Tarkulha devi Mandir: यहां नवरात्री में मीट को प्रसाद के रूप में किया जाता है ग्रहण, आइये जाने इसकी कहानी
Tarkulha Devi Mandir Kahani: तरकुलहा देवी माँ के मंदिर में सच्चे दिल से आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है।
Tarkulha Devi Mandir History: सीएम सिटी गोरखपुर से तकरीबन 20 किलोमीटर दूरी पर देवीपुर गाँव में तरकुलहा देवी माँ का मंदिर (Tarkulha Devi Mandir)पूर्वान्चल में आस्था का एक प्रसिद्ध केंद्र माना जाता है। बता दें कि तरकुलहा देवी माँ का मंदिर पहले घने जंगलों से घिरा हुआ था लेकिन अब ये क्षेत्र माँ तरकुलहा के आशीर्वाद से पूरी तरह से समृद्ध और आबाद है।
पौराणिक काल से ही इस मंदिर की बहुत बड़ी आस्था है। प्रतिदिन यहाँ हज़ारों लोगों की भीड़ माँ के दर्शन के लिए उमड़ती है। नवरात्री में तो ये संख्या और भी कई गुना बढ़ जाती है। धार्मिक मान्यता है कि तरकुलहा देवी माँ के मंदिर में सच्चे दिल से आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है। यहाँ की और खासियत भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित होने से नहीं रोक सकती है। यहाँ बकरे की बलि दी जाती है और फिर मिट्टी के बर्तन में उसे पकाकर लोगो प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
बता दें कि हजारों लोग अपनी मन्नत पूरा करने के बाद प्रसाद के रूप में मीट ग्रहण करते हैं। उल्लेखनीय है कि तरकुलहा माई का यह दरबार अब हर साल आने वाले हजारो लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का एक बहुत बड़ा तीर्थ बन चुका है। धार्मिक मान्यता है कि तरकुल के पेड़ के नीचे विराजी माता का भव्य मंदिर अपने यहाँ आने वाले सभी भक्तों की मुरादें भी पूरी कर रहा। प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु मां का आशीर्वाद पाने के लिए दूर -दराज़ से आते हैं। नवरात्रि के दिनों में तो हजारों की भीड़ लगभग रोजाना यहाँ माँ का आशीर्वाद लेकर मन्नत मांगने आते हैं।
मिट्टी के बर्तन में बनता है बकरे का मीट ,जिसे किया जाता है प्रसाद के रूप में ग्रहण
धार्मिक आस्था के मुताबिक़ तरकुलहा देवी मंदिर (Tarkulha Devi mandir) में बकरे की बलि चढ़ाने की पौराणिक परम्परा रही है। बता दे कि लोग यहाँ अपनी मन्नते मांगने दूर -दराज़ से आते हैं। मन्नत पूरी होने के बाद यहां पर बकरे की बलि चढ़ाने की परंपरा हैं। ख़ास बात यह है कि मीट को वहीं मिट्टी के बर्तन में बनाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। इसके लिए लोग दूर-दराज़ से यहां मन्नत पूरी होने पर प्रसाद चढाने जरूर आते हैं।
मन्नत पूर्ति का संकेत है घंटी बांधना
तरकुलहा देवी माँ का मंदिर विशेष मान्यताओं वाला मंदिर माना जाता है। लोगों के मन में ये आस्था अटूट है कि यहाँ सच्चे मन से जो भी मुराद मांगी जाए वह अवश्य पूरी होती है। दूर -दराज से आने वाले भक्त मां तरकुलहा देवी से अपनी मन्नतें मांगते हैं। और जब माँ उनकी मन्नतों को पूर्ण कर देती है तो वे माँ के प्रति अपना आभार व्यक्त करने के लिए मंदिर में घंटी बांध कर परम्परा का निर्वाहन करते हैं है। इसका सबूत मंदिर परिसर में चारों ओर बंधी घंटियों के देखने से मिल जाएगा । बता दें कि अपनी मन्नतें पूरी होने पर भक्त यहाँ अपनी क्षमता के अनुसार घंटी बांधते हैं। उल्लेखनीय है कि पूरे साल भर यहाँ आने वालों भक्तों का ताँता लगा रहता है लेकिन नवरात्रि में ये संख्या विशेष रूप से बढ़ जाती है।
तरकुलहा देवी मंदिर से जुडी हुई पौरणिक कथा , आजादी के सिपाहियों की करती रही रक्षा
कहा जाता है कि मां अपने भक्तों की रक्षा हर जगह और हर हाल में करती हैं। इस मंदिर का इतिहास भी आजादी की लड़ाई से जुड़ा है।उल्लेखनीय है कि अंग्रेज भारतीयों पर बेहद अत्याचार करते थे। ऐसे में डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह भी आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे। वह अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंके चुके थे। लेकिन बंधु सिंह मां तरकुलहा देवी के भी बहुत बड़े भक्त माने जाते थे। साल 1857 के आसपास जब पूरे देश में आजादी के लिए युद्ध का ऐलान हुआ था । गुरिल्ला युद्ध में माहिर बाबू बंधू सिंह भी उसमें आज़ादी के लिए शामिल हो गए।
उन्होंने घने जंगल में अपना ठिकाना बनाया । ऐतिहासिक कथा के अनुसार जंगल में घना जंगल होने के साथ जंगल से ही गुर्रा नदी भी गुजरती थी। उसी जंगल में बंधू एक तरकुल के पेड़ के नीचे पिंडियों को बनाकर मां भगवती की पूजा -आराधना किया करते थे। वे अंग्रेजों से गुरिल्ला युद्ध लड़ते और मां के चरणों में उनकी बलि चढ़ा देते थे । अंततः इसकी भनक अंग्रेजों को भी लग गई। उन्होंने अपने गुप्तचर भी लगा दिए । आख़िरकार अंग्रेजों की चाल कामयाब हुई और एक गद्दार ने बाबू बंधू सिंह के गुरिल्लाा युद्ध और बलि के बारे में जानकारी अंग्रेजों को दे दी। जिसके फलस्वरूप अंग्रेजों ने जाल बिछाकर वीर बंधू सिंह सेनानी को पकड़ लिया।