Mahakumbh 2025: महाकुंभ में लोगों के लिए आस्था और रोचकता का केंद्र बना दुनिया का सबसे बड़ा त्रिशूल और 1220 साल पुरानी पवित्र छड़ी
Mahakumbh 2025 Special Story: पौराणिक महत्व से जुड़े त्रिशूल की खूबियों की बात करें तो इस त्रिशूल की खास बात है कि यह है कि धरती को हिला देने वाले भूकंप और अतिवर्षा जैसी प्राकृतिक आपदा के दौरान भी यह त्रिशूल अपनी जगह से टस से मस नहीं होगा।
Mahakumbh 2025 Special Story: प्रयागराज महाकुंभ इस बार कई मायनों में बहुत खास होने वाला है। अनगिनत रोचकताओं से भरे इस बार महाकुंभ में यहां आने वाले श्रद्धालुओं को गंगा स्नान के साथ ही साथ और भी कई पौराणिक महत्व से जुड़ी वस्तुओं के दर्शन करने को मिलेंगे। जिसमें सबसे ज्यादा खास इस बार यहां स्थापित 151 फीट ऊंचे त्रिशूल का दर्शन लोगों के बीच कौतूहल का विषय बनेगा। यह त्रिशूल अपने आप में कई खूबियों को समेटे हुए हैं। श्री महंत नारायण गिरि के मुताबिक महाकुंभ में इस त्रिशूल का दर्शन करने वालों को भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद मिलेगा। इस दिव्य त्रिशूल को लेकर मान्यता है कि इसका दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं पर भोलेनाथ की विशेष कृपा बरसती है। प्रयागराज महाकुंभ में जाने वाले श्रद्धालुओं को इस त्रिशूल के दर्शन जरूर करने चाहिए। यह त्रिशूल शहर के कीडगंज इलाके में यमुना नदी के तट पर जूना अखाड़े के मौजगिरी आश्रम में मौजूद है।
दिव्य त्रिशूल की ये है खूबियां
पौराणिक महत्व से जुड़े त्रिशूल की खूबियों की बात करें तो इस त्रिशूल की खास बात है कि यह है कि धरती को हिला देने वाले भूकंप और अतिवर्षा जैसी प्राकृतिक आपदा के दौरान भी यह त्रिशूल अपनी जगह से टस से मस नहीं होगा।
यह मजबूती से अपने स्थान पर कायम रहेगा। इसकी दिव्यता के चलते इसे किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचता।
हिंदू धर्म में भगवान शिव के त्रिशूल का है धार्मिक महत्व
पुराने समय से हिंदू धर्म में भगवान शिव का अस्त्र त्रिशूल के प्रति घोर आस्था विद्यमान है। इसे शक्ति, संतुलन और ऊर्जा का संवाहक माना जाता है।
महाकुंभ जैसे पवित्र आयोजन में इस बार त्रिशूल की मौजूदगी श्रद्धालुओं के लिए श्रद्धा का केंद्र बिंदु होगी। लाखों भक्त इस त्रिशूल की झलक पाने के लिए आएंगे।
विधि विधान से की जाती है इस दिव्य त्रिशूल की पूजा अर्चना
आश्रम में रोजाना ब्रह्म मुहूर्त में इस त्रिशूल की विधिविधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है। प्रसाद और पुष्प अर्पित किए जाते हैं। त्रिशूल में सबसे ऊपर की तरफ तीनों कांटों के ठीक पीछे एक डमरू भी लगाया गया है। जूना अखाड़े के संरक्षक महंत हरि गिरि और प्रवक्ता नारायण गिरि के मुताबिक उनके अखाड़े ने कुंभ वाले सारे शहरों में इसी तरह से बड़े त्रिशूल स्थापित किए हैं।
इनमें से सबसे बड़ा त्रिशूल प्रयागराज में ही है। यह दुनिया का सबसे बड़ा त्रिशूल भी स्टील समेत कई धातुओं से तैयार किया गया है। इस त्रिशूल का कुल वजन 31 टन से ज्यादा है। और यह 151 फीट ऊंचा है। इसका लोकार्पण तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने 13 फरवरी, 2019 को किया था। उस वक्त इस आश्रम में देश भर के संत महात्मा जुटे थे।
महाकुंभ में 1220 साल पुरानी पवित्र छड़ी के होंगे दर्शन
प्रयागराज महाकुंभ में इस बार पौराणिक महत्व से जुड़ी 1220 साल पुरानी पवित्र छड़ी के भी दर्शन करने का अवसर श्रद्धालुओं को प्राप्त होगा।
श्री पंच दशनाम आवाहन अखाड़े के सैकड़ों महात्माओं द्वारा इस पवित्र छड़ी को हरिद्वार से प्रयागराज ले जाकर महाकुंभ स्थल पर दर्शन हेतु स्थापित किया जा रहा है।
1478 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहा शंभू पंच दशनाम आवाहन अखाड़ा
इस बार प्रयाग महाकुंभ में अखाड़ा श्री शंभू पंच दशनाम आवाहन नागा संन्यासी अपनी स्थापना के 1478 वर्ष के पूरे होने पर उत्सव मना रहे हैं।
इस बार 2025 महाकुंभ में आवाहन अखाड़ा अपना 123वां महाकुंभ स्नान पूर्ण करेगा। इस अवसर पर, पवित्र छड़ी भी पवित्र स्नान में भाग लेगी।1 जनवरी, 2025 से 27 फरवरी, 2025 तक यह पवित्र छड़ी प्रयागराज महाकुंभ में आवाहन अखाड़े के शिविर में दर्शन के लिए उपलब्ध रहेगी।
आदि गुरु शंकराचार्य के समय से जुड़ा है इस पौराणिक छड़ी का महत्व
महंत गोपाल गिरि ने इस पौराणिक छड़ी के महत्व के बारे में बताया कि अब से करीब 1220 साल पहले, आदि गुरु शंकराचार्य के मार्गदर्शन में, अखाड़ा श्री शंभू पंच दशनाम आवाहन नागा संन्यासी और श्री महंत के 550 महात्मा पूरे भारत में सनातन धर्म की शिक्षा का प्रचार करने के साथ देश दुनिया में स्थापित धार्मिक स्थलों के दर्शन के लिए जब निकले थे तब यह छड़ी उनके साथ थी।
विशालकाय डमरू बढ़ाएगा इस स्थल का रंग
संगम नगरी प्रयागराज के महाकुंभ में जहां एक तरफ विशालकाय त्रिशूल स्थापित किया जा रहा है, वहीं इस स्थल पर विशालकाय डमरू इस मौके के महात्म्य में रंग भरने का वाहक बनेगा। श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए एक विशालकाय डमरू तैयार किया गया है। महाकुंभ क्षेत्र से थोड़ी दूर पहले स्थापित किए गए इस विशालकाय डमरू को इतनी खूबसूरती से तैयार किया जा रहा है कि हर देखने वाला आश्चर्यचकित होकर इसे देखता रह जा रहा है।
कांसे और अन्य धातुओं से तैयार किए गए इस डमरू को एक बड़े चबूतरे पर रखा गया है। इस डमरू की चौड़ाई तेरह फिट और ऊंचाई आठ फिट के करीब है। इस डमरू को गाजियाबाद की एक कंपनी द्वारा करीब सौ दिनों के भीतर तकरीबन दो दर्जन शिल्पकारों की टीम की मदद से तैयार किया गया है। उत्तर प्रदेश जल निगम की ओर से तैयार कराए जा रहे इस डमरू को नागेंद्र कुमार की कंपनी स्थापित कर रही है।
इस जगह होगा डमरू स्थापित
इस विशाल शिव के डमरू को झूंसी में रेलवे ब्रिज के पास स्थापित किया जा रहा है। इस स्थल को एक पार्क के तौर पर तैयार किया जा रहा है। जबकि रेलवे लाइन के दूसरी तरफ डमरू की ही तरह बड़े आकार का शुभता का प्रतीक माने जाने वाले स्वास्तिक को भी स्थापित किया गया है। स्वास्तिक के चारों कोनों पर हाथ की आकृति बनाई गई है। कुंभ स्थल पर इस तरह की दिव्य वस्तुओं की मौजूदगी निश्चित ही लोगों के बीच एक दिव्य अनुभूति की संवाहक बनेंगी।