Meerut News: कभी पूरी नही होने वाली मांग बनकर रह गई है पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच की मांग
Meerut News: आगामी विधानसभा चुनाव नजदीक है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक बार फिर हाई कोर्ट बेंच की मांग का मुद्दा जोर पकड़ रहा है।
Meerut News: पश्चिमी उत्तर प्रदेश (Western Uttar Pradesh) में हाई कोर्ट बेंच की मांग (High Court Bench demand) का मुद्दा 2022 में यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Election 2022) में जोर पकड़ेगा। इस बात की संभावनाएं कम ही दिख रही हैं। हालांकि रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी (RLD President Jayant Choudhary) द्वारा अपनी रैलियों और 22 संकल्पों में वेस्ट यूपी में हाईकोर्ट बेंच की घोषणा के बाद पश्चिमी क्षेत्र के वकीलों के साथ ही लोंगो को जरुर यह उम्मीद बंधी थी कि इस बार के चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट बेंच की मांग का मुद्दा जोर पकड़ेगा। लेकिन परिवर्तन संदेश रैली में जिस तरह जयंत चौधरी के साथ ही अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने इस मुद्दे पर बिल्कुल चुप्पी साधे रखी। उससे लोंगो की उम्मीदें फिर से टूटती दिख रही हैं।
दरअसल, समाजवादी (Samajwadi Party) कुनबे को छोड़ कर सभी राजनीतिक दल (Political Party) सुलभ और सस्ते न्याय की खातिर हाईकोर्ट बेंच (High Court Bench) के गठन की पक्षधर तो हैं, मांग को जायज करार भी देती हैं, लेकिन उस पर ठोस कार्रवाई आज तक नहीं हुई। भारतीय जनता पार्टी के केंद्र के बाद प्रदेश में आने के बाद पश्चिम की जनता में एक उम्मीद तो जगी थी, लेकिन अभी तक के कार्यकाल में एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि बीजेपी सरकार हाईकोर्ट बेंच को लेकर जरा सी भी गंभीर है।
अपने पिछले कार्यकाल में मायावती ने भेजी थी केंद्र को सिफारिश
हाईकोर्ट के मुद्दे पर अब तक केंद्र सरकार प्रदेश सरकार और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पर टालती रही है तो प्रदेश सरकार केंद्र को। अपने पिछले कार्यकाल में मायावती (Former Chief Minister Mayawati) ने केंद्र को सिफारिश तो भेजी, लेकिन वह भी अंत समय में। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Chief Minister Akhilesh Yadav) तो पश्चिम में खंडपीठ के गठन को सिरे से ही खारिज करते रहे हैं। यही वजह रही कि मेरठ की परिवर्तन रैली में अखिलेश यादव की मौजूदगी में जयंत इस मुद्दे पर एक शब्द बोलने का भी साहस नही जुटा सके। जबकि जयंत चौधरी परिवर्तन रैली से पूर्व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी रैलियों में खुलकर इस मुद्दे को जोरदार ढंग से उठाते रहे हैं। यही नही जयंत ने 22 संकल्पों में भी वेस्ट यूपी में हाईकोर्ट बेंच की घोषणा की है।
वैसे,पश्चिमी उप्र की राजनीति करने वाली रालोद की हाशिए पर जाती राजनीतिक हैसियत भी एक बड़ी वजह है कि ये इस मुद्दे पर कोई बड़ा कदम नहीं उठा सके हैं। भाजपा ढुलमुल रवैया अपनाए हुए है। अब इसे राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी न कहा जाए तो और क्या कहें कि साढ़े पांच करोड़ से अधिक आबादी होने के बावजूद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खंडपीठ की कोई ठोस कोशिश तक नहीं हुई। पश्चिम यूपी में हाईकोर्ट बेंच की मांग कोई दशक-दो दशक पुरानी नहीं है। 1955 से यहां खंडपीठ लाने की जद्दोजहद शुरू हुई थी। 1980 में जाकर सब्र का बांध टूटा और मांग ने आंदोलन की शक्ल धारण की। अब तो इस मांग के विरोध में प्रत्येक शनिवार को पश्चिमी उप्र के अधिवक्ता हड़ताल पर रहते हैं।
सरकार की टालमटोल नीति से खफा वेस्ट यूपी के वकील
वर्ष 1955 में तत्कालीन मुख्यमंत्री संपूर्णानंद ने मेरठ में हाईकोर्ट बेंच स्थापित करने की सिफारिश की। 1976 में नारायण दत्त तिवारी सरकार ने खंडपीठ स्थापित किए जाने का प्रस्ताव भेजा था। जनप्रतिनिधियों की वादाखिलाफी और सरकार का टालमटोल नीति से खफा वेस्ट यूपी के वकीलों का साफ कहना है कि बीजेपी ने हमेशा हाई कोर्ट बेंच का समर्थन किया। 2014, 2019 के लोकसभा और 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान वेस्ट यूपी में हाई कोर्ट बेंच का गठन कराने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी की केंद्र और प्रदेश में सरकार होने के बावजूद मांग पूरी नही होना भाजपा की नीयत पर सवाल खड़े करता है।
कई सांसद वेस्ट में बेंच के मुद्दे को संसद में उठा चुके हैं
गौरतलब है कि मेरठ, मुजफ्फरनगर के कई सांसद वेस्ट में बेंच के मुद्दे को संसद में उठा चुके हैं। वकीलों के प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री, कानून मंत्री समेत कई मंत्रियों से इस बारे में मिलकर मांग कर चुका है। उनका तर्क है कि मेरठ से इलाहाबाद हाई कोर्ट की दूरी पड़ोसी देश पाकिस्तान के लाहौर हाई कोर्ट से भी ज्यादा दूर है। क्षेत्रफल के नजरिये से वेस्ट यूपी का क्षेत्रफल 98,933 वर्ग किमी है, जो पूरे प्रदेश का 33.61 फीसदी है।
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