मजदूरों को डर: आजीविका चलाना मुश्किल, सता रही कर्ज वापिसी की चिंता
व्यक्तिगत जरूरतों के लिए मजदूरों ने साहूकारो और बैंक दोनों से कर्ज ले रखा है।64 प्रतिशत प्रवासीय मजदूरों पर व्यक्तिगत एवं संस्थागत कर्ज है
झांसी: बुन्देलखण्ड में कोरोना महामारी के दौरान हुए लॉकडाउन के बाद उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड को मिलाकर लगभग 9 लाख मजदूरों की वापसी हुई है। इन मजदूरों के सामने सबसे बड़ी चिंता कर्ज वापसी की है। प्रवासीय मजदूरों के साथ झांसी, ललितपुर, महोबा, हमीरपुर में किये गए संवाद में निकलकर आया कि अंधिकाश मजदूर कर्जदार हैं। इनके पास बैंक एवं साहूकार दोनों का कर्ज है। कई लोग तो बुन्देलखण्ड में लगातार जलवायु परिवर्तन के कारण नष्ट हो रही प्रभावित हो रही कृषि के कारण ही गांव छोडकर शहर गए थे।
साहूकारों और बैंक से मजदूरों ने ले रखा हैं कर्ज
व्यक्तिगत जरूरतों के लिए मजदूरों ने साहूकारो और बैंक दोनों से कर्ज ले रखा है। एक अध्ययन के अनुसार 64 प्रतिशत प्रवासीय मजदूरों के ऊपर व्यक्तिगत एवं संस्थागत कर्ज है। इनकी आजीविका चले जाने के बाद अब इनको कर्ज वापसी की चिंता लगातार सता रही है। इस चिंता के कारण प्रवासीय मजदूर अवसाद में है। जिसका उदाहरण पिछले दिनों बुन्देलखण्ड में पिछले दिनों मऊरानीपुर के पास धवाकर गांव में रहने वाले एक किसान ने कर्ज अदा न कर सकने के दबाव में आत्महत्या कर ली ऐसे ही ललितपुर जिले के पटऊआ गांव के एक किसान कर्ज ना दे पाने के कारण आत्महत्या कर ली,
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अब तक पांच प्रवासीय मजदूरों के आत्महत्या की घटनाऐं सामने आयी है। जालौन में मनरेगा मजदूर यूनियन के संयोजक श्रीकृष्ण कहते हैं कि शहर छोड़कर गांव आए प्रवासीय मजदूरों की आजीविका का कोई स्थाई बदोबस्त नहीं हुआ है। जो लोग मनरेगा में भी काम कर रहे हैं उन्हें समय से मजदूरी नहीं मिल रही है। शहर में मजदूरों को पांच सौ रूपये मिलते थे मनरेगा में मात्र 200 रूपये मिल रहे है वह भी समय में से नहीं मिल रहे है जिसके कारण मजदूर अवसाद में है।
कई मजदूर कर्ज लेकर चला रहे हैं आजीविका
ललितपुर में सहरिया समाज के कपूर सहरिया कहते है जो प्रवासीय मजदूर आए हैं वह खेती करना चाहते हैं। लेकिन उनके पास बीज खाद्य और जुताई के लिए पैसा नहीं है। सरकार को इसके लिए सहयोग करने की आवश्यकता करने की आवश्कयता है। जिससे ये लोग खेती में लग सके। यदि आने वाले समय में प्रवासीय मजदूरों को स्थायी आजीविका के साधन नहीं मिले तो बेबसी में उनको पुनः गांव छोडकर शहर जाना पड़ेगा। क्योंकि सबसे बडी चुनौती अपना पेट पालना और साहूकार के कर्ज को वापिस करना है।
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प्रवासीय मजदूरों ने गांव में आकर फिर से साहूकारों से कर्ज लिया है। वह कर्ज लेकर अपनी आजीविका चला रहे है। सामाजिक कार्यकर्ता राजेश कुमार कहते है कि व्यक्तिगत कर्ज में ब्याज की दरे बहुत है एक बार जो मजदूर साहूकारो से कर्ज ले लेता है उसको चुकाने में उसकी जिंदगी खप जाती है। प्रवासीय मजदूरों को बिना ब्याज के संस्थागत ऋण दिलाया जाये ताकि वह साहूकारों के कर्ज की ऋण वापिसी कर सके और सम्मानजनक ढंग से जी सके।
रिपोर्ट- बी.के. कुशवाहा