नेपाल में सियासी घमासान: पार्टी नेताओं ने खोला ओली के खिलाफ मोर्चा, इस्तीफे का दबाव

सत्तारूढ़ नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में सियासी घमासान काफी बढ़ गया है। अब पार्टी का एक बड़ा वर्ग उनके इस्तीफे की मांग पर अड़ गया है।

Update:2020-06-30 19:55 IST

अंशुमान तिवारी

काठमांडू: नेपाल में भारत विरोधी भावनाएं भड़का कर अपनी कुर्सी बचाने की प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कोशिशें कामयाब होती नहीं दिख रही हैं। सत्तारूढ़ नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में सियासी घमासान काफी बढ़ गया है। अब पार्टी का एक बड़ा वर्ग उनके इस्तीफे की मांग पर अड़ गया है। पार्टी की स्थायी समिति की बैठक में सह अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड और पार्टी के अन्य नेताओं ने ओली पर विफलता का बड़ा आरोप लगाते हुए उनसे इस्तीफा देने की मांग की।

ओली से इस्तीफे की मांग

दरअसल भारत के साथ सीमा विवाद और संसद में नए नक्शे की मंजूरी के बावजूद ओली की दिक्कतें खत्म होती नहीं दिख रही हैं। नेपाल की सियासत पर करीबी नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि देश की विभिन्न समस्याओं से लोगों का ध्यान हटाने के लिए ही ओली ने राष्ट्रवाद का कार्ड खेला है। हालांकि राष्ट्रवाद का यह कार्ड भी अब उनके लिए मददगार नहीं साबित हो रहा है। पार्टी की स्थायी समिति की बैठक में प्रचंड ने ओली पर करारा हमला बोलते हुए उनसे इस्तीफा देने की मांग की।

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पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं माधव नेपाल, झाला नाथ खनाल और बामदेव गौतम ने भी कोरोना संकट सहित विभिन्न मुद्दों पर ओली पर विफल होने का आरोप लगाया। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने यह भी कहा कि सरकार सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ बातचीत शुरू करने में विफल रही है। पिछले शनिवार की बैठक में भी यह मुद्दा जोर-शोर से उछला था और 48 सदस्यीय स्थायी समिति के अधिकांश सदस्यों ने सरकार पर भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में विफलता का आरोप लगाया था।

प्रचंड का ओली पर बड़ा हमला

हालांकि विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली का कहना था कि नेपाल सरकार ने काफी कोशिश की मगर भारत की ओर से बातचीत की कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गई। हालांकि बाद में ग्यावली ने एक बयान में पीएम ओली को अप्रत्यक्ष तरीके से नसीहत भी दी थी। ओली द्वारा दिल्ली में अपने खिलाफ साजिश रचे जाने के आरोप पर ग्यावली ने प्रधानमंत्री का नाम लिए बिना कहा कि किसी को भी भारत और नेपाल के रिश्तो में कड़वाहट नहीं घोलनी चाहिए। पार्टी की स्थायी समिति की पिछली बैठक में भी प्रचंड ने ओली के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।

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प्रचंड का कहना था ओली को पार्टी के अध्यक्ष पद और प्रधानमंत्री पद में से कोई एक पद चुनना होगा। उन्होंने सरकार और पार्टी के बीच कोई समन्वय न होने का आरोप लगाया था। ओली इस समय प्रधानमंत्री के साथ एनसीपी के अध्यक्ष भी हैं। दोनों नेताओं के बीच कोरोना से निपटने के तरीकों को लेकर गहरे मतभेद हैं और इसे लेकर भी प्रचंड समय-समय पर होली पर हमला बोलते रहे हैं। पार्टी नेताओं के जबर्दस्त विरोध के कारण ही ओली पिछली दो दिवसीय बैठक में शामिल भी नहीं हुए थे।

ओली लगा रहे साजिश का आरोप

नेपाल में अपने खिलाफ उठ रही आवाजों के लिए ओली भारत को जिम्मेदार ठहराते हैं। उन्होंने रविवार को दावा किया था कि उन्हें सत्ता से बेदखल करने के लिए नई दिल्ली और काठमांडू में तमाम लोग साजिशें रचने में जुटे हुए हैं। उनका कहना है कि कालापानी, लिपुलेख और लिपिंयाधूरा को नेपाल के नक्शे में शामिल करने के बाद उन्हें सत्ता से हटाने की कोशिशें तेज हो गई हैं। उनका कहना था कि काठमांडू के एक होटल में उन्हें हटाने के लिए बैठक की जा रही है और इसमें एक दूतावास भी सक्रिय है। दूतावासों और होटलों में मेरे खिलाफ कई तरह की गतिविधियां चल रहे हैं।

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उन्होंने यह भी दावा किया था कि उन्हें हटाने की चाहे जितनी भी कोशिश कर ली जाए मगर किसी को कामयाबी नहीं मिलेगी। जानकारों का कहना है कि ओली इन दिनों चीन की शह पर काम कर रहे हैं। चीन की शह पर ही उन्होंने भारत विरोधी इतना बड़ा कदम उठाया है। उन्हें चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थन हासिल है और इसीलिए वे बड़े -बड़े दावे कर रहे हैं। भारत में नेपाल का परंपरागत मित्र रहा है मगर ओली के हाल के कदमों के कारण दोनों देशों के रिश्ते में खटास पैदा हो गई है। भारत की ओर से अभी नेपाल के घटनाक्रम पर कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की गई है। भारत नेपाल में तेज हो रही सियासी गतिविधियों पर पैनी निगाह रखे हुए है।

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