Kumbh Mela 2025: 40,000 नागा साधुओं ने काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की दी थी आहुति

Kumbh Mela 2025: साल 1664 में काशी विश्वनाथ की रक्षा करने वाले नागा साधुओं का वर्णन जदुनाथ सरकार की किताब 'ए हिस्ट्री ऑफ दशनामी नागा संन्यासि' में भी मिलता है।

Written By :  Jyotsna Singh
Update:2024-11-18 22:47 IST

Kumbh Mela 2025 (social media)

Kumbh Mela 2025: कुंभ स्नान के दौरान अगर आपको ढोल नगाड़ों की धुन पर हर हर महादेव के उद्घोष के साथ सूर्य देवता की धर्म ध्वजा थामें नागा साधुओं का समूह नजर आए तो आपको समझने में तनिक भी देर नहीं लगानी चाहिए कि ये तपोनिधि आनंद अखाड़ा की पेशवाई है। 13 अखाड़ों में शामिल इस अखाड़े का इतिहास बहुत पुराना है। मुगल काल में औरंगजेब द्वारा नष्ट किए जा रहे कई प्रतिष्ठित मंदिरों की रक्षा के लिए तपोनिधि आनंद अखाड़ा के बहादुर नागाओं ने मुगलों को धूल चटा दी थी और हिन्दू धर्म की रक्षा करने के साथ इन अखाड़ों के वीर संतों ने बड़ी संख्या में अपने प्राणों की आहुति दी थी। कुंभ स्नान में इस अखाड़े की प्रतिवर्ष शामिल होने वाली पेशवाई का नेतृत्व अखाड़ा के आचार्य पीठाधीश्वर द्वारा की जाती है, वहीं पेशवाई में सबसे आगे हाथी पर साधु.महात्मा विराजमान रहते हैं। लहराती हुई धर्म ध्वजा के पीछे घोड़े पर सवार होकर नागा साधुओं का समूह चलता है। इस समूह के पीछे पालकी में आराध्य भगवान सूर्य नारायण विराजमान रहते हैं।

तपोनिधि आनंद अखाड़ा की स्थापना विक्रम संवत 912 में बरार में की गई थी। इसके इष्टदेव सूर्य देव हैं। इसके संत महंत सनातन धर्म के प्रचार प्रसार एवं समाज रक्षा में निरंतर सक्रिय रहते हैं। फिलहाल अखाड़े से आठ महामंडलेश्वर हैं । लेकिन कोई भी महिला महामंडलेश्वर नहीं है। कुंभ स्नान के दौरान तपोनिधि आनंद अखाड़े की शोभायात्रा की भव्यता और साधु.संतों का दर्शन करने के लिए सैकड़ों की संख्या में लोग मौजूद रहते हैं। लोग पेशवाई पर फूल वर्षा कर साधु- संतों का स्वागत करते हैं। पेशवाई एक धार्मिक शोभा यात्रा है, जिसमें अखाड़ों के आचार्य पीठाधीश्वर, महामंडलेश्वर,साधु.संत और नागा सन्यासियों का कारवां हाथी, घोड़े और ऊंट पर सवार होकर गंगा के किनारे बनी छावनी में पहुंचता है और पूरे मेले के दौरान वहां प्रवास करता है।

तपोनिधि अखाड़े में सदस्य का चुनाव कैसे करते हैं?

तपोनिधि अखाड़े में सदस्य का चुनाव एक विस्तृत प्रक्रिया है, जिसमें कई चरण शामिल हैं। कुछ मुख्य चरण इस तरह हैं -

योग्यता और अर्हता

तपोनिधि अखाड़े का सदस्य बनने के लिए उम्मीदवार को अखाड़े के उद्देश्यों और मूल्यों से पूरी तरह से सहमत होना चाहिए। इस अखाड़े का मुख्य उद्देश्य है आध्यात्मिक ज्ञान और सेवा की भावना का प्रदर्शन जिसके लिए सदस्य को तत्क्षण तैयार रहना चाहिए। सदस्य को अखाड़े के नियमों और अनुशासन का सख्ती से पालन करना सबसे पहली मांग होती है।इस अखाड़े की सदस्यता के लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवार को सदस्यता के लिए आवेदन पत्र भरना होगा और आवश्यक दस्तावेज़ जमा करने होंगे। उनका आवेदन अखाड़े के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा मूल्यांकन किया जाएगा और सदस्यता के लिए स्वीकृति दी जाएगी।

सदस्यता की श्रेणी

तपोनिधि अखाड़े में विभिन्न सदस्यता श्रेणियाँ हैं। जैसे कि -

. सामान्य सदस्य

. सक्रिय सदस्य

. वरिष्ठ सदस्य

. महंत

तपोनिधि अखाड़े में साधुओं की शिक्षा

तपोनिधि अखाड़े में साधुओं को व्यापक शिक्षा दी जाती है। जिसमें आध्यात्मिक , धार्मिक, और सांस्कृतिक ज्ञान शामिल है। यहाँ कुछ मुख्य विषय हैं जिन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। आध्यात्मिक शिक्षा में वेदांत और उपनिषदों का अध्ययन, भगवद गीता और अन्य धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन, योग और ध्यान की तकनीकें, प्राणायाम और आसनों का अभ्यास शामिल है।

जबकि धार्मिक शिक्षा में हिंदू धर्म के मूल सिद्धांतों और दर्शनों का अध्ययन देवी - देवताओं से जुड़ी जानकारियों का गहरा संचय, तीर्थ यात्राओं और धार्मिक अनुष्ठानों के महत्व, पूजा और आरती की विधि आदि से परिचित होना आवश्यक होता है। नागाओं को सांस्कृतिक शिक्षा के तहत भारतीय संस्कृति और इतिहास का अध्ययन, संगीत, नृत्य और कला का अभ्यास, सामाजिक समरसता और सेवा की भावन जैसी शिक्षाओं का गहरा अध्ययन करना पड़ता है।

इसके अलावा आचारिक शिक्षा

इस में साधू जीवन के लिए जनसेवा और त्याग की भावनाएं एक महत्वपूर्ण कार्य होता है। साथ ही योग और ध्यान के बलपर आत्म-निरीक्षण और आत्म-सुधार भी इस अखाड़े की सदस्यों की मुख्य शिक्षा में शामिल है। व्यावहारिक शिक्षा में

स्वास्थ्य और आयुर्वेद का अध्ययन, प्राकृतिक चिकित्सा और योग चिकित्सा का अभ्यास, कृषि और पशुपालन का अभ्यास करना होता है। तपोनिधि अखाड़े में साधुओं को इन सारे विषयों से जुड़ी व्यापक शिक्षा दी जाती है, ताकि वे आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन में सक्रिय रूप से योगदान कर सकें।

तपोनिधि अखाड़े का इतिहास और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका

तपोनिधि अखाड़ा की स्थापना 16वीं शताब्दी में हुई थी। जब मुगल साम्राज्य भारत में अपनी शक्ति का विस्तार कर रहा था। तत्कालीन मुगल बादशाह अकबर ने तपोनिधि अखाड़े को संरक्षण प्रदान किया और अखाड़े के साधुओं को धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए समर्थन दिया। इस अखाड़े के साधुओं ने मुगल साम्राज्य के साथ सहयोग किया और धार्मिक और सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके पश्चात 17वीं शताब्दी में मुगल बादशाह औरंगजेब ने हिंदू धार्मिक स्थलों पर हमले किये, जिसमें तपोनिधि अखाड़ा भी शामिल था। अखाड़े के साधुओं ने औरंगजेब के खिलाफ संघर्ष किया और अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा की।18वीं शताब्दी में तपोनिधि अखाड़ा ने पुनर्जागरण का अनुभव किया। जब अखाड़े के साधुओं ने हिंदू धर्म और संस्कृति के पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

तपोनिधि अखाड़े का मुगल काल से जुड़ाव अखाड़े के इतिहास और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जो अखाड़े की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को दर्शाता है। इस अखाड़े से जुड़े कई रहस्य और अनोखे तथ्य हैं, जो अखाड़े के इतिहास और महत्व को दर्शाते हैं। जिनसे लोग पूरी तरह से अनभिज्ञ हैं। इस अखाड़े के आश्रमों में कई गुप्त गुफाएं होने की भी जानकारी मिलती है। जो अखाड़े के साधुओं के लिए ध्यान और तपस्या के स्थान हैं।

यहां शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्राचीन पुस्तकालय भी हैं, जिसमें दुर्लभ और प्राचीन पुस्तकें हैं, जो हिंदू धर्म और संस्कृति से संबंधित हैं। साथ ही यहां रहस्यमय मूर्तियाँ हैं जो हिंदू देवी- देवताओं की हैं और जिनका महत्व अखाड़े के साधुओं के लिए बहुत अधिक है।

अखाड़े के साधुओं द्वारा गुप्त साधनाएं की जाती हैं, जो अखाड़े के रहस्यों को दर्शाती हैं। अखाड़े में प्राचीन तंत्र-मंत्र का अभ्यास किया जाता है, जो अखाड़े के साधुओं को आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है। साथ ही इन्हें विभिन्न सिद्धि और शक्तियाँ प्राप्त हैं, जो उन्हें आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कार्यों में मदद करती हैं। अखाड़े में गुप्त समारोह आयोजित किए जाते हैं, वहीं अखाड़े में प्राचीन परम्पराएं निभाई जाती हैं , जो अखाड़े के इतिहास और महत्व को दर्शाती हैं।

क्या तपोनिधि अखाड़े का युद्ध मुगलों के साथ हुआ था?

जी हां, तपोनिधि अखाड़े का मुगलों के साथ भीषण युद्ध हुआ था। यह युद्ध 17वीं शताब्दी में हुआ था। जब मुगल बादशाह औरंगजेब ने हिंदू संस्थानों पर हमले किए थे। तपोनिधि अखाड़े के साधुओं ने मुगलों के खिलाफ संघर्ष किया था। जिसमें उन्होंने अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा की। यह युद्ध अखाड़े के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। औरंगजेब ने 1664 में तपोनिधि अखाड़े पर हमला किया था, जिसमें उन्होंने अखाड़े के साधुओं को मारने का आदेश दिया था। इसी दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने की पहली कोशिश में औरंगजेब सफल नहीं हो पाया था। अपनी मुगल सेना के साथ उसने पहली बार साल 1664 में मंदिर पर हमला किया था। लेकिन नागा साधुओं ने मंदिर का बचाव किया और औरंगजेब की सेना को बुरी तरह हराया। मुगलों की इस हार का वर्णन जेम्स जी,लोचटेफेल्ड की किताब 'द इलस्ट्रेटेड इनसाइक्लोपीडिया ऑफ हिंदूइज्म,वॉल्यूम 1' में मिलता है। इस किताब के मुताबिक वाराणसी के महानिर्वाणी अखाड़े के नागा साधुओं ने औरंगजेब के खिलाफ कड़ा विरोध किया था और मुगलों की हार हुई थी। लेखक ने इस ऐतिहासिक घटना को वाराणसी में महानिर्वाणी अखाड़े के अभिलेखागार(आर्काइव) में एक हाथ से लिखी किताब में देखा। उन्होंने इस घटना को अपनी किताब में 'ज्ञान वापी की लड़ाई' के रूप में बताया।

40 हजार नागाओं ने काशी विश्वनाथ के सम्मान के लिए दी जान

साल 1664 में काशी विश्वनाथ की रक्षा करने वाले नागा साधुओं का वर्णन जदुनाथ सरकार की किताब 'ए हिस्ट्री ऑफ दशनामी नागा संन्यासि' में भी मिलता है। जदुनाथ सरकार के मुताबिक नागा साधुओं ने महान गौरव प्राप्त किया था। सूर्योदय से सूर्यास्त तक युद्ध छिड़ गया था और दशनामी नागाओं ने खुद को नायक साबित कर दिया। उन्होंने विश्वनाथ के सम्मान की रक्षा की।

औरंगजेब ने 4 साल बाद यानी 1669 में वाराणसी पर फिर से हमला किया और मंदिर और मठों में तोड़फोड़ की। औरंगजेब जानता था कि मंदिर हिंदुओं की आस्था और भावनाओं से जुड़ा है इसलिए उसने ये सुनिश्चित किया कि इसे फिर से नहीं बनाया जाएगा और इसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया। ये मस्जिद आज भी मंदिर परिसर में मौजूद है। स्थानीय लोककथाओं और मौखिक कथाओं के अनुसार लगभग 40,000 नागा साधुओं ने काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी।

इस युद्ध में तपोनिधि अखाड़े के साधुओं ने बहुत बड़ी संख्या में मुगल सैनिकों को मार गिराया था, लेकिन अखाड़े को भी बहुत नुकसान हुआ था। युद्ध के बाद तपोनिधि आनंद अखाड़े के साधुओं ने अखाड़े की पुनर्स्थापना की, जिसमें उन्होंने अखाड़े के नियमों और अनुशासन को फिर से स्थापित किया। यह युद्ध इस अखाड़े के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो अखाड़े के साधुओं की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए उनके संघर्ष को दर्शाता है।

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