संदीप अस्थाना
आजमगढ़: मुलायम सिंह यादव की संसदीय सीट पर उत्तराधिकार को लेकर सियासी घमासान छिड़ा हुआ है। इस दौड़ में सबसे आगे दो चेहरे दिखाई दे रहे हैं। इसमें एक चेहरा प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री एवं सपा के राष्ट्रीय महासचिव बलराम यादव का तो दूसरा चेहरा सपा जिलाध्यक्ष हवलदार यादव का है। इन दोनों लोगों में कई कारणों से हवलदार यादव का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है। अब आखिरी फैसला सपा सुप्रीमो को लेना है। सपाइयों के साथ-साथ इस जिले के आम लोगों की निगाहें भी सपा सुप्रीमो के फैसले की ओर टिकी हुई है।
सियासी घमासान में शामिल हैं कई चेहरे
मुलायम सिंह यादव के उत्तराधिकार को लेकर छिड़े सियासी घमासान में कई चेहरे शामिल हैं। इसमें सबसे बड़े हकदार सपा जिलाध्यक्ष हवलदार यादव हैं। इसकी खास वजह यह कि वह मजबूती के साथ वह पूरे जिले में सपा का परचम लहराए हुए हैं। वह खुद दो बार जिला पंचायत अध्यक्ष रहे हैं वहीं मौजूदा समय में उनकी बहू मीरा यादव जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। वह मुलायम सिंह यादव के संसदीय प्रतिनिधि भी रहे हैं। यह अलग बात है कि जब समाजवादी कुनबे में विवाद की स्थिति बनी थी तो हवलदार यादव मजबूती के साथ अखिलेश यादव के साथ खड़े थे। जबकि सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष रामदर्शन यादव अपने नेता शिवपाल यादव के साथ खड़े हो गए।
शिवपाल यादव ने रामदर्शन को इसी का इनाम दिया और उन्हें मुलायम सिंह यादव का संसदीय प्रतिनिधि बनवा दिया। मौजूदा समय में रामदर्शन यादव अपने नेता शिवपाल यादव के दल के आजमगढ़ मंडल के प्रभारी हैं। सपा के देशस्तर के महासचिव, प्रदेश सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री व एमएलसी बलराम यादव भी आजमगढ़ से टिकट पाने की हर जुगत लगाए हुए हैं। दल के अंदर उनका चाहे जितना भी बड़ा कद क्यों न हो मगर इस जिले में उनका जनाधार केवल अतरौलिया विधानसभा क्षेत्र तक ही सिमटा हुआ है, जहां से वह कई बार विधायक रह चुके हैं और मौजूदा समय में इस सीट से उनके बेटे डा.संग्राम यादव विधायक हैं।
अतरौलिया विधानसभा तक ही उनका जनाधार सिमटे होने की खास वजह यह है कि उन्होंने सपा की सरकारों में केवल अतरौलिया विधानसभा क्षेत्र में ही विकास कार्य किया है। अतरौलिया विधानसभा क्षेत्र जिले के लालगंज सुरक्षित संसदीय क्षेत्र में पड़ता है। इसके अलावा सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष अखिलेश यादव, पूर्व राज्यसभा सदस्य नन्दकिशोर यादव सहित कई चेहरे लोकसभा के टिकट की दौड़ में शामिल हैं। यह अलग बात है कि अपने दावे के समर्थन में इन लोगों के पास मजबूत तर्क नहीं है।
तीन साल बचा है बलराम का कार्यकाल
सपा के कद्दावर नेता बलराम यादव का एमएलसी का कार्यकाल अभी तीन साल बचा हुआ है। आजमगढ़ से किसी को भी सपा का टिकट मिलेगा, उसकी मजबूत स्थिति होगी। ऐसे में यदि सपा बलराम यादव को टिकट देती है तो वे दूसरों पर बीस पड़ेंगे। ऐसी स्थिति में उन्हें एमएलसी के पद से इस्तीफा देना पड़ेगा। यदि बलराम इस्तीफा देंगे तो रिक्त होने वाली सपा की इस एमएलसी सीट पर भाजपा आसानी से कब्जा जमा लेगी।
बलराम यादव को लोकसभा का टिकट न देने का यह एक बड़ा फैक्टर होगा। सपा कभी नहीं चाहेगी कि उसकी नादानी की वजह से भाजपा आसानी से सपा की एक एमएलसी सीट झटक ले। वैसे बलराम यादव को काट-छांट की सियासत में महारत हासिल है। वह कभी नहीं चाहेंगे कि लोकसभा का टिकट सपा जिलाध्यक्ष हवलदार यादव या जिले के अन्य किसी नेता को मिले और उसका कद बड़ा हो। ऐसी स्थिति में वह मुलायम परिवार के तेजप्रताप यादव या अन्य किसी को लड़ाने का सुझाव दे सकते हैं। वैसे इस बात की संभावनाएं कम हैं कि सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव बलराम यादव का यह सुझाव मानेंगे।
अखिलेश का नाम भी चर्चा में
इन दिनों आजमगढ़ में यह चर्चाएं जोरों पर हैं कि सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव आजमगढ़ से चुनाव लड़ सकते हैं। इन चर्चाओं के बीच इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यह हवा बलराम यादव व उनके लोगों ने फैलायी है। ऐसा करके वह एक तीर से कई निशाना साधना चाहते हैं। ऐसा करने से उनका सबसे बड़ा काम यह हो जाएगा कि इस जिले का कोई नया नेता नहीं पनप पाएगा।
साथ ही अखिलेश के आने से किसी को कोई मेहनत नहीं करनी होगी और जीत अपने आप झोली में चली आएगी। अब देखना यह है कि बलराम यादव अपने मंसूबे में कहां तक कामयाब होते हैं।
बलिया का अलग ही है संसदीय भूगोल
बलिया जिले का संसदीय भूगोल तो अलग ही है। एक नजर डाली जाए तो बलिया जिले में विधानसभा की सात सीटें हैं। इसके बावजूद बलिया संसदीय क्षेत्र में बलिया जिले के महज तीन विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
इसके अलावा बलिया संसदीय क्षेत्र में गाजीपुर की दो विधानसभा सीटें शामिल हैं। बलिया जिले के तीन विधानसभा क्षेत्र देवरिया जिले के सलेमपुर संसदीय क्षेत्र में पड़ते हैं तथा एक विधानसभा मऊ जिले के घोसी संसदीय क्षेत्र में है। इस तरह से देखा जाए तो बलिया जिले का राजनीतिक दखल आसपास के कई अन्य जिलों में भी है। बलिया संसदीय सीट से सपा के टिकट पर नीरज शेखर का मैदान में आना लगभग तय माना जा रहा है।
घोसी सीट से लड़ सकते हैं रामदर्शन
घोसी संसदीय सीट से शिवपाल के नवगठित दल से उनके दल के आजमगढ़ मंडल के प्रभारी एवं सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष रामदर्शन यादव मैदान में आ सकते हैं। सियासी हल्के में इस बात में काफी दम माना जा रहा है। वजह यह कि शिवपाल यादव व रामदर्शन की सोच यह है कि आजमगढ़ से सपा के टिकट की लाइन में लगे सभी यादव हैं।
इसके अलावा बाहुबली रमाकान्त यादव भी भाजपा या किसी अन्य दल से चुनाव लड़ेंगे ही। ऐसे में रामदर्शन का आजमगढ़ से चुनाव लडऩा उनके व दल के लिए हितकर नहीं माना जा रहा है। इन स्थितियों के बीच रामदर्शन घोसी संसदीय सीट से मैदान में आ सकते हैं। इसकी वजह यह है कि गठबंधन में यह सीट बसपा के खाते में जाएगी। ऐसी स्थिति में लम्बे समय से सपा में रहने का लाभ रामदर्शन को इस सीट पर मिल सकता है। साथ ही इस सीट पर किसी दल से किसी यादव की उम्मीदवारी नजर नहीं आ रही है। इसका भी लाभ रामदर्शन को मिल सकता है।
हमेशा समाजवादी राजनीति का केन्द्र रहा है आजमगढ़
आजमगढ़ हमेशा से समाजवादी राजनीति का केन्द्र रहा है। यहां पर कई दिग्गज समाजवादी नेता पैदा हुए। समाजवाद के प्रति आजमगढ़ के लगाव को देखते हुए ही चौधरी चरण सिंह हमेशा कहा करते थे कि वह बागपत छोड़ सकते हैं मगर आजमगढ़ नहीं। बाद में जब मुलायम सिंह यादव ने चौधरी साहब का राजनैतिक उत्तराधिकार संभाला तो उन्होंने कभी कहा कि मेरी एक आंख सैफई तो दूसरी आंख आजमगढ़ है, कभी कहे कि दिल सैफई तो धडक़न आजमगढ़ है। आजमगढ़ से इसी लगाव के कारण जब मोदी काशी से चुनाव लडऩे आए तो मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ से चुनाव लडऩे आ गए। मोदी लहर के बावजूद मुलायम अपना गढ़ बचाने में कामयाब रहे। अब जबकि मुलायम सिंह यादव ने इटावा से इस बार चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया है तो समाजवादियों के गढ़ आजमगढ़ से सपा के टिकट पर चुनाव लडऩे व मुलायम का आजमगढ़ का उत्तराधिकार संभालने की होड़ लगी हुई है।
आजमगढ़ मंडल की दो सीटों पर सपा व दो पर बसपा लड़ेगी
आजमगढ़ मंडल में चार संसदीय सीटें हैं। इसमें आजमगढ़ में दो संसदीय सीट एक आजमगढ़ व एक लालगंज सुरक्षित सीट, बलिया में एक संसदीय सीट एवं मऊ जिले में एक घोसी संसदीय सीट शामिल है। लोकसभा के इस चुनाव में सपा व बसपा का गठबंधन हो जाने के कारण इन चार सीटों में आजमगढ़ एवं बलिया संसदीय सीट सपा के खाते में तो लालगंज सुरक्षित सीट व घोसी संसदीय सीट बसपा के खाते में जा सकती है। आजमगढ़ मंडल को जहां सपा के गढ़ के रूप में जाना जाता है, वहीं बसपा का जनाधार भी कम नहीं है। सपा व बसपा का गठबंधन हो जाने के कारण आजमगढ़ मंडल की किसी भी सीट पर गठबंधन के उम्मीदवार को हराना दूसरों के लिए टेढ़ी खीर हो सकता है।