Mahakumbh Stempede: धार्मिक अनुष्ठानों को राजनीति व वीवीआईपी घुसपैठ से बचाएं, क्राउड प्रबंधन नियमों में शामिल हो फोटो प्रतिबंध

Mahakumbh Stampede: महाकुंभ प्रबंधन समिति ने आम अमृत स्नान को वीवीआईपी एंट्री से मुक्त रखा। लेकिन व्यवस्था करने वालों के दिमाग में आम स्नान से पहले और बाद में वीवीआईपी मूवमेंट की तैयारियां का तनाव और थकान होना स्वाभाविक है।;

Written By :  Naved Shikoh
Update:2025-01-29 21:18 IST

Mahakumbh Stempede News (Photo Social Media)

Mahakumbh Stempede: कुछ धार्मिक आयोजन भीड़ का पर्याय होते हैं। किसी को रोका नहीं जा सकता, भीड़ कम नहीं की जा सकती। आम लोगों से लेकर वीवीआईपी को भी अपने धार्मिक अधिकारों और कर्तव्यों के पालन का अधिकार है। किंतु धर्म के नाम पर वोटबैंक की राजनीति और वीवीआईपी मूवमेंट कहीं ना कहीं आम पब्लिक के लिए की गई व्यवस्था का अतिक्रमण करते हैं। यदि व्यवस्था तंत्र की तरफ से तस्वीरों यानी फोटोबाजी को जनहित में प्रतिबंधित कर दिया जाए तो शायद धर्म को भुनाने वाली स्वार्थ की राजनीति और वीवीआईपी मूवमेंट कम हो जाएं।हालांकि महाकुंभ प्रबंधन समिति ने आम अमृत स्नान को वीवीआईपी एंट्री से मुक्त रखा। लेकिन व्यवस्था करने वालों के दिमाग में आम स्नान से पहले और बाद में वीवीआईपी मूवमेंट की तैयारियां का तनाव और थकान होना स्वाभाविक है।

भगदड़ हादसों का इतिहास

इस बात में कोई दो राय नहीं विश्वभर में भारी भीड़ के आयोजन हादसों के शिकार होते रहे हैं। लाख अच्छी व्यवस्थाओं के बाद भी कोई हादसा या भगदड़ हो ही जाती है। कभी छोटा हादसा तो कभी बड़ा। दुनिया के दो धर्मों सनातन और इस्लाम के दो धार्मिक अनुष्ठान बड़े प्रसिद्ध हैं। सनातनियों का एक निश्चित समय पर होने वाला महाकुंभ और इस्लाम के मानने वाले मुसलमानों का हर वर्ष होने वाला हज। भारी भीड़ भरे ये धार्मिक अनुष्ठानों हमेशा हादसे-भगदड़ का शिकार होते रहे हैं। कभी छोटा हादसा होता है और कम लोग मरते है, कभी बड़ा हादसा हुआ तो सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं/अकीदतमंदों को जान गवाना पड़ती है। बीते मंगलवार देर रात प्रयागराज में अमृत स्नान करने आए जनसैलाब में कुछ लोग भगदड़ का शिकार हो गए। पिछले पचास वर्षों का इतिहास देखिए तो इस बार सबसे छोटा हादसा हुआ है। जबकि मेला स्थल के भू-भाग का कई गुना अधिक विस्तार और श्रद्धालुओं की पहले की अपेक्षा बहुत अधिक संख्या के हिसाब से 2025 का ये महाकुंभ सबसे बड़ा है। इस हिसाब से अच्छे इंतेजामो ने बहुत बड़ा हादसा नहीं होने दिया। बता दें कि पिछले महाकुंभ में और इससे भी पहले के आयोजनों में बड़े-बड़े हादसों में बहुत ही बड़ी संख्या में मौतें हुईं थी।

बड़ा आयोजन बड़े इंतजाम

कोई बड़ा आयोजन होता है तो उसके इंतेज़ाम भी व्यापक होते हैं। खास कर काफी भीड़ इकट्ठा होने वाले आयोजन बहुत दिनों तक चलें तो व्यवस्था करने वालों की टीम भी बड़ी होती है। सख्त ड्यूटी हो तो ड्यूटी बदलती रहती है। रैस्ट का मौका मिलता है ताकि सख्त ड्यूटी में दिमागी तनाव कम हो और शरीर को आराम मिले। किंतु कुछ बड़े ओहदेदार होते हैं उनकी ड्यूटी शिफ्ट नहीं होती। उन्हें लगातार दिमाग लगाना होता है, व्यवस्था पर निगरानी रखनी होती है। उनके दिशा निर्देशों से समस्त व्यवस्था की जाती है।

अफसरों को रहना होता है हर पल चौकन्ना

मसलन यदि प्रयागराज में महाकुंभ को सफल, सुरक्षित,भव्य और दिव्य बनाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चौकन्ना हैं तो वो तब तक चौकन्ना रहेंगे जितने दिन तक महाकुंभ के सारे स्नान कुशलतापूर्वक सम्पूर्ण ना हो जाएं। इसी तरह प्रमुख सचिव गृह, डीजीपी और महाकुंभ जिलाधिकारी, पुलिस के आलाधिकारियों को हर पल चौकन्ना रहना पड़ेगा। क्योंकि इनके निर्देशन और ग्राउंड मोनीटरिंग से सारी व्यवस्था होती हैं। ऐसे उच्च पदस्थ जिम्मेदारों की ड्यूटी बदल नहीं सकती। इनका कोई विकल्प भी नहीं होता। इनका शरीर भी आम मानव शरीर जैसा है। ये भी हाड़-मांस के बने हैं। इनकी ऊर्जा भी सीमित है। वर्क लोड जब बढ़ जाता होगा तो उच्च पदस्थ लोगों का दिशा निर्देश कहीं ना कहीं लड़खड़ता होगा। जैसा कि हम जब कई रातों ना सोए हों तो ना चाह कर भी हमारी आंख बंद होने लगती है। आज भी बिना सोए रात-दिन करोड़ों आमजन की रक्षा सुरक्षा की बड़ी जिम्मेदारी निभानी है, कल भी बिना आराम किए वीवीआईपी की सुरक्षा की जिम्मेदारी का दबाव था और आने वाले दिनों में भी प्रधानमंत्री जैसे सुपर वीवीआईपी की सुरक्षा का इंतजाम उन्हीं को करना है जो आज करोड़ों आम जनमानस की सुरक्षा की व्यवस्था देख रहे हैं।

ऐसा में आम हाड़-मांस के खास व्यवस्थापकों के दिशा-निर्देश दबाव में कहीं ना कहीं तो तनावग्रस्त होंगे ही ! डगमगाते होंगे। हांलांकि दबाव और तनाव रोकने के रास्ते नजर नहीं आते,बस एक ही बात समझ में आती है कि फोटोबाजी,प्रचार और दिखावे पर प्रतिबंध हो तो आम श्रद्वालुओं के धार्मिक आयोजनों के आसमान से दिखावे वाली स्वार्थ की राजनीति के काले बादल शायद कुछ छंट जाएं, और वीवीआईपी मूमेंट भी कम हो जाएं।

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