UP Election Exit Poll 2022: मेरठ की दो सीटों पर भाजपा की जीत तय, चार पर सपा-रालोद से मिल रही कड़ी टक्कर

UP Election Exit Poll 2022: 2017 में जिले की छह सीटों पर काबिज होने वाली भाजपा को इस बार नुकसान होता दिखाई दे रहा है।

Report :  Sushil Kumar
Published By :  Shreya
Update:2022-03-08 13:29 IST

पीएम मोदी संग सीएम योगी (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

UP Election Exit Poll 2022: उत्तर प्रदेश में एग्जिट पोल के नतीजों में बेशक प्रदेश में एक बार फिर से भाजपा सरकार (BJP Government) बनने के आसार हैं। लेकिन, मेरठ की बात की जाए तो जनपद की सात विधानसभा सीटों (Meerut Assembly Seats) में दो भाजपा (BJP) और एक सीट सपा-रालोद गठबंधन (SP-RLD Alliance) की झोली में जाने के आसार हैं। बाकी चार विधानसभा क्षेत्रों में सपा-रालोद गठबंधन भारी पड़ता हुआ नजर आ रहा है। यानी, 2017 में जिले की छह सीटों पर काबिज होने वाली भाजपा को इस बार नुकसान होता दिखाई दे रहा है। हालांकि यह सिर्फ आंकलन है। परिणाम का पता तो 10 मार्च को ही लग सकेगा।

स्थानीय चुनाव विश्लेषक मेरठ की जिन सीटों को भाजपा के खाते में जाने की बात कही जा रही है, उनमें मेरठ की कैंट और मेरठ दक्षिण सीट (Meerut South Seat) है। मेरठ कैंट विधानसभा सीट (Meerut Cantt Assembly Seat) पर 1989 से अब तक इस सीट पर भाजपा का लगातार कब्जा रहा है। इसी कारण मेरठ कैंट को भाजपा की 'छपरौली' कहा जाता है। 2007, 2012 और 2017 के चुनाव में भी जीत भाजपा के हाथ लगी, लेकिन दूसरे नंबर पर बसपा रही। तीनों ही चुनावों में एक बार सपा और दो बार कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी रही। माना जा रहा है कि इस सीट पर एक बार फिर से कमल खिलने जा रहा है।

भाजपा को रालोद ने दी कड़ी टक्कर

हालांकि इस बार भाजपा के प्रत्याशी अमित अग्रवाल (Amit Agarwal) को रालोद प्रत्याशी मनीषा अहलावत (Manisha Ahlawat) ने कड़ी टक्कर दी। बसपा प्रत्याशी अमित शर्मा (Amit Sharma) भी दलित वोट (Dalit Vote) काटने में सफल रहे हैं। इस सीट पर करीब 60 फीसदी वोट पड़े। जाट मुस्लिम गठबंधन होने के कारण रालोद प्रत्याशी मनीषा अहलावत ने काफी मजबूती से चुनाव लड़ा है। यहां भाजपा प्रत्याशी को बनिया, ब्राहमण, पंजाबी और वाल्मीकि और गैर जाटव वोट काफी तादाद में मिलना लग रहा है। यही कारण है मतदान वाले दिन से भाजपा इस सीट को अपनी सुरक्षित सीट मानती आ रही है। यहां बसपा तीसरे नम्बर पर तो कांग्रेस के चौथे नम्बर आने की संभावना है।

क्या रही भाजपा की जीत की वजह?

दक्षिण सीट पर मतदाताओं का रुझान देखें तो यहां भाजपा की सीट निकलती नजर आ रही है। मेरठ की दक्षिण विधानसभा सीट पर 61 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाला। 40 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं वाली इस सीट पर भाजपा की जीत की सबसे बड़ी वजह भाजपा के सामने कांग्रेस, सपा और बसपा से मुस्लिम उम्मीदवारों को माना जा रहा है। जिसके कारण इस बार मुस्लिम वोट तीनों मुस्लिम उम्मीदवारों में बंटता नजर आया। यहां उम्मीदवारों की बात करें तो भाजपा से वर्तमान विधायक डा. सोमेंद्र तोमर, कांग्रेस से नसीम सैफी, बसपा से कुंवर दिलशाद अली और सपा से रफीक अंसारी चुनाव मैदान में रहे।

भाजपा की जीत की दूसरी वजह एससी वोटों को माना जा रहा है जो कि कुछ हद तक बसपा पर गया, लेकिन बाकी 50 प्रतिशत से अधिक वोट भाजपा को ही गया। जिसके चलते भाजपा की जीत तय मानी जा रही है। गौरतलब है कि यहां 20 प्रतिशत एससी मतदाता हैं। ऐसे में एक तरफ तो मुस्लिम मतदाता बंटते हुए दिखाए दिए। वहीं, दलितों का भाजपा के साथ जाना सपा प्रत्याशी के लिए नुकसानदायक बन गया। 

सपा के खाते में मेरठ शहर सीट

मेरठ शहर सीट (Meerut City Seat) इस बार भी सपा के खाते में जानी तय मानी जा रही है। यहां इस बार दो लाख 11 हजार वोट पड़े हैं। 65 प्रतिशत के करीब मतदान हुआ था। इस सीट पर भाजपा से कमल दत्त शर्मा, सपा से रफीक अंसारी, बसपा से दिलशाद शौकत, एमआईएमआईएम से इमरान अंसारी और कांग्रेस से रंजन शर्मा प्रत्याशी मैदान में थे। इस बार कांग्रेस के मजबूत प्रत्याशी होने का भाजपा को काफी नुकसान हुआ। क्योंकि इस कारण हिंदू वोट भाजपा और कांग्रेस में बंट गए। जबकि मुसलमानों का ध्रुवीकरण सपा के पक्ष में हुआ। ऐसे में जबकि शहर सीट पर हिंदू वोटो के मुकाबले मुस्लिम वोंटो की संख्या अधिक है, सपा की जीत तय मानी जा रही है। गौरतलब है कि शहर सीट पर पिछली बार रफीक अंसारी ने भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी को हराया था।

सिवालखास सीट (Siwal Khas Seat) पर भी पलड़ा सपा का भारी माना जा रहा है। मुस्लिम और जाट बाहुल्य वाली इस सीट पर यादव वोटरों की संख्या भी अन्य सीटों के मुकाबले अधिक है, जिनका रुझान गठबंधन की ओर मतदान में दिखाई दिया था। हालांकि शुरुआत में सपा के पूर्व विधायक गुलाम मोहम्मद को टिकट दिए जाने को लेकर रालोद के जाट नेताओं में असंतोष दिखाई दिया था, मगर उसको पार्टी आलाकमान ने मतदान से पहले ही संतोष में बदलने के भरपूर प्रयास किए थे। मतदान के दिन इस सीट पर वोटिंग में जाट-मुस्लिम के गठजोड़ मतदाताओं ने दिखाया है, जिसके चलते इस सीट पर सपा-रालोद गठबन्धन की जीत तय मानी जा रही है। हालांकि भाजपा प्रत्याशी मनिंदरपाल सिंह भी अपने जीत का यहां से दावा ठोक रहे हैं, मगर जातीय गठजोड़ रालोद-सपा गठबंधन के मुफीद नजर आ रहा है। 

सभी की नजर हस्तिनापुर सीट पर

हस्तिनापुर सीट के बारे में यह किवदंती चली आ रही है कि जिस पार्टी का प्रत्याशी यहां जीत दर्ज करता है, उसी पार्टी की प्रदेश में सरकार बनती है। इसी वजह से पूरे प्रदेश की निगाहें भी हस्तिनापुर विधानसभा सीट (Hastinapur Assembly Seat) पर लगी हुई है। यहां भाजपा प्रत्याशी दिनेश खटीक और सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी योगेश वर्मा के बीच जबरदस्त टक्कर है। हालांकि इस टक्कर में पूर्व विधायक योगेश वर्मा 20 हैं तो भाजपा प्रत्याशी दिनेश खटीक 19 माने जा रहे हैं। यहां गुर्जर मतदाता जीत में निर्णायक साबित होते आये हैं।

पिछली बार गुर्जरों का बड़ा वोट भाजपा को गया, लेकिन इस बार गुर्जर मतों में सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी योगेश वर्मा सेंध लगाने में कामयाब हो गए थे। वहीं मुसलमानों के साथ ही बंगाली मतों का भी झुकाव गठबंधन की तरफ रहा हैं। रही बात दलित वोटों की तो वो बसपा, सपा और भाजपा तीनों में बटा है। बहरहाल, पिछली बार के विजेता भाजपा के दिनेश खटीक 2017 का प्रदर्शन दोहरा पाते हैं या फिर नहीं, इसका पता तो तचुनाव परिणाम वाले दिन यानी 10 मार्च को ही लग सकेगा। 

सरधना सीट से भाजपा का पत्ता साफ?

सरधना विधानसभा क्षेत्र इस बार भाजपा के हाथों से फिसलता दिख रहा है। यहां सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी अतुल प्रधान अपने प्रतिद्वंद्वी भाजपा प्रत्याशी संगीत सोम पर भारी पड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। हालांकि हकीकत का पता तो 10 मार्च को ही लग सकेगा। लेकिन,फिलहाल स्थानीय विश्लेषकों के अनुमानों के आधार पर इस सीट को सपा की झोली में जाना तय माना जा रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह इस बार मुस्लिम वोटों का बटवारा नही होना माना जा रहा है।

गौरतलब है कि 2017 के चुनाव में मुस्लिम मतों का बटवारा होने से अतुल प्रधान को हार का मुंह देखना पड़ा था। दलितों के वोट बसपा के अलावा सपा और भाजपा दोनों को ही गया। वहीं सपा-रालोद गठबन्धन का प्रत्याशी होने के कारण इस बार जाटो का झुकाव भी अतुल प्रधान की तरफ रहा है। बसपा के संजीव धामा जाट होने के बावजूद जाटों के वोट लेने में अधिक सफल नही हो सके। उन्हें बसपा का कैडर वोट पड़ा। किसान आंदोलन के चलते भी भाजपा को भारी नुकसान हुआ।

जिले की किठौर विधानसभा सीट पर भाजपा के सत्यवीर त्यागी और सपा-रालोद गठबन्धन के शाहिद मंजूर बीच कड़ी टक्कर रही है। यही वजह है कि यहां किसी की भी जीत के अनुमान लगाने से चुनाव विश्लेषक बच रहे हैं। ऐसे में यह अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है कि जीत किसके हिस्से में आएगी।

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