Saharanpur News: योगगुरु आचार्य भारत भूषण से जानिए कैसे हुआ योग का उदय,धर्म दर्शन और योग दर्शन में क्या है संबंध
Saharanpur News: 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है। ऐसे में योग को लेकर कई सवाल मन में आते हैं कि भारत में योग की शुरुआत कब और कैसे हुई?
Saharanpur News: 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है। ऐसे में योग को लेकर कई सवाल मन में आते हैं कि भारत में योग की शुरुआत कब और कैसे हुई? योग धर्म है, आस्था है, साधना है, बीमारियों का इलाज है, आखिर योग है क्या? 20वीं सदी में भारत से दुनिया ने योग कैसे सीखा, कोरोना जैसे महामारियों से लड़ने में योग ने कितनी अहम भूमिका निभाई है? आज जिस तरह से योग का दुनिया में स्वरुप बदल रहा है और ग्लैमर की छाप दिख रही है। इसे आप कैसे देखते हैं?
इन सभी सवालों का जवाब देते हुए आचार्य योग गुरु भारत भूषण ने बताया कि योग की शुरुआत परेशानी, दुख के साथ हुई सृष्टि के सृजन के साथ ही योग की शुरुआत है, हिरण्यगर्भ पहले योग के गुरु हैं विधिवत योग की शुरुआत अर्थात लिखित रूप से योग दर्शन के साथ महर्षि पतंजलि के समय में हुई। योग की शुरुआत दुख से हुई और इसकी परिणति आनंद मे हुई। योग अध्यात्म विज्ञान है इसमें जगत भी है और जगत से पार परातत्व भी है। धर्म है जो कि धारण करने योग्य है और सभी धर्मों का एक ही गंतव्य है प्रभु की प्राप्ति आत्म साक्षात्कार और यह स्थिति वही है जैसे गंगा का समंदर में समाहित होना सभी नदियों का समंदर में मिल जाना हम योगी हुए बिना धार्मिक नहीं हो सकते कोई भी धर्म ऐसा नहीं है जो धर्म दर्शन 10 लक्षणों से बाहर हो।
और योग ने इन सभी 10 लक्षणों को अपने अंदर समाहित किया हुआ है। योग खुशबू है जिसे फैलाने में हवा का बहुत बड़ा योगदान होता है। विद्या हमेशा से उसे फैलाने के हमेशा से बिखरे हुए प्रयास चलते रहे विश्व में स्वामी विवेकानंद स्वामी राम बीएस अयंगर ने बताया और मैंने स्वयं अनेक देशों में जाकर इस कार्य को किया महर्षि महेश योगी जी ने दुनिया को बताया योग क्या है इस कड़ी में बहुत ज्यादा नाम है जिन्होंने दुनिया को योग से रूबरू कराया लेकिन यह बिखरे हुए प्रयास है 1990 में यह ख्याल आया क्यों ना इसे जोड़ा जाए और इस दिशा में प्रयास किए गए। और इसी के फल स्वरुप 21 जून को यूएनओ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों फल स्वरूप मिला।
दुनिया में राज परमाणु शक्ति से नहीं बल्कि दिलजीत कर किया जा सकता है योग से किया जा सकता है वैचारिक और दार्शनिक रूप से योग ही कार्य करता है। कोरोना से पहले भी कई महामारी आए हैं और योग ने सुरक्षित रहना सिखाया है जब भी कोई महामारी या संकट आता है तो योग हमें कछुआ बना देता है। योग को पढ़े बिना ही दुनिया ने उसे स्वीकार कर लिया है क्योंकि योग वह विद्या है जो प्रकृति से जुड़ी हुई है सर्वकल्याण से जुड़ी हुई है हम सब एकांत में हो अपनी कुटिया में हो निर्जन स्थान पर हो जाए भीड़ भाड़ से बचें प्रदूषण मुक्त स्थान होना चाहिए और शौच अर्थात कि हम अंतर और बाहरी रूप से स्वच्छ हो पवित्र हो। और आज तो हाथ मिलाने के बजाय विदेशों में भी सभी लोग एक दूसरे को हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं।
इस महामारी में पहले उन लोगों को बचाया गया जो पहले से बचे हुए थे उसके बाद जो संभावित है उन्हें बचाया गया उसके बाद जो पीड़ित है उन्हें बचाया गया और यह केवल योग से ही संभव हो पाया योग से ही इस वायरस को शरीर से बाहर निकाला गया कई योगिक क्रिया ऐसी है जिससे केवल फेफड़े ही संक्रमित रही तो नहीं हो गए बल्कि इस वायरस को भी शरीर से बाहर निकाल फेंका गया। योग प्रोटोकॉल से शरीर को निरोगी बनाया गया यदि हम सावधान हैं लापरवाह नहीं है तो एक ही नहीं बल्कि कई अन्य जी वायरस आए तो उन सभी से बचाव संभव है। यदि हम अपने स्वास्थ्य के सिद्धांत को तन मन और चेतना तीनों रूप से से करते हैं तो कोई भी रोग पास नहीं आ सकता। योग गुरु भारत भूषण जी ने कहा कि आज अपनी मातृ शक्ति के जरिए योग को योगा बना दे उसमें योग विद्या के प्रदर्शन के बजाय अंग प्रदर्शन हो केवल ग्लैमर बना देना योग को उचित नहीं है योग दर्शन है प्रदर्शन नहीं है दर्शन अंतरचक्षु का विषय है इसे महसूस किया जा सकता है इसका दर्शन नहीं किया जाता इससे योग की आत्मा आहट होती है उन्होंने कहा कि यह बड़े अफसोस की बात है कि आज जितने योग की मांग बढ़ी है उसके नाम पर लूट भी मची है इसको लोग बेचने में लग गए हैं इसलिए जरूरी है की सही योग सीखें।