Mirzapur: आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी तीनों कोणों पर अपने तीनों स्वरूप में विराजमान, जानिए क्या है त्रिकोण महिमा

Mirzapur News: विंध्य क्षेत्र में आदिशक्ति अपने तीनों रूप महालक्ष्मी, महासरस्वती तथा महाकाली के रूप में विराजमान होकर त्रिकोण बनाती हैं।

Report :  Brijendra Dubey
Update:2024-04-12 13:10 IST

Mata Vindhyavasini Mirzapur (photo: social media ) 

Mirzapur News: मिर्जापुर जनपद में स्थित सिद्धपीठ विंध्याचल धाम में आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी तीन कोण पर अपने तीनों स्वरूप में विराजमान हैं। विंध्य पर्वत पर विराजमान आदिशक्ति के तीनों रूप का त्रिकोण करने से भक्त को अनंत गुना फल की प्राप्ति होती है। हजारों मील का सफर करने वाली पतित पावनी गंगा धरती पर आकर विंध्य क्षेत्र में ही आदि शक्ति विंध्यवासिनी का पांव पखार कर त्रैलोक्य न्यारी शिव धाम काशी में प्रवेश करती हैं। भक्त गंगा स्नान कर देवी के धाम में हाजिरी लगाने के लिए प्रस्थान करते हैं। विंध्य क्षेत्र में आदिशक्ति अपने तीनों रूप महालक्ष्मी, महासरस्वती तथा महाकाली के रूप में विराजमान होकर त्रिकोण बनाती हैं। इनके मध्य में सदाशिव महादेव रामेश्वरम के नाम से विराजमान हैं।

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प्रभु श्री राम ने किया था त्रिकोण

तीर्थ पुरोहित अनुपम महाराज कहते हैं, त्रिकोण के मध्य विराजमान रामेश्वरम की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने किया था। शिव शक्ति के अद्भुत संगम से बने त्रिकोण परिक्रमा करने से दुर्गासप्तशती के पाठ का फल प्राप्त होता हैं। विंध्य क्षेत्र की महिमा अपरम्पार है। आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी अपने भक्तों को लक्ष्मी के रूप में दर्शन देती हैं। रक्तासुर का वध करने के बाद माता काली एवं कंस के हाथ से छूटकर महामाया अष्टभुजा सरस्वती के रूप में त्रिकोण पथ पर विंध्याचल विराजमान हैं। रक्तासुर का वध करने के बाद महाकाली इस पर्वत पर आसीन हुईं। उनका मुख आज भी आसमान की ओर खुला हुआ है। इस रूप का दर्शन विंध्य क्षेत्र में ही प्राप्त होता है।


भक्त आते हैं मां विंध्यवासिनी के दरबार में

तीन रूपों के साथ विराजमान माता विंध्यवासिनी के धाम में त्रिकोण करने से भक्तों को सब कुछ मिल जाता है जो उसकी कामना होती है। भक्त नंगे पांव व लेट-लेटकर दंडवत करते हुए 14 किलोमीटर की परिक्रमा कर धाम में हाजिरी लगाते हैं। जगत जननी माता विंध्यवासिनी अपने भक्तों का कष्ट हरण करने के लिए विन्ध्य पर्वत के ऐशान्य कोण में लक्ष्मी के रूप में विराजमान हैं। दक्षिण में माता काली व पश्चिम दिशा में ज्ञान की देवी सरस्वती माता अष्टभुजा के रूप में विद्यमान हैं। जब भक्त करुणामयी माता विंध्यवासिनी का दर्शन करके निकलते हैं तो मंदिर से कुछ दूर काली खोह में विराजमान माता काली का दर्शन मिलता है। माता के दरबार में उनके दूत लंगूर व जंगल में विचरने वाले पशु पक्षियों का पहरा रहता है। माता काली का मुख आकाश की ओर खुला हुआ है। माता के इस दिव्य स्वरूप का दर्शन रक्तासुर संग्राम के दौरान देवताओं को मिला था। माता उसी रूप में आज भी अपने भक्तों को दर्शन देकर अभय प्रदान करती हैं। माता के दर्शन पाकर भक्त अपने आप को धन्य मानते हैं।

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इस पुराण में किया गया है वर्णन

सिद्धपीठ विन्ध्याचल धाम में नवरात्र के दौरान माता के दर पर हाजिरी लगाने वालों की तादात प्रतिदिन लाखों में पहुंच जाती है। औसनस उप पुराण के विन्ध्य खंड में विन्ध्य क्षेत्र के त्रिकोण का वर्णन किया गया है। विन्ध्य धाम के त्रिकोण का अनंत महात्म्य बताया गया है। भक्तों पर दया बरसाने वाली माता के दरबार में पहुंचने वाले भक्तों के सारे कष्ट मिट जाते हैं। विद्वान पुरोहितों ने विंध्य धाम में त्रिकोण महिमा का बखान किया है।

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