Kumbh 2025: ब्रिटिश काल में कुम्भ

Kumbh 2025: कुम्भ का प्रारम्भ परम्पराओं पर आधारित है, प्रयाग में मेला माघ के महीने में शताब्दियों से हो रहा है परन्तु 'कुम्भ मेला' शब्द का प्रयोग 1870 ई. में पहली बार अभिलेखों में उल्लिखित हुआ।

Newstrack :  Network
Update:2024-11-27 22:38 IST

ब्रिटिश काल में कुम्भ: Photo- Social Media

Kumbh 2025: ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि 1801 ई. में जब यह शहर अंग्रेजों के हाथ में आ गया तो उन्हें कुछ समय लगा कि मेले की व्यवस्था कैसे की जाय परन्तु कुछ समय बाद माघ मेले की सुव्यवस्था हेतु ब्रिटिश शासन की सक्रिय भूमिका और योगदान दिखायी देता है। 1810 ई. के रेग्युलेशन के अन्तर्गत अंग्रेजों ने एक तीर्थयात्रा कर लगाया, जिसे बाद में हटा दिया गया। 1815 ई. के गजेटियर में वर्णित है कि माघ मेले की समिति का नाम प्रागवाल (प्रयागवाल) समिति था। 1815- ईस्ट इण्डिया गजेटियर इलाहाबाद के अनुसार माघ मेला में 1812-13 में आने वाले यात्रियों की संख्या 2,18,792 हो गयी।

जब ब्रिटिश शासन का प्रारम्भ हुआ तब तक गंगा पवित्र नदी के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थी। सर विलियम जोन्स, जो कि एशियाटिक सोसायटीऑफ इण्डिया के संस्थापक थे, ने गंगा की महत्ता पर एक प्रसिद्ध कविता लिखी थी, जिसमें उन्होंने प्रयाग का उल्लेख एक धार्मिक शहर के रूप में किया था। इस शहर और गंगा नदी की धार्मिक छवि अब तक बन चुकी थी।

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जानें कब हुआ था 'कुम्भ मेला' शब्द का प्रयोग

कुम्भ का प्रारम्भ परम्पराओं पर आधारित है, प्रयाग में मेला माघ के महीने में शताब्दियों से हो रहा है परन्तु 'कुम्भ मेला' शब्द का प्रयोग 1870 ई. में पहली बार अभिलेखों में उल्लिखित हुआ। कुम्भ मेले का आँखों देखा वर्णन यात्रियों और मिशनरियों के द्वारा प्राप्त होता है। सितम्बर, 1824 में जब हैबर ने अपनी यात्रा कलकत्ता से बॉम्बे की तब उन्होंने लिखा, वहाँ(प्रयाग) के निवासी इसे फकीराबाद कहते हैं।

फेनी पार्क्स, एक महिला तीर्थयात्री ने जनवरी 1833 में प्रयाग के मेले को बड़ा मेला कहा है। इस मेले में बिकने वाली वस्तुओं का भी वर्णन फेनीपार्क्स ने किया है। उन्होंने कहा कि इस मेले में सबसे विशेष फकीर, धार्मिक भिक्षुक आते हैं जिन्हें गोशाई (शिव) कहते हैं, वे वैरागी ( वैष्णव) का जिक्र भी करती हैं। फेनी पार्क्स यह भी बताती हैं कि कोई विवाहित, निःसंतान स्त्री यह प्रतिज्ञा करती है, कि जो भी पहला बच्चा जन्म लेगा वह उसे गंगा में अर्पित करेगी। यह प्रथा पूर्व में प्राग (प्रयाग) में थी परंतु वर्तमान में नहीं है। फेनी पार्क्स माला, शंख, शिव, दुर्गा, कृष्ण का भीवर्णन करती हैं साथ ही साथ अर्ध्य की आवश्यकता भी बताती हैं।

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मार्च 1843 में कैप्टन लियोपोल्ड वान ऑर्लिक ने भी प्रयाग की यात्रा की। कैप्टन लियोपोल्ड वान ऑर्लिक वर्णन करते हैं कि यमुना का पानी साफ है और गंगा का पानी पीला है । परन्तु लोग सबसे ज्यादा तीर्थयात्रा हेतु प्रयागराज जाते हैं। तीर्थयात्री यहां पहुँचकर इस तरह अपना सिर मुंडाते हैं कि बाल पानी में ही गिरे, क्योंकि यह मान्यता है बालों के इस बलिदान से ही वे एक लाख वर्ष स्वर्ग में व्यतीत करेंगे। उनके वर्णन के अनुसार यहां फ़रवरी के महीने में विशेष रूप से भक्त आते हैं। वे एक प्राचीन हिंदू मंदिर लिंग पातालपुरी का भी उल्लेख करते हैं जिसे कि दीयों से रोशन किया गया है। शहर में 30,000 लोग हैं जो इसे फकीराबाद कहते हैं, क्योंकि यहां तीर्थयात्री और फकीर ज्यादा हैं।

गंगाजल की पवित्रता और महत्ता को भारतीय जनमानस में एक घटना केद्वारा भी समझा जा सकता है। महारानी विक्टोरिया की मृत्यु के बाद जब एडवर्ड सप्तम का राज्याभिषेक होने जा रहा था, तब जयपुर के महाराजा सवाई माधव सिंह द्वितीय अपने जहाज ओलम्पिया से 1902 में लन्दन पहुँचे। तो सबसे महत्वपूर्ण सामग्री के रूप में 8000 लीटर गंगाजल चांदी केकलशों में भरकर ले गये, क्योंकि उस समय समुद्र यात्रा वर्जित मानी जाती थी। यदि वह एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण पर न जाते तो यह शिष्टाचार विरूद्ध होता । परन्तु धार्मिक सलाहकारों की बात मानकर चांदी के सिक्के ढालकर बड़े-बड़े कलश बनाये गये और उनमें हजारों लीटर गंगा का पानी भरा गया जिनके साथ महाराजा माधव सिंह लन्दन गये।

सर सिडनी लो ने 1906 ई. में प्रयाग की यात्रा की (प्रिन्स ऑफ वेल्स के भारत आगमन के समय) और विवरण दिया कि यहां अखाड़ों के बीचप् प्रतिद्वंद्विता रहती है। उन्होंने वैरागियों को सबसे ज्यादा झगड़ालू बताया।

द मॉडर्न रिव्यू - कलकत्ता एडीशन, मार्च, 1918, लेखक-अज्ञात, नोट्स, पेज नम्बर- 331 - कुम्भ मेला सेवा समिति के स्वयंसेवक कहते हैं कि यह जानकर हमें अन्दरूनी खुशी मिल रही है कि पंडित हृदयनाथ कुंजरू एवं पंडित मदन मोहन मालवीय ने कुम्भ तीर्थयात्रियों की विशेष सहायता की और कठिनाइयों का सामना किया। यही है मानवता, यही है नागरिकता, यही है बन्धुत्व।

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कुम्भ-1930 - मॉडर्न रिव्यू (1930)

यह कुम्भ मेला विज्ञान की एक विजय है एवं कारपोरेट कार्य की सर्वोच्चता का प्रतीक है। इस मेले में एक मिलियन लोग थे, जो किले के पश्चिम में एकत्र हुए। एक दिन में रेलवे ने 100 हजार तीर्थयात्रियों को लाने, ले जानेका काम किया और कोई दुर्घटना नहीं हुई। न ही कोई महामारी और हिंसा की घटना हुई। 5000 साधु भी थे जिनके पास औजार और धार्मिक शस्त्र थे, शान्ति से रहे। सफाई व्यवस्था बहुत अच्छी थी और हैजा (कालरा) से सुरक्षित रखने के सेवा समिति के युवकों के प्रयास सराहनीय थे।

1938 ई. में ब्रिटिश सरकार ने युनाइटेड प्रॉविन्स मेला अधिनियम पारित किया, यह वार्षिक माघ मेले कि सुव्यवस्था हेतु पारित किया गया था।इसके अन्तर्गत प्रयाग के जिलाधिकारी के अधिकार बढ़ा दिये गये कि वोमेले की सुव्यवस्था हेतु समिति गठित कर सकते थे। इस कारण मेले मेंतीर्थयात्रियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई।

(उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘कुंभ-2019’ से साभार।)

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