार किया जा सके। यही इच्छा मेरी मौसी जी (डा.आर.सी. त्यागी की पत्नी) की भी थी। जिनका 2008 में कैंसर की बीमारी के चलते निधन हो गया था। शिखा त्यागी ने बताया कि डॉ. रमेश चंद त्यागी ने आईआईटी दिल्ली, पुणे में रक्षा अकादमी और देश में डीआरडीओ में काम किया। उन्होंने कहा कि मेरे मौसा जी ने 1970 के दशक में नासा के साथ काम किया था।
इंदिरा गांधी ने डॉ. त्यागी को इस लिए भारत वापस बुलाया था
शिखा त्यागी के अनुसार भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने डॉ. त्यागी को मिसाइल मिशन पर काम करने के लिए भारत वापस बुलाया था। इंदिरा गांधी ने डॉ त्यागी को भारत बुलाकर डीआरडीओ की सॉलिड स्टेट फिजिक्स लैबोरेट्री में सीधे प्रमुख वैज्ञानिक अधिकारी नियुक्त किया था। यहां टॉप के तीन अफसरों से मतभेद के चलते उनको इस बीच डिसमिस भी कर दिया गया। करीब 20 -25 साल मौसा जी विदाउट सैलेरी रहे। इस दौरान वे लंबे समय तक कानूनी लड़ाई लड़ते रहे। सरकार विरोधी केस होने के कारण कोई वकील उनका केस लड़ने को तैयार नहीं था। इस दौरान उन्होंने किसी से एक पैसे की भी मदद नहीं ली । उन्होंने लॉ की डिग्री लेकर खुद अपना केस लड़ा। आखिर में उनकी वर्ष 1995 में जीत भी हुई। सुप्रीम कोर्ट ने सारे बेनिफिट बहाल किए थे। वर्ष 2020 में 87 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनकी गिनती देश के वरिष्ठ फिजिक्स वैज्ञानिकों में होती थी। शिखा त्यागी के अनुसार इंदिरा जी द्वारा उन्हें वैज्ञानिकों को दिया जाने वाला सबसे बड़ा पुरस्कार एस भटनागर पुरस्कार भी दिया गया।
एक सवाल के जवाब में शिखा त्यागी बताती है कि मेरठ विश्वविद्यालय को यह मकान दान दिए जाने से पहले हमने इस मकान को बेचकर इसका पैसा दिल्ली आईआईटी को देने की भी योजना बनाई थी, जहां पर डॉ आरसी त्यागी प्रोफेसर रहे थे। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय को दान देने से पहले हमारी यही दो शर्त थी कि मकान केवल एकेडमिक पर्पस के लिए ही यूज होगा। दूसरी शर्त यहां जो कुछ भी बनेगा डॉ. आरसी त्यागी केंद्र के नाम से ही बनेगा। इसके अलावा घर के अंदर का एक कॉर्नर उनके नाम डेडिकेट करेंगे जिसमें उनकी लाइफ के बारे में जानकारी होगी।
डॉ. आरसी त्यागी के करीबी रहे डॉ. संदीप पहल के अनुसार मेरठ में रहते हुए उन्होंने एक दशक में म्यूजिकल स्केल पर 70 पेज का रिसर्च पेपर लिखा। इसमें सात सुर 'सा..रे..गा..मा..पा..धा..नी' की आवृत्ति को पाई (22/7) के प्रयोग से गणितीय सिद्धांत से साबित कर दिया। माना जाता है कि प्रत्येक सुर की अपनी विशेष आवृत्ति है, लेकिन इसके वैज्ञानिक प्रमाण नहीं थे। डॉ त्यागी का यह रिसर्च दुनियाभर में मील का पत्थर साबित हुआ।