कोरोना वायरसः लगने लगी वैक्सीन, कामयाबी कोई इंफेक्शन नहीं, दुष्परिणाम नहीं
एक ओर भारत, अमेरिका समेट तमाम देशों में कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीन बनाने के प्रयास युद्धस्तर पर जारी हैं वहीं चीन में लाखों लोगों को कोरोना की वैक्सीन लागाई जा चुकी है। यही नहीं, चीन के सहयोग से बन रही वैक्सीन को यूएई में भी लगाया जाना शुरू कर दिया गया है।
लखनऊ: एक ओर भारत, अमेरिका समेट तमाम देशों में कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीन बनाने के प्रयास युद्धस्तर पर जारी हैं वहीं चीन में लाखों लोगों को कोरोना की वैक्सीन लागाई जा चुकी है। यही नहीं, चीन के सहयोग से बन रही वैक्सीन को यूएई में भी लगाया जाना शुरू कर दिया गया है।
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चीन के सरकारी टीवी चैनल नेटवर्क ''सीजीटीएन'' ने कहा है कि चीन में विकसित दो वैक्सीनों को लाखों लोगों को लगाया जा चुका है और एक भी व्यक्ति में कोई दुष्परिणाम या कोरोना का इन्फेक्शन नहीं देखा गया। ये दोनों वैक्सीन चाइना नेशनल बायोटेक ग्रुप (सीएनबीजी) द्वारा डेवलप की गयीं हैं और दिसंबर में बाजार में आ जाने की उम्मीद है। वैक्सीन की दो खुराक की कीमत १४६ डालर यानी 10,950 रुपये होगी।
कम्पनी की वैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल यूएई, बहरीन, पेरू, मोरक्को, अर्जेंटीना और जॉर्डन समेत 10 से ज्यादा देशों में किया जा रहा है।
जुलाई में चीन ने दे दी थी मंजूरी
चीन ने जुलाई में शुरू किये गए एक इमरजेंसी प्रोग्राम के तहत लोगों को इन दोनों वैक्सीनों के अलावा ‘सिनोवैक’ वैक्सीन भी लगाने लगाने की इजाजत दे दी थी। इस प्रोग्राम के तहत स्वास्थ्य कर्मियों, डिप्लोमेट्स और महामारी से ट्रस्ट देशों की यात्रा कर चुके लोगों को कोरोना की वैक्सीन लगाई गई। चाइना नेशनल बायोटेक ग्रुप के अनुसार वैक्सीन लगाये गए दसियों हजारों लोग कोरोना से त्रस्त हाई रिस्क देशों की यात्रा कर चुके हैं। इनमें से एक भी व्यक्ति को न तो कोरोना संक्रमण हुआ और न ही कोई साइड इफ़ेक्ट हुआ।
कंपनी के जनरल लीगल काउंसल झाऊ सोंग के अनुसार इससे वैक्सीन की प्रभाविता साबित होती है। इस कंपनी ने वैक्सीन प्रोडक्शन के लिए बीजिंग और वुहान में दो इकाइयां स्थापित की हैं और यहाँ सालाना वैक्सीन की 30 करोड़ खुराक बनाई जायेगी। तीन से छह महीने में इन प्लांट का विस्तार किया जाएगा और उत्पादन कैपेसिटी 1.3 अरब डोज़ तक पहुंचा दी जायेगी।
यूएई के हेल्थ मिनिस्टर को लगा टीका
चीन की दवा कंपनी सिनोफार्म द्वारा डेवलप की गयी एक वैक्सीन के लिए यूएई से करार किया है जिसके तहत यूएई में 31 हजार से ज्यादा लोगों पर वैक्सीन का व्यापक ट्रायल किया जा रहा है। इसी प्रोग्राम के तहत यूएई के हेल्थ मिनिस्टर अब्दुलरहमान अल ओवैस को वैक्सीन की एक खुराक लगाई गयी है। सिनोफ़ार्म ने वैक्सीन के पहले और दूसरे चरण का ट्रायल चीन में किया था।तीसरे चरण का परीक्षण अबू धाबी में किया गया और अब बहरीन और जॉर्डन में परीक्षण चल रहा है।
लोगों में बढ़ रहा अविश्वास
कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में जुटी कंपनियां अपने परीक्षण के परिणामों की जानकारी साफ़ साफ़ नहीं बता रहीं हैं जिस वजह से कंपनियों को काफी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। चूंकि वैक्सीन के बारे में पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है सो लोगों में अविश्वास बढ़ता जा रहा है। ये एक अजीब सी सी स्थिति है जबकि कोरोना से जंग में सफलता पाने के लिए जनता का भरोसा अत्यंत जरूरी है।
आस्ट्रा ज़ेनेका पर संदेह
कोरोना की वैक्सीन के मोर्चे पर ऑक्सफ़ोर्ड – आस्ट्रा ज़ेनेका काफी आगे है लेकिन इनकी प्रक्रिया कतई पारदर्शी नहीं रही है। ब्रिटेन में आस्ट्रा ज़ेनेका के ट्रायल अप्रैल में शुरू हुए थे। यहाँ दो प्रतिभागियों को वैक्सीन लगने के बाद गंभीर न्यूरोलॉजिकल बीमारी उत्पन्न हो गयी थी जिसके कारण कंपनी को दो मर्तबा अपना ट्रायल रोकना पड़ा। ब्रिटेन, ब्राज़ील, भारत और साउथ अफ्रीका में ट्रायल फिर से चालू हो गए हैं लेकिन अमेरिका में अभी ट्रायल बंद है। आस्ट्रा ज़ेनेका की प्रायोगिक वैक्सीन दुनिया भर में करीब 18 हजार लोगों को लगाई जा चुकी है।
अब किया खुलासा
काफी दबाव और आलोचना के बाद आस्ट्रा ज़ेनेका ने कुछ खुलासे किये हैं। 111 पेज के ट्रायल ब्लू प्रिंट में कंपनी ने कहा है कि उसका ध्येय 50 फीसदी प्रभाविता वाली वैक्सीन बनाना है। अमेरिका के फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन यानी एफडीए ने कोरोना वायरस वैक्सीन की प्रभाविता के लिए 50 फीसदी की न्यूनतम सीमा तय की है। इस सीमा को पाने के लिए कोरोना की वैक्सीन के ट्रायल में १५० कोरोना संक्रमित शामिल करने होंगे। लेकिन सेफ्टी बोर्ड इसके पहले भी विश्लेषण कर सकता है जब मात्र 75 मरीजों पर परीक्षण किया जा चुका हो। यदि उस मुकाम पर वैक्सीन 50 फीसदी भी प्रभावी पायी जाती है तो कंपनी ट्रायल रोक सकती है और सरकार से आग्रह कर सकती है कि इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए वैक्सीन को लांच करने की अनुमति दे दी जाए।
कोरोना का नेगेटिव टेस्ट का मतलब रिकवरी नहीं
कोविड – 19 महामारी हमारे बीच आये हुए आठ महीने हो चुके हैं। लेकिन अभी भी महामारी का प्रभाव सिर्फ मौतों की संख्या से नापा जा रहा है। जो संक्रमित अस्पताल में भर्ती नहीं हुए उन केसों को 'माइल्ड' या हल्का केस कहा जा रहा है और उनका कोई फॉलोअप नहीं किया जाता। कोरोना से रिकवरी का मतलब सिर्फ अस्पताल से डिस्चार्ज हो जाने को या टेस्ट में नेगेटिव आने को माना जा रहा है। कोरोना संक्रमित ऐसे लोग जो अब ‘रिकवर’ हो गए हैं उनमें किसी भी तरह की अन्य अस्वस्थता आमतौर पर नापी नहीं जा रही है। दुनिया भर में लाखों वो लोग जिनको कोरोना हुआ लेकिन न तो टेस्ट हुआ और न ही वे अस्पताल में भर्ती हुए, उनकी तो कोई गिनती ही नहीं हो रही।
भारत में तो ऐसी कोई रिसर्च या आंकड़े हैं
जो लोग पहले स्वस्थ थे जिनको अब सीने में भारीपन, सांस फूलना, मांसपेशियों में दर्द, तेज धड़कन और थकान जैसे लक्षण बने हुए हैं उनको ‘माइल्ड कोरोना’ की व्यापक श्रेणी में रखा जा रहा है। भारत में तो ऐसी कोई रिसर्च या आंकड़े हैं ही नहीं लेकिन यूनाइटेड किंगडम में कोरोना के लक्षण ट्रैक करने वाले एक ऐप के डेटा से पता चलता है कि ऐसे लक्षण वाले लोगों की तादाद 10 फीसदी है।
शोधकर्ताओं को ये तो पता है कि कोरोना के कारण मरने का जोखिम किन लोगों में ज्यादा है लेकिन ये पता नहीं है कि लक्षण या बिना लक्षण वाला संक्रमण होने के बाद किन लोगों के लम्बे समय तक बीमार रहने की संभावना है।
10 फीसदी लोगों में बनी रहेगी तकलीफ
डाक्टरों का कहना है कि सभी प्रकार के कोरोना मरीजों में से दस फीसदी को कोरोना नेगेटिव होने के बाद भी दिक्कतें बनीं रहेंगी। इन दिक्कतों में सांस फूलना, थकान, और कुछ मामलों में महत्वपूर्ण अंगों को नुक्सान शामिल है।
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भारत में अब तक जितने लोग कोरोना संक्रमित हुए हैं उनमें यदि 5 से 10 फीसदी को कोरोना नेगेटिव होने के बाद दिक्कतें होतीं हैं तो ऐसे लोगों की संख्या 50 हजार के करीब होगी। जिस रफ़्तार से केस बढ़ रहे हैं, उस अनुपात में पोस्ट कोविड बीमारों की संख्या भी बढ़ेगी। डाक्टरों का कहना है कि 50 वर्ष से ज्यादा यू वाले लोगों में समस्याएँ लम्बे समय तक बने रहने की आशंका है।
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