UP Teacher Digital Attendance: यहां तो सब हाजिर हैं

UP Teacher Digital Attendance: जो बच्चे आज स्कूल में अपने नाम की हांक के बाद यस सर, जी मैडम या प्रेजेंट बोल कर हाजिरी दर्ज कराते हैं, वही नौकरी करने पर दफ्तर में हाजिरी दर्ज कराने लगते हैं।

Written By :  Yogesh Mishra
Update: 2024-07-15 12:14 GMT

UP Teacher Digital Attendance Row Update 

UP Teacher Digital Attendance Update: यूपी के सरकारी स्कूलों के टीचर इन दिनों आंदोलित हैं। मसला हाजिरी का है। बच्चों की नहीं, बल्कि खुद टीचरों की हाजिरी दर्ज करने का। द्वंद्व इस बात का है कि हाजिरी का सिस्टम बदला क्यों जा रहा। अच्छा भला रजिस्टर पर चिड़िया बैठाने का सिस्टम चला आ रहा था, अब अचानक टैबलेट और ऐप हाजिर कर दिया गया। डिजिटल हाजिरी रास नहीं आ रही। टीचर कोई डिपार्टमेंटल स्टोर के मुलाजिम थोड़े ही हैं जिनको ड्यूटी पर आते ही सेल्फी खींच कर कम्पनी एचआर को भेजना होता है। मामला फंसा हुआ है। बात विश्वास और अविश्वास की हो गई है। शिक्षकों पर भी भरोसा नहीं?

दरअसल, हाजिर और हाजिरी से कई बातें निकलती हैं। दरअसल,हाजिरी है तो जिंदगी है। हर कोई कहीं न कहीं हाजिर ही होता है क्योंकि जो गैर हाजिर है वह तो है ही नहीं। या वहाँ नहीं है जहां उसे होनी चाहिए । संसार में या तो कोई हाजिर है या फिर नहीं है। बीच की कोई स्थिति नहीं होती। हर कोई कहीं न कहीं हाजिर है।

हाजिरी भी तरह तरह की होती है। कोई हाजिरी देता है तो कोई हाजिरी दर्ज कराता है, तो कोई हाजिरी बजाता या फिर हाजिरी लगाता है। ये हाज़िरियाँ स्कूल से लेकर दफ्तर तक और बड़े साहब से लेकर बाबाओं और मन्दिर से लेकर दरगाहों मजारों तक लगाई - बजाई जातीं हैं।


बस, स्वरूप अलग अलग होता है। न जाने कब से ये सिलसिला चल रहा है। बजाने, दर्ज कराने और देने का। इनका तजुर्बा होता है और विशेषज्ञता भी। हर कोई दर्ज करा सकता है लेकिन बजाना और लगाना एक कला है जिसमें महारथ कुछ विशेषज्ञ ही पाते हैं।

नौकरी हो या बिजनेस या सेल्फ एम्प्लॉयमेंट हाजिरी देनी होगी

जो बच्चे आज स्कूल में अपने नाम की हांक के बाद यस सर, जी मैडम या प्रेजेंट बोल कर हाजिरी दर्ज कराते हैं, वही नौकरी करने पर दफ्तर में हाजिरी दर्ज कराने लगते हैं। और साथ ही प्रमोशन - इंक्रीमेंट के लिए अपने बड़े साहब के केबिन में या उनके घर पर हाजिरी "बजाते या लगाते" हैं। उनका बॉस भी सबसे बड़े वाले साहब के यहां हाजरी बजाता है और उसके भी ऊपर, कम्पनी का मालिक किसी मंत्री या सरकारी हाकिम के सामने रेगुलर हाजिरी बजाता रहता है। इसी चेन को आगे बढ़ाते हुए, आईएएस, मुख्यमंत्री के यहां, मुख्यमंत्री हाईकमान या पीएम के यहां हाजिरी बजाते लगाते रहते हैं। जिसकी जहां गोट फंसी है, जिसको जहां काम निकलवाना है सब एक दूजे के यहां हाजिरी बजाते रहे हैं। यहां तक कि ईश्वर से काम निकलवाना हो या काम होने का शुक्रिया देना हो तो फिर वहां भी हाजिरी लगानी होती है। इस चेन को कोई तोड़ नहीं सकता। नौकरी हो या बिजनेस या सेल्फ एम्प्लॉयमेंट - हाजिरी देनी होगी और बजानी भी होगी। जो शादीशुदा हैं उनको तो ताउम्र बीवी की हाजिरी बजानी पड़ती है। ये अलग ही मसला है।

हाजरी बजाने से कोई मुक्त नहीं है। ये नेता भी अछूते नहीं हैं। भले पांच साल नजर न आएं लेकिन चुनाव के मौके पर पूरी संजीदगी से जनता की हाजरी बजाने लगते हैं। नेतागीरी में उतरे हैं तो कुछ पाने के लिए ही तो न। सो इनको भी ऊपर नीचे, लेफ्ट राइट हाजिरी लगानी और बजानी पड़ती है। जहां तक दर्ज करने की बात है तो चूंकि सदन के सेशन के दौरान अलग से पैसा भत्ता मिलता है तो माननीय लोग सत्र में हाजिरी जरूर दर्ज कराते हैं भले ही सदन के भीतर कदम न रखें।


बायोमेट्रिक, रजिस्टर, कार्ड स्वाइप हाजिरी

हाजिरी दर्ज कराने का मसला कुछ अलग ही है। जो शिद्दत से कहीं ऊपर हाजिरी बजा रहा है, उसके लिए हाजिरी दर्ज कराना कोई मायने नहीं रखता। जब बजा ही ली तो दर्ज क्या कराना? क्या मंत्री, सीएम, पीएम, आईएएस, डीएम, चीफ सेक्रेटरी वगैरह कहीं हाजिरी दर्ज कराते हैं? पीएचसी सीएचसी के डॉक्टरों की अटेंडेंस कहां होती है, जरा बताइए? क्या डीएम साहब या मंत्री - मुख्यमंत्री महोदय बायोमेट्रिक हाजिरी देते हैं, कहीं रजिस्टर पर साइन करते हैं या क्या कोई कार्ड स्वाइप करते हैं? इनकी हाजिरी कोई चेक करता है? लेट आने पर लाल निशान से एब्सेंट लगाता है? तनख्वाह कटती है? हमने तो भई, न सुना न देखा। कोई नियम कानून है भी कि नहीं, पता नहीं।


हां इतना जरूर पता है कि जिस सरकारी खजाने से टीचर को तनख्वाह मिलती है उसी खजाने से इन हाकिम हुक्कामों को भी तनख्वाह मिलती है और ये तनख्वाह नोट छाप कर नहीं बल्कि हमारे टैक्स के पैसे से दी जाती है। तनख्वाह तो हमारे जनप्रतिनिधि भी उसी सरकारी खजाने से पाते हैं । लेकिन उनकी हाजिरी कहां दर्ज होती है? क्षेत्र में इनकी हाजिरी होती नहीं। ज्यादातर तो जोर जुगाड़ के लिए राजधानी में यहां वहां हाजिरी बजाते रहते हैं।

गुरुजनों की बात पर लौटें तो बेचारे आंदोलन करके, परीक्षा दे कर, हाजिरी बजा कर नौकरी पाए और धकेल दिए गए गांव देहात में। इतनी मशक्कत किसी तरह बर्दाश्त कर रहे हैं, माना कि कभी कभार स्कूल चले जाते हैं, नहीं भी जाते तो क्या, किसी और को नौकरी सब-लेट कर देते हैं। बीएसए, डीआईओएस और शिक्षा विभाग में हाजरी बजाते भी रहते हैं। काम तो चल ही रहा है न। अब पता नहीं किस हाकिम ने डिजिटल हाजिरी थोप दी। पहले खुद अपनी कराएं तब आगे बात करें।


सचिवालय में डिजिटल अटेंडेंस तो आज तक लागू नहीं

बात भी सही है। यूपी के सबसे बड़े दफ्तर यानी सचिवालय में डिजिटल अटेंडेंस तो आज तक लागू न हो पाई, बात करने लगे बलिया और मिर्जापुर के देहाती स्कूलों की। चले हैं टीचरों को ही पढ़ाने। बाबुओं को कंट्रोल कर नहीं पा रहे, गुरुजनों को राइट टाइम करने लगे।


अरे, लखनऊ नगर निगम में झांक कर देख लेते। सड़क पर झाड़ू लगाने वाले सफाईवीरों को जीपीएस वाली घड़ी तो पहना नहीं पाए। कोशिश तो की थी लेकिन झाड़ूओं के तेवर देखकर सब घड़ियां उतर गईं। उन महंगी महंगी जीपीएस घड़ियों का हुआ क्या, ये भी रहस्य है।

हाजिरी ऑफलाइन और फिजिकल मोड

हाजिरी का मसला टेढ़ा है। तीन तीन तरह की हाजिरी में हम घिरे हुए हैं। सिर्फ एक होती तो काम चल भी जाता लेकिन ऐसा है नहीं। ये हाजिरी बजाने लगाने वाले चक्कर पीछा ही नहीं छोड़ते। जमाना लाख डिजिटल हो जाये, बजाने वाली हाजिरी ऑफलाइन और फिजिकल मोड में ही होती है सो इससे छुटकारा मुमकिन नजर नहीं आता। हाकिम हुक्काम और सुधिजन कोई राह दिखा सकते हैं तो दिखाएं।

हम तो बस यही जानते हैं : महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥

सो राह दिखाइए, हम इंतज़ार में हैं। सब चीजें ऊपर से नीचे ही आती हैं। ज़रा अटेंडेंस की धारा भी ऊपर से बहा कर दिखाइए।

( लेखक पत्रकार हैं ।)

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