Mahant Narendra Giri sanyasi safar: आखिर कौन थे महंत नरेंद्र गिरि, कैसे बने संन्यासी, सिर्फ जाने यहां

Mahant Narendra Giri sanyasi safar: महंत नरेंद्र गिरि (Mahant Narendra Giri ) आज हमारे बीच नहीं हैं। उनकी मौत ने सभी को हैरत में डाल दिया है।

Newstrack :  Network
Published By :  Shweta
Update: 2021-09-22 15:10 GMT

महंत नरेंद्र गिरि (फोटोः सोशल मीडिया)

Mahant Narendra Giri sanyasi safar: अखाड़ा परिषद ( Akhara Parishad ) के अध्यक्ष बड़े महंत नरेंद्र गिरि (Mahant Narendra Giri ) का संदिग्ध परिस्थितियों में निधन हो गया हैं। उनकी मौत ने सभी को हैरत में डाल दिया है। पुलिस उनकी मौत से जुड़े विभिन्न पहलुओं की जांच कर रही है। नरेंद्र गिरि कैसे महंत बने उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें आज हम आपको बताएंगे सिर्फ यहां।

महंत नरेंद्र गिरि का शुरुआती सफर

महंत नरेंद्र गिरि (फोटोः सोशल मीडिया)

नरेंद्र गिरि ने 1983 में घर छोड़ा था। मन में वैराग्य आने पर गांव से शहर आ गए। तब उनकी उम्र लगभग 22 वर्ष थी। उस समय संगम तट पर कुंभ मेला लगा था। नरेंद्र गिरि श्रीनिरंजनी अखाड़ा के कोठारी दिव्यानंद गिरि के सान्निध्य में रहकर उनकी सेवा करने लगे। कुंभ खत्म होने के बाद दिव्यानंद उन्हें लेकर हरिद्वार गए। वहां उनका समर्पण देखकर उन्हें 1985 में संन्यास की दीक्षा दी और नरेंद्र गिरि नाम दिया। इसके बाद श्रीनिरंजनी अखाड़ा के महात्मा व श्रीमठ बाघम्बरी गद्दी के महंत बलवंत गिरि ने उन्हें गुरु दीक्षा दी। बलवंत गिरि के ब्रह्मलीन होने पर महंत नरेंद्र गिरि ने 2004 में मठ श्री बाघम्बरी गद्दी के पीठाधीश्वर तथा बड़े हनुमान मंदिर के महंत का कार्यभार संभाला। नासिक कुंभ से पहले 2014 में उन्हें अयोध्या निवासी महंत ज्ञानदास की जगह संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुना गया।

प्रयागराज में छतौना गांव के थे मूल निवासी

महंत नरेंद्र गिरि (फोटोः सोशल मीडिया)

नरेंद्र गिरि प्रयागराज में ही गंगापार इलाके में सराय ममरेज के छतौना गांव के मूल निवासी थे। उनका असली नाम नरेंद्र सिंह था। करीबी लोगों ने बताया कि उनके पिता भानु प्रताप सिंह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य रहे हैं। नरेंद्र ने स्थानीय बाबू सरजू प्रसाद सिंह इंटर कालेज से हाई स्कूल की पढ़ाई की थी।

चार भाई में दूसरे नंबर पर थे महंत

महंत नरेंद्र गिरि (फोटोः सोशल मीडिया)

महंत नरेंद्र गिरि के बाकी तीन भाई अशोक कुमार सिंह, अरविंद कुमार सिंह और आनंद सिंह हैं। उनके दो भाई शिक्षक हैं जबकि तीसरे भाई के बारे में बताया गया कि वह होमगार्ड विभाग में हैं। भयाहू आंगनबाड़ी में कार्यरत हैं। उनकी दो बहन प्रतापगढ़ में ब्याही हैं। संन्यासी जीवन में आने के बाद से उनका गांव आना जाना तो नहीं रहा । लेकिन गांव के लोगों से लगाव बना रहा। इलाके में होने वाले प्रमुख कार्य़क्रम में वह शिरकत करने जाते थे। प्रतापपुर के स्कूल में हुए शैक्षिक आयोजन में वह 2006 और 2010 में बतौर मुख्य अतिथि शरीक हुए थे। गम में डूबे ग्रामीण और परिवार के लोग महंत नरेंद्र गिरि के दुखद निधन की खबर से भक्त और संत समाज तो दुखी है ही, उनके परिवार और गांव के लोग गहरे गम में डूबे हैं। गांव और परिवार से कई लोग रात में ही श्री मठ बाघम्बरी गद्दी पहुंच गए थे। सुबह प्रतापगढ़ से बहन भी आ गईं। परिवार के लोग इस आकस्मिक घटना से स्तब्ध हैं।

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