विश्व धरोहर सप्ताह: सरहट और खम्भेश्वर के इन शैलाश्रयों में छिपे हैं कई राज

इस मौके पर राजकीय महाविद्यालय के तमाम स्टाफ सहित सैकडो विद्यार्थी उपस्थित रहे। क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ रामनरेश पाल ने बताया कि विश्व धरोहर सप्ताह के अंतिम दिन सोमवार को समापन कार्यक्रम सम्पन्न होगा। जिस मौके पर विभिन्न प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग करने वाले सभी छात्र छात्राओं को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जायेगा।

Update: 2019-11-23 13:01 GMT

मानिकपुर/चित्रकूट: विश्व धरोहर सप्ताह के अंतर्गत चौथे दिन क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ रामनरेश पाल के नेतृत्व में पुरातात्विक साइट का शैक्षिक भृमण किया। राजकीय महाविद्यालय के सैकड़ो विद्यार्थियों ने सरहट और खम्भेश्वर स्थित हजारो वर्ष पुराने शैलाश्रयों का अवलोकन किया। गौरतलब हो कि ये शैलचित्र पुरापाषाणकाल के समय बताये जाते हैं।

फिलहाल अभी तक इन स्थानों पर बने चित्रों की डेटिंग नही हुई है और न ही किसी तरह का उत्खनन हुआ है। लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि ये शैलचित्र हजारो वर्ष पुराने हैं। पुरातत्वप्रेमी एवं पत्रकार अनुज हनुमत ने सरहट और खम्भेश्वर स्थित शैलचित्रों के बारे में विद्यार्थियों को गहनता से बताया और समझाया कि आखिर ये मानव सभ्यता के शुरुआती विकास से जुड़े ये चित्र क्यों खास हैं। सभी छात्र इन शैलचित्रों को देखकर हतप्रभ रह गए। इन शैलचित्रों पर वर्षो से कार्य कर रहे पत्रकार अनुज हनुमत ने विद्यार्थियों को बताया कि यह पूरा स्थान ही पूर्वजों के हाथों और पैरों से घिसकर चिकना किया हुआ प्रतीत होता है और यहाँ चट्टानों का ऐसा चिकनापन प्रकृति के अपक्षय से नही हो सकता। सारी चट्टानें चीख चीख कर कह रही हैं की यहाँ एक मानव सभ्यता पनपी थी।

ये स्थान भीमबैठका के नाम से जाना जाता है

प्राचीन इतिहास के शोध छात्रों को इसे अपने शोध का विषय बनाना चाहिए जिससे इससे जुड़े और भी राज खुल सकें। रस्सी की रगड़ से पत्थर पर निशान पड़ जाता है वैसे ही उन पूर्वजों के दैनिक कार्यों के कारण ये पूरा स्थल भी मानवकृत और चिकना हो गया है। उन्होंने अवलोकन के दौरान बताया कि ऐसे ही शैलचित्र भारत के मध्य प्रांत प्रान्त के रायसेन जिले में स्थित है। ये स्थान भीमबैठका के नाम से जाना जाता है। यह एक पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थल है। जो आदि मानव द्वारा बनाये गए शैल चित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है। इन चित्रों को पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल के समय का माना जाता है। ये भारत में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं।

कैसे पाषाण युग मे आदिमानव पत्थरो के छोटे छोटे औजारों का प्रयोग करते थे

ऐसा माना जाता है कि यह स्थान महाभारत के चरित्र भीम से संबन्धित है एवं इसी से इसका नाम भीमबैठका पड़ा। ये गुफाएँ मध्य भारत के पाठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विन्ध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर हैं। सरहट और उसके आस पास के स्थानों पर जो शैलचित्र पाये गये हैं वो भी हूबहू भीमबैठका के शैलचित्रों जैसे ही हैं। यानि कि भीमबैठका और सरहट के शैलचित्रों में काफी सामानता है । इस कारण ये भी हजारों साल पुरानी संस्कृति हुई।

इस भृमण के दौरान क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ रामनरेश पाल ने भी विद्यार्थियों को इन शैलाश्रयों के विषय मे गहराई से बताया। उन्होंने शैलाश्रयों के नीचे से ही टूल्स खोजकर विद्यार्थियों को दिखाया और बताया कि कैसे पाषाण युग मे आदिमानव पत्थरो के छोटे छोटे औजारों का प्रयोग करते थे।

उन्होंने विद्यार्थियों को बताया कि हम आज विज्ञान प्रगति के ऐसे दौर में हैं जहाँ हमारे पास हर सुख सुविधा मौजूद है और विज्ञान ने आज हमारा जीवन सुखदायी बना दिया है। आज हम चाँद और मंगल ग्रह से लेकर अंतरिक्ष तक की यात्रा बिना किसी सन्देह के आसानी से कर लेते हैं। लेकिन हजारों-लाखों साल पहले एक ऐसा भी समय था जब हमारे पूर्वज (आदिमानव) मानव सभ्यता के विकास के दौर से गुजर रहे थे जहाँ हर काम कठिन था।

इस मौके पर राजकीय महाविद्यालय के तमाम स्टाफ सहित सैकडो विद्यार्थी उपस्थित रहे। क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ रामनरेश पाल ने बताया कि विश्व धरोहर सप्ताह के अंतिम दिन सोमवार को समापन कार्यक्रम सम्पन्न होगा। जिस मौके पर विभिन्न प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग करने वाले सभी छात्र छात्राओं को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जायेगा।

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