UP Politics: राजनीति में 'राजभर' के कितने साथी

इसी कड़ी में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के धुर विरोधी रहे ओम प्रकाश राजभर बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए अखिलेश यादव के साथ चुनावी बिगुल फूंक रहे हैं।

Newstrack :  Network
Published By :  Divyanshu Rao
Update: 2021-10-28 16:14 GMT

ओम प्रकाश राजभर और अखिलेश यादव की तस्वीर

UP Politics: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में अगले साल विधानसभा चुनाव (Vidhan Sabha Chunav 2022) होने वाले हैं जिसकी वजह से यूपी की सियासी तपिश भी बढ़ने लगी है। चुनाव के मुहाने पर खड़े सूबे में सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी जमीन तैयार करने और जनाधार बढ़ाने के लिए दल बल के साथ मैदान में उतर चुके हैं।

इसी कड़ी में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के धुर विरोधी रहे ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) बीजेपी (BJP) के विजय रथ को रोकने के लिए अखिलेश यादव के साथ चुनावी बिगुल फूंक रहे हैं। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन का एलान कर दिया है। मऊ जिले के हलधरपुर में सुभासपा की रैली में अखिलेश और राजभर ने एक मंच पर आकर गठबंधन की औपचारिक घोषणा करते हुए किसी भी सूरत में बीजेपी को रोकने का एलान किया है।

इस गठबंधन की उम्र कितनी लंबी होगी यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन उससे पहले यह भी जानना जरूरी है कि कभी बीजेपी की सरकार में सहयोगी रहे राजभर अखिलेश यादव से बीते दिनों हुई मुलाकात से पहले बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह से भी मिले थे। लेकिन इसे सिर्फ व्यक्तिगत मुलाकात कहा गया।

हालांकि राजनीति में ऐसी मुलाकातें यूं ही नहीं होती हैं। इनके पीछे बड़े मकसद होते हैं। इससे पहले भी ओम प्रकाश राजभर बीजेपी के संपर्क में लगातार बने रहे। जिसको लेकर सियासी पंडितों का मानना था कि राजभर जल्द ही बीजेपी के साथ फिर हाथ मिला सकते हैं। फिलहाल राजभर इन सभी कयासों पर विराम लगाते हुए अखिलेश के साथ आ खड़े हुए हैं।

ओम प्रकाश राजभर की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

वहीं भागीदारी संकल्प मोर्चा (Bhagidari Sankalp Morcha) के सहयोगी रहे असद्दुदीन ओवैसी को राजभर ने अपनी रैली से दरकिनार कर दिया । जबकि राजभर के साथ भागीदारी मोर्चे का हिस्सा सबसे पहले ओवैसी ही बने थे। इस मोर्चे के गठन के साथ पांच साल में पांच मुख्यमंत्री और 20 डिप्टी सीएम का फार्मूला भी तय हुआ था । जिसे शायद ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। क्योंकि अखिलेश यादव किसी दूसरे चेहरे को सीएम बनाने पर कतई सहमत नहीं होंगे। इतना तो ओम प्रकाश राजभर भी समझते हैं।

सपा और सुभासपा के गठबंधन से सत्तारूढ़ दल को कितना नुकसान होगा इस पर अभी ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि जिस बीजेपी को हराने के लिए यह गठबंधन हुआ है उसने पिछले चुनाव में प्रचंड जीत दर्जकर सत्ता में पहुंची थी। इसके अलावा बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग और योगी-मोदी मैजिक से पार पाना इतना आसान नहीं होगा।

ओम प्रकाश राजभर और अखिलेश यादव के साथ आने से यादव, मुस्लिम और राजभर वोटर्स का फायदा इस गठबंधन को मिल सकता है। हालांकि यादव और मुस्लिम वोटर्स को अगर छोड़ दें तो राजभर समुदाय की हिस्सेदारी यूपी में लगभग ढाई फीसदी है। जो पूर्वांचल की कुछ सीटों पर अपना दबदबा रखता है। बाकी मुस्लिम और यादव सपा का कोर वोटबैंक है लेकिन ओवैसी इस बार जिस तरह से यूपी में सक्रिय हैं उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है। फिलहाल ये गठबंधन 2022 के चुनावी समर में अखिलेश और राजभर के लिए कितना फायदे का सौदा साबित होता है ये आने वाला वक्त बताएगा।

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