Navratri Maa Chandraghanta : यहां है मां चंद्रघंटा का प्रसिद्ध मंदिर, जानें क्या है कथा और पूजा विधि

Navratri Maa Chandraghanta : नवरात्र के दौरान मां चंद्रघंटा की पूजा का विशेष महत्व है।

Written By :  aman
Published By :  Vidushi Mishra
Update: 2021-10-06 10:30 GMT

मां चंद्रघंटा (फोटो- सोशल मीडिया)

Navratri Maa Chandraghanta : शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन दुर्गा जी के तीसरे रूप मां चंद्रघंटा की पूजा (Navratri Maa Chandraghanta) होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, असुरों का संहार करने के लिए मां भगवती ने इस रूप को धारण किया था। माता के चंद्रघंटा रूप को परम शांतिदायक और कल्याणकारी माना गया है।

माता के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र (अर्धचंद्र) है। इसीलिए इन्हें मां चंद्रघंटा(Navratri Maa Chandraghanta) नाम से जाना जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान है। माता चंद्रघंटा के दस हाथ हैं, जिनमें अस्त्र-शस्त्र सुशोभित हैं। माता की सवारी सिंह है। 

नवरात्र के दौरान मां चंद्रघंटा(Navratri Maa Chandraghanta) की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यताओं के अनुसार जो कोई भक्त नवरात्रि में मां चंद्रघंटा की पूजा (Navratri Maa Ka Bhog) पूरे विधि-विधान से करता है, उसे अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। माता रानी के इस रूप को साहस और निडरता का प्रतीक माना गया है।

मां चंद्रघंटा (फोटो- सोशल मीडिया)

अतः जो कोई भक्त माता रानी के चंद्रघंटा(Navratri Maa Chandraghanta) रूप की विशेष तौर पर पूजा करता हैं, उसमें माता के आशीर्वाद से  सौम्यता और विनम्रता आती है। मां चंद्रघंटा (Chandraghanta Devi) की पूजा से रोगों से भी मुक्ति मिलती है।

इन सब के अलावा हम आपको बताने जा रहे हैं कि माता चंद्रघंटा(Navratri Maa Chandraghanta) का मंदिर कहां है? जहां जाकर आप आराधना के साथ अपनी मनोकामना भी मां के सामने रख सकते हैं।     

प्रयागराज में है विख्यात मंदिर (Maa Chandraghanta Ka Prasiddh Mandir)

माता चंद्रघंटा का विख्यात मंदिर (Mata Chandraghanta Ka Vikhyat Mandir) उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में स्थित है। यह व्यस्तम इलाके चौक में स्थित है। यह मां क्षेमा माई का प्राचीन मंदिर है। पुराणों में भी इस मंदिर का विशेष वर्णन किया गया है। यहां मां देवी दुर्गा (Maa Devi Durga), माता चंद्रघंटा स्वरूप में विराजती हैं।

कहा जाता है, कि इस मंदिर को इकलौता ऐसा मंदिर माना गया है, जहां मां दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों का एक साथ दर्शन होता है। इस मंदिर को लेकर लोगों में गहरी आस्था है। यहां माता के दर्शन मात्र से ही जातक के सभी मानसिक और शारीरिक कष्ट दूर हो जाते हैं। नवरात्रि के दौरान यहां इस मंदिर में हर साल विशेष आयोजन किए जाते हैं। 

दिनों के अनुसार होता है श्रंगार

इस मंदिर की खास बात यह है, कि नवरात्रि के दौरान यहां हर दिन देवी के अलग-अलग स्वरूपों का विशेष श्रृंगार होता है। प्रतिदिन मंदिर में माता को सुबह-शाम नए वस्त्र, आभूषण पहनाए जाते हैं।

साथ ही फूल आदि से श्रृंगार (Mata Ka Shringar Items List) किया जाता है, जिसके बाद सामूहिक आरती होती है। मनोकामना पूरी करने के लिए भक्त व्रत रखते हैं। बता दें कि इस मंदिर में बैंड बाजे के साथ माता के विभिन्न प्रतीक चिह्नों को भी चढ़ाने की परंपरा है। कहा जाता है ऐसा करने से माता रानी प्रसन्न होती हैं । वह अपने भक्त की मनोकामना पूरी करती हैं। 

मां चंद्रघंटा (फोटो- सोशल मीडिया)

वाराणसी में भी विख्यात मंदिर 

इसके अलावा शिव नगरी काशी में देवी चंद्रघंटा का मंदिर (Maa Chandraghanta Ka Mandir) लक्खी चौतरा के पास गली में स्थित है। यहां मंदिर तक जाने वाली गली बेहद संकरी है। लक्खी चौतरा की तरफ से बमुश्किल एक कतार लग पाती है। हम पहले भी बता चुके हैं कि मंदिरों की नगरी वाराणसी में मां दुर्गा के अन्य स्वरूपों के भी मंदिर हैं। ये सभी मंदिर काफी विख्यात हैं।  

पूजा विधि

मां चंद्रघंटा की पूजा (Maa Chandraghanta Ki Pooja) आरंभ करने से पहले माता को केसर और केवड़ा जल से स्नान करना चाहिए। इसके बाद उन्हें सुनहरे रंग के वस्त्र पहनाने चाहिए। भक्त को विशेष ख्याल रखना चाहिए कि माता रानी (Maa Chandraghanta Ki Pooja Vidhi) के इस रूप को कमल और पीले गुलाब की माला चढ़ाई जाती है। जिसके उपरांत नैवेद्य, मिष्ठान, पंचामृत और मिश्री का भोग (Navratri Maa Ka Bhog) लगाया जाता है। 

मां चंद्रघंटा को प्रसन्न करने का मंत्र (Navratri Chandraghanta Mantra)

या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:।

माता चंद्रघंटा की कथा (Mata Chandraghanta Ki Katha)

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब असुरों का आतंक बढ़ने लगा, तो मां दुर्गा ने चंद्रघंटा (Chandraghanta Story) का अवतार लिया। तब असुरों का स्वामी महिषासुर था। महिषासुर का देवताओं से भीषण युद्ध चल रहा था।

दरअसल, महिषासुर देवराज इंद्र से स्वर्ग का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था। उसकी इस इच्छा से सभी देवता परेशान और भयभीत थे। अब, इस समस्या से निजात के लिए सभी  भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने उपस्थित हुए। महिषासुर के अत्याचार और देवताओं की बात सुनकर तीनों को ही क्रोध आया।

कहा जाता है क्रोध के कारण तीनों देवताओं के मुख से जो ऊर्जा उत्पन्न हुई, उससे एक देवी अवतरित हुईं। उन्हें भगवान शिव ने अपना त्रिशूल तो भगवान विष्णु ने चक्र दिया। इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों में अपने अस्त्र-शस्त्र सौंप दिए। तब, देवराज इंद्र ने देवी को एक घंटा दिया और सूर्य देवता ने अपना तेज तथा तलवार दी। सवारी के लिए सिंह प्रदान किया गया। 

कथाओं में कहा गया है कि इसके बाद मां चंद्रघंटा महिषासुर के पास पहुंचीं। मां का यह रूप देखकर महिषासुर को यह आभास हो गया था कि अब उसका काल निकता है। तब अपने बचाव में महिषासुर ने माता पर हमला बोल दिया। इसके बाद देवताओं और असुरों में भीषण युद्ध हुआ और मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध किया।

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