इस गांव के लोगों ने 500 साल से मांस-मदिरा को नहीं लगाया हाथ, रिकार्ड में दर्ज है नाम

देवबंद से मिरगपुर गांव की दूरी महज 5 किलोमीटर की है। ये गांव मंगलौर रोड पर काली नदी के तट पर बसा हुआ है। मिरगपुर अपने खास रहन-सहन और सात्विक खानपान के लिए विख्यात है।

Update: 2021-01-08 11:56 GMT
मिरगपुर गांव की आबादी 10 हजार है। ये गांव आज धूमपान रहित गांव की लिस्ट में भी शुमार है। इस गांव में ज्यादातर गुज्जर जाति के लोग रहते हैं।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के देवबंद से 5 किमी. की दूरी पर मिरगपुर नाम का एक ऐसा गांव हैं। जहां के लोगों मांस और मंदिरा का बिल्कुल भी सेवन नहीं करते हैं।

गांव के लोगों का दावा है कि पिछली कई पीढ़ियों( 500 साल) से ऐसा होता चला आ रहा है। इसके चलते इस गांव का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड में भी दर्ज है।

आस-पास के जिलों के तमाम लोग इस गांव को देखने आते हैं। वे यहां लोगों से बातें करते हैं और ये जानने की कोशिश करते हैं आखिर ऐसी कौन सी वजह है जिसके कारण यहां के लोग मांस और मंदिरा को हाथ तक नहीं लगाते हैं।

जबकि यहां पर ऐसा भी नहीं है कि गांव के लोग गरीब हो। बल्कि इस गांव के लोग काफी सम्पन्न हैं। गाड़ी से लेकर पक्का मकान सबकुछ लोगों के पास हैं। फिर क्या वजह है? गांव के लोग इसकी वजह भी बेहिचक होकर बताते हैं।

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इस गांव के लोगों ने 500 साल से मांस-मदिरा को नहीं लगाया हाथ, रिकार्ड में दर्ज है नाम(फोटो: सोशल मीडिया)

ये हैं वजह

गांव के लोगों की मानें तो आज से करीब 500 साल पहले इस गांव में बाबा गुरु फकीरा दास आए थे उन्होंने गांव के लोगों से कहा था कि वो नशा और दूसरे तामसिक पदार्थो का परित्याग कर दें तो गांव सुखी और समृद्धशाली बन जाएगा। यहां के लोग इस परंपरा का पालन 17वीं शताब्दी से आज तक करते आ रहे हैं।

गांव को नशामुक्त बनाने में युवाओं की बड़ी भूमिका

खास बात ये हैं कि मिरगपुर गांव को नशामुक्त बनाने में यहां के युवाओं का बड़ा योगदान हैं। गांव के लोग इसे बाबा फकीरा दास का आशीर्वाद मानते हैं।

गांव में मांस और मंदिरा का सेवन न किये जाने की चर्चा दूर-दूर तक फ़ैल चुकी है। यही वजह है कि इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड में गांव का नाम दर्ज हो गया है।

इस पर यहां के लोगों का कहना है कि इंडिया बुक आफ रिकॉर्ड में गांव का नाम दर्ज होना उनके लिए किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। गांव को नशा मुक्त का सर्टिफिकेट भी मिल चुका है।

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इस गांव के लोगों ने 500 साल से मांस-मदिरा को नहीं लगाया हाथ, रिकार्ड में दर्ज है नाम(फोटो: सोशल मीडिया)

गांव के अंदर बनी हुई है बाबा फकीरादास की समाधि

देवबंद से मिरगपुर गांव की दूरी महज 5 किलोमीटर की है। ये गांव मंगलौर रोड पर काली नदी के तट पर बसा हुआ है। मिरगपुर अपने खास रहन-सहन और सात्विक खानपान के लिए विख्यात है।

इस गांव की आबादी 10 हजार है। ये गांव आज धूमपान रहित गांव की लिस्ट में भी शुमार है। इस गांव में ज्यादातर गुज्जर जाति के लोग रहते हैं, यहां बाबा गुरु फकीरा दास की समाधि है।

बाबा गुरु फकीरा दास की समाधि पर हर साल उनकी याद में एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। गौर करने की बात ये हैं कि इस मौके पर लोग अपने रिश्तेदारों को अपने घर बुलाना नहीं भूलते हैं।

इस दिन गांव में लोगों के घरों में खाने पीने की सभी चीजें देसी घी में बनाई जाती है। लोगों के मुताबिक अगर कोई मेहमान धूम्रपान का शौकीन है भी तो वह भी यहां आकर इन सब चीजों से दूर ही रहता है।

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