लखनऊ कलेक्ट्रेट में 18 साल से भर्ती नहीं, खाली पड़े दफ्तर, सबके लटके काम

प्रदेश में योगी सरकार भले ही जनता की समस्याओंं के समाधान का दावा करे मगर हकीकत यह है कि जनता अपना काम कराने के लिए कलेक्ट्रेट और तहसीलों के चक्कर लगा-लगा कर थकी जा रही है।

Update:2017-07-21 14:23 IST

लखनऊ
: प्रदेश में योगी सरकार भले ही जनता की समस्याओंं के समाधान का दावा करे मगर हकीकत यह है कि जनता अपना काम कराने के लिए कलेक्ट्रेट और तहसीलों के चक्कर लगा-लगा कर थकी जा रही है। लोगों के काम लटके हुए हैं। अपना भारत/ newstrack .com ने जब इस मामले की पड़ताल की तो चौंकाने वाले खुलासे हुए। पड़ताल में पता चला कि प्रदेश भर के कलेक्ट्रेटों में आधे से ज्यादा पद खाली हैं।

जब कर्मचारी ही नहीं है तब भला फाइलों को कौन निपटाये। तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के ढेरों पद रिक्त पड़े हैं। इतना ही नहीं कई अनुभागों में तो रिटायर कर्मचारियों की मदद से किसी तरह काम निपटाया जा रहा है। यही कारण है कि जनता के हित के लिए बने सिटीजन चार्टर का सही ढंग से पालन नहीं हो पा रहा है। ऐसा नहीं है कि प्रदेश शासन को इस बाबत जानकारी नहीं है। हर जिला प्रशासन की ओर से इस बारे में प्रदेश शासन को जानकारी दी जा चुकी है मगर प्रदेश शासन इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं कर रहा।

लखनऊ कलेक्ट्रेट में 18 साल से भर्ती नहीं

लखनऊ कलेक्ट्रेट में वरिष्ठ लिपिक, कनिष्ठ लिपिक, आशुलिपिक और चतुर्थ श्रेणी के कुल 250 पद स्वीकृत हैं। इनमें वरिष्ठ लिपिक, आशुलिपिक और कनिष्ठ लिपिक के 40 पद रिक्त हैं। इनमें शस्त्र अनुभाग, खनन, भूमि अर्जन, निर्वाचन सहित कई अनुभागों में मानकों से कहीं कम बाबुओं के कंधों पर फाइलों को निपटाने की जिम्मेदारी है।

इनमें से कई अनुभागों में तो रिटायर हो चुके बाबू अब भी सेवाएं देते नजर आ रहे हैं। लखनऊ कलेक्ट्रेट में नजारत विभाग में बड़े बाबू के नाम से काफी मशहूर बाबू सेवानिवृत्ति के कई माह गुजर जाने के बावजूद डटे हुए हैं। जनहित से जुड़ी महत्वपूर्ण फाइलों को निपटाते और गोपनीय फाइलों की आख्या बनाते इन्हें देखा जा सकता है।

इसके अलावा शस्त्र अनुभाग के वर्मा बाबू हों या खनन के इसी श्रेणी के कर्मचारी इनसे ही काम लिया जा रहा है। ऐसे ही कई बाबू और कर्मचारी महत्वपूर्ण और ऊपरी कमाई दों पर रिटायरमेंट के बावजूद जमे हुए हैं। इसके अलावा यहंा चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के भी 60 पद खाली हैं। इनमें सफाईकर्मी से लेकर चौकीदार, डाक वाहक, माली और अन्य कर्मचारी शामिल हैं। इन खाली पदों पर पिछले 18 सालों से कोई भर्ती नहीं हुई है। 1999 में आखिरी बार यहां भॢतयां हुई थीं। पढ़ें पूरी खबर

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शासन नहीं कर रहा कार्रवाई

लखनऊ कलेक्ट्रेट के नजारत अनुभाग के एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 18 सालों से लिपिकों के पदों पर भर्ती न होने से कामकाज पर बुरा असर पड़ रहा है। इसके चलते एक-एक लिपिक चार से पांच सेक्शन देख रहा है। इससे फाइलों पर नोटिंग से लेकर उन्हें आगे बढ़ाने की गति धीमी हो गई है। आम जनता के हित सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि रिक्त पदों पर भर्ती के लिए शासन को पत्र भेजा जा चुका है। लेकिन इस पर कोई कार्रवाई अभी तक नहीं हुई। बीच में कुछ संविदा काॢमयों को लगाकर काम कराया गया था, लेकिन इससे भी काम की गति पटरी पर नहीं आ पा रही है।

कर्मचारियों की कमी से कई काम प्रभावित

कलेक्ट्रेट में स्वीकृत पदों के सापेक्ष भर्ती के अभाव में आम जनता के काम निर्धारित कार्यदिवसों के भीतर नहीं हो पा रहे हैं। इसमें स्थायी निवास प्रमाण पत्र दो सप्ताह, आय व जाति प्रमाण पत्र सात कार्यदिवसों में, शस्त्र लाइसेंस के संबंध में 60 कार्यदिवसों में सक्षम अधिकारी को निर्णय लेना होता है। इसके अलावा इंटीग्रेटेड ग्रीवियांस रीड्रेसल सिस्टम (आईजीआरएस) के तहत ऑनलाइन आने वाली शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई का नियम है, लेकिन कर्मचारियों की सीमित संख्या के चलते इन सब कामों में बाधा आती है।

रिटायर कर्मियों से नहीं ले रहे काम: डीएम

डीएम कौशल राज शर्मा ने बताया कि यह सच है कि कलेक्ट्रेट में बाबुओं और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के कई पद खाली हैं। इसके लिए पूर्व के जिलाधिकारी शासन को अवगत करा चुके हैं। फिलहाल जो कर्मचारी उपलब्ध हैं उन्हीं से काम चलाया जा रहा है। सेवानिवृत्त कर्मचारी से काम नहीं लिया जा रहा है। फिर भी इसे दिखवा लिया जाएगा। हमारा प्रयास है कि हर हाल में जनता के कार्यों को निश्चित कार्यदिवसों के अंदर निस्तारित किया जाए। इसके अलावा हम डिजिटलाइजेशन की ओर बढ़ रहे हैं। हम वर्तमान में आय, जाति, निवास प्रमाण पत्रों को ऑनलाइन ही निस्तारित कर रहे हैं। आईजीआरस सिस्टम पूरी तरह से ऑनलाइन समन्वित शिकायत निवारण प्रणाली है। इसी तरह बाकी कार्यों का संपादन भी ऑनलाइन कराए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

मैनपुरी में खाली हैं 40 फीसदी पद

मैनपुरी कलेक्ट्रेट में 114 पद हैं, जिसमें 40 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। मात्र 67 पदों पर ही कर्मचारी कार्यरत हैं, शेष 47 पद रिक्त चल रहे हैं। जिम्मेदार अधिकारियों ने बताया कि किसी भी काम को बाधित नही होने दिया जा रहा है। हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि कर्मचारियों की कमी से कुछ दिक्कतें होती हैं। अधिकारियों का कहना है कि शासन को खाली पड़े पदों के बारे में जानकारी दी जा चुकी है।

हरदोई में भी मानक के अनुरूप कर्मचारी नहीं

हरदोई कलेक्ट्रेट में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या 116 है, जबकि 160 पद मंजूर हैं। यहां 44 पद खाली चल रहे हैं। इन पदों पर तैनाती के लिए शासन को पत्र लिखा जा चुका है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इसके चलते आम जनता को अपने काम करवाने के लिए कई चक्कर लगाने पड़ते हैं। जिले में वरिष्ठ लिपिक के 86, कनिष्ठ लिपिक के 47 और आशुलिपिक के छह पद स्वीकृत हैं। इसमें वरिष्ठ और कनिष्ठ लिपिक के 41 पद खाली चल रहे हैं।

बलिया में कनिष्ठ लिपिक के 33 पद रिक्त

बलिया कलेक्ट्रेट में कनिष्ठ लिपिक के कुल 48 पद स्वीकृत हैं लेकिन मात्र 15 कर्मचारी ही कार्यरत हैं। 33 पद रिक्त पड़े हैं। राहत की बात सिर्फ यह है कि वरिष्ठ लिपिक के सभी स्वीकृत 72 पद भरे हुए हैं। अपर जिलाधिकारी मनोज कुमार सिंघल का कहना है कि कनिष्ठ लिपिकों की कमी के कारण एक-एक लिपिक को कई-कई पटलों का काम दिया गया है। मजबूरी में वरिष्ठ लिपिकों को कनिष्ठ लिपिकों का काम दिया गया है। उन्होंने कहा कि इस बाबत शासन को पत्र भेजा जा चुका है। उम्मीद है कि जल्द कार्रवाई होगी।

मेरठ कलेक्ट्रेट में भी कर्मचारियों का अकाल

मेरठ कलेक्ट्रेट में भी कर्मचारियों का भीषण अकाल है। मेरठ कलेक्ट्रेट यूनियन के अध्यक्ष सुरेश चंद्र शर्मा कहते हैं कि पिछले 5 सालों से नई भर्ती नहीं हुई है जबकि करीब-करीब हर महीने कोई न कोई कर्मचारी रिटायर हो रहा है। ऐसे में कर्मचारियों की कमी बढ़ती ही जा रही है। एक-एक बाबू पांच से छह सेक्शन देख रहा है।

इस कारण एक ओर कर्मचारी तनाव में आने के कारण डिप्रेशन जैसी बीमारियों का शिकार बन रहे हैं तो दूसरी तरफ जनता के कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। शर्मा के अनुसार फिलहाल कलेक्ट्रेट में 116 कर्मचारी कार्यरत हैं जबकि 50 पद रिक्त हैं। यूनियन की तरफ से इस संबंध में जिम्मेदार अफसरों को कई बार मांग पत्र दिया जा चुका है, लेकिन हालात जस के तस ही बने हुए हैं। जिलाधिकारी समीर वर्मा ने स्वीकारा कि कलेक्ट्रेट में कर्मचारी मानक से कम हैं, लेकिन इसके कारण फाइलों के निस्तारण में देरी से इनकार किया।

गोंडा में मात्र 37 कर्मचारियों के भरोसे कलेक्ट्रेट

गोंडा के कलेक्ट्रेट में सीधी भर्ती के 77 और पदोन्नति के 78 पद हैं। सीधी भर्ती के 77 के सापेक्ष मात्र 37 कर्मचारी कार्यरत हैं और 30 पद रिक्त है। कलेक्ट्रेट इन 37 कर्मचारियों के भरोसे ही चल रहा है। इससे यहंा कार्यरत लिपिकों के पास कई पटलों का कार्य हैं। इसके साथ ही समय-समय पर लागू योजनाओं का काम देखने के लिए पदों का सृजन न होने से कार्य प्रभावित होता है। जिला कलेक्ट्रेट के आंकड़े बताते हैं कि यहंा सीधी भर्ती के कुल 77 पद सृजित हैं, जिसमें कनिष्ठ सहायक के 53, वाहन चालक के 14 और आशुलिपिक के 10 पद हैं। इसमें लगभग 40 फीसदी पद रिक्त हैं। वर्तमान में सीधी भर्ती वाले 77 पदों में 30 पद रिक्त हैं, जिसमें लिपिक के 28, वाहन चालक और आशुलिपिक का एक-एक पद रिक्त है।

सहारनपुर कलेक्ट्रेट में फाइलों का अंबार

सहारनपुर जिले में कलेक्ट्रेट के अलग-अलग अनुभागों में फाइलों का अंबार लगा हुआ है। यहां ३० से ज्यादा पद खाली हैं। एक-एक कर्मचारी के जिम्मे कई पटल का काम है। आफिस में फाइलों का अंबार लगा हुआ है। एक फाइल के निस्तारण में 6 से 13 दिन का समय लग रहा है। यहंा रिटायर कर्मचारियों से भी काम लिया जा रहा है। पिछले दिनों राज्य सरकार ने न्यायिक कार्यों के निस्तारण के लिए कुछ नए पद सृजित किए थे, जिनमें एक अपर जिलाधिकारी (न्यायिक कार्य), पांच एसडीएम (न्यायिक कार्य) और तीन तहसीलदार (न्यायिक कार्य) हैं। यह सभी पद रिक्त हैं। अपर जिलाधिकारी प्रशासन एस.के.दुबे ने बताया कि कर्मचारियों की कमी और नियुक्ति की बाबत समय-समय पर शासन को अवगत कराया जाता रहा है। कर्मचारियों की कमी के कारण कार्यों को निपटाने में कुछ दिक्कतें आती है, लेकिन इसके बावजूद कोशिश की जाती है कि समय से काम को निपटा दिया जाए। कलेक्ट्रेट में प्रशासनिक अधिकारी के तीन पद रिक्त हैं। इसके अलावा प्रधान सहायकों के 20 में दो,वरिष्ठ सहायकों के 61 में 4, कनिष्ठ सहायकों के 37 में 19, उर्दू अनुवादकों के पांच में एक, आशुलिपिकों के आठ में एक पद रिक्त है।

रायबरेली में कर्मचारियों की कमी से कामकाज प्रभावित

रायबरेली कलेक्ट्रेट में 306 कर्मचारी होने चाहिये लेकिन हैं सिर्फ 213। एक-एक कर्मचारी कई पटलों का काम देख रहा है। अधिकारी भी अब सरकारी फाइलों के देरी से हो रहे निपटारे को लेकर अभ्यस्त हो चुके हैं। हर साल पद खाली हो रहे हैं, लेकिन उन्हें भरा नहीं जा रहा। इस कारण फाइलें तय समय सीमा से ज्यादा समय तक अपूर्ण पड़ी रहती है और फरियादी कुर्सी दर कुर्सी चक्कर काटते रहते हैं। अपर जिलाधिकारी प्रशासन तिलकधारी ने बताया कि कलेक्ट्रेट कार्यालय में करीब 93 कर्मचारियों के पद रिक्त है। इस बाबत शासन को जानकारी दे दी गयी है।

पीएम के संसदीय क्षेत्र में कर्मचारियों का टोटा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के जिलाधिकारी कार्यालय में कर्मचारियों का जबर्दस्त टोटा है। कलेक्ट्रेट में कर्मचारियों के एक तिहाई पद खाली पड़े हैं। यहां कुल 144 पद हैं जिनमें 112 पदों पर कर्मचारियों की तैनाती है जबकि 28 पद खाली हैं। चतुर्थ श्रेणी के कुल 150 पद हैं जिनमें 90 पदों पर तैनाती है और 60 पद खाली पड़े हैं। स्टेनो के लिए 12 में से 7 पद खाली है।

सफाई का हाल तो और भी खराब है। पिछले एक दशक से किसी भी सफाई कर्मचारी की बहाली नहीं हुई है। कलेक्ट्रेट परिसर में सफाई कर्मचारी के लिए कुल तीन पद हैं, लेकिन तीनों फिलहाल खाली है। संविदा पर सफाई कर्मचारी तैनात हैं। एक कर्मचारी ने बताया कि प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र होने के कारण आए दिन केंद्रीय और राज्य मंत्रियों का दौरा होता रहता है। इसके अलावा शहर में इन दिनों विभिन्न परियोजनाएं चल रही हैं, जिसकी सीधी मॉनिटरिंग दिल्ली से हो रही है। लिहाजा काम का दवाब बढ़ता जा रहा है। लोकवाणी संविदा के तहत 10 कर्मचारियों को तैनाती तो जरूर मिली है, लेकिन वे नाकाफी हैं।

बोझ के बावजूद खुश हैं आजमगढ़ के बाबू

आजमगढ़ कलेक्ट्रेट में 181 पदों में 53 पद रिक्त हैं। इसके अलावा समाजवादी सरकार में चार उर्दू अनुवादक भी रखे गये हैं जिनकी सूची इन स्वीकृत पदों से इतर है। इन स्वीकृत पदों के सापेक्ष मौजूदा समय में 128 कर्मचारी ही कार्यरत हैं। ऐसे में कई कर्मचारी कई पटल देखने पर मजबूर हैं। नजारत व शस्त्र अनुभाग में सेवानिवृत्त कर्मचारी सेवाएं दे रहे हैं। कर्मचारियों की कमी के कारण आम आदमी को तमाम दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं।

फाइलों का निस्तारण महीनों नहीं हो पाता। ऐसे में लोग मामूली काम के लिए रोज कलेक्ट्रेट का चक्कर काटते रहते हैं। वैसे कई पटल का काम देख रहे कर्मचारी बोझ के बावजूद खुश रहते हैं। वजह यह कि उनका पटल ऊपरी कमाई वाला होता है और अधिकारी की कृपा पर मिला होता है। एडीएम वित्त एवं संयुक्त कार्यालय कलेक्ट्रेट के प्रभारी अधिकारी वीरेन्द्र कुमार गुप्ता का कहना है कि कर्मचारियों की कमी के कारण एक-एक कर्मचारी कई पटल का काम देख रहे हैं। देर रात तक उन्हें काम करना पड़ता है। किसी तरह से काम चलाया जा रहा है। शासन को इस बाबत अवगत कराया जा चुका है।

गाजियाबाद कलेक्ट्रेट में 50 प्रतिशत पद खाली

गाजियाबाद कलेक्ट्रगेट का हाल तो लखनऊ से भी बुरा है। यहां 50 प्रतिशत बाबू और चपरासी के पद खाली हैं। सबसे ज्यादा कमी ड्राइवरों की है। जिससे फील्ड वर्क काफी प्रभावित होता है। कलेक्ट्रेट के नजारत अनुभाग में ही 43 पद रिक्त हैं। ये सारे पद वीआईपी डाक बांटना, विशेष पत्र वाहक और कोर्ट के नोटिस तामील कराने और महत्वपूर्ण फाइलें एक जगह से दूसरे जगह पहुंचाने जैसे काम करने वालों के हैं।

हालत यह है कि कलेक्ट्रेट की कोर्ट में चल रहे केसों की फाइलों का ढेर खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। सुरक्षा की दृष्टि से पांच चौकीदारों की तैनाती होनी चाहिए, लेकिन मात्र दो ही चौकीदार हैं। वाटरमैन के दो पद स्वीकृत हैं लेकिन एक भी वाटरमैन नहीं है। जमादार के चार स्वीकृत पदों में से एक पर ही तैनाती है। बाकी तीन पदों पर पिछले 10 सालों से कोई नियुक्ति नहीं हुई है। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के 68 पदों के सापेक्ष मात्र 39 कर्मचारी ही तैनात हैं और शेष 29 पद रिक्त हैं।

सीएम योगी के क्षेत्र में भी कर्मचारियों की कमी

गोरखपुर कलेक्ट्रेट में लिपिकों के 192 पद स्वीकृत हैं। इनमें से 162 पर ही कर्मचारी नियुक्त हैं। शेष 30 पद रिक्त चल रहे हैं। आलम यह है कि लिपिकों ने अपने सहयोग के लिए प्राइवेट कर्मचारियों को रखा हुआ है। इसी तरह चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के 158 स्वीकृत पदों के सापेक्ष 119 कर्मचारी तैनात हैं। यहां अलग-अलग प्रशासनिक कोर्टों में 15 हजार से अधिक मामले लंबित हैं। यहां सेवानिवृत कर्मचारियों से समय-समय पर सहयोग लिया जाता है।

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