B. R. Ambedkar Y Factor: आंबेडकर हैं आधुनिक कबीर, मत पहनाइये इन्हें गांधीवाद का चोला

आंबेडकर हैं आधुनिक कबीर, मत पहनाइये इन्हें गांधीवाद का चोला

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2021-04-14 16:29 IST

अति का भला न बोलना, 

अति की भली न चूप।

कबीरदास का यह दोहा इन दिनों डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर (B. R. Ambedkar Y Factor) की विरासत को लेकर शुरु हुई रस्साकशी के मद्देनजर बहुत प्रासंगिक हो उठा है। राजनीतिक पार्टियां डॉ. आंबेडकर को अपने पाले मेंखड़ा करने के लिए अति करने पर आमदा हैं। सपा , बसपा , कांग्रेस और भाजपा सबने अपने अपने रंग में डॉ. आंबेडकर को रंगने की चालें चलीं।भाजपा ने चंद घंटों के लिए ही सही, आंबेडकर कोभगवा बना दिया था। बसपा उनसे नीला रंग उतरते देखना नहीं चाहती। कांग्रेस और सपा के पोस्टरोंपर भी आंबेडकर दिखने लगे हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी आंबेडकर प्रेम जागृत हो उठा है। संघ के दत्तोपंत ठेगडी के बारे में यहतथ्य प्रकाश में लाया गया है कि वह डॉ. आंबेडकर के चुनाव एजेंट रहे हैं। उन्होंने और मौजूदसहसरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी  ने आंबेडकर पर किताबें लिखी हैं संघ केमुखपत्रों-'पाँचजन्य' और 'आर्गनाइजर'ने डॉ. आंबेडकर विशेषांक निकाला है। भाजपा डॉ. आंबेडकरको सोशल इंजीनिरयरिंग का सूत्र समझ रही है। कांग्रेस ने 21 सदस्यों की एक समिति बनाई थी,  जिसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी रहीं। इस समिति का काम आंबेडकर-आंबेडकर करना रहा।

साल 1956 में डॉ. राम मनोहर लोहिया और डॉ. बी. आर. आंबेडकर साथ आऩे से चूक गये थे। दोनोंभारतीय जाति व्यवस्था को खत्म कर दलितों, पिछड़ों, किसानों और मजदूरों के लिए बराबरी परआधारित समाज बनाना चाहते थे। यही समाज डॉ.लोहिया का समाजावाद और डॉ. आंबेडकर कागणतंत्र था। डॉ.आंबेडकर चाहते थे कि वह अपनी 'शेड्यूल कास्ट फेडरेशन' को भंग कर 'सर्वजनसमावेशक रिपब्लिकन' पार्टी बनायें। डॉ.लोहिया ने 10 दिसंबर,  1955 को हैदराबाद से डॉ. भीमरावआंबेडकर को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने अपने "मैंनकांडड' अखबार में प्रचलित जाति प्रथा केकिसी पहलू पर लेख मांगा था। डॉ. लोहिया नेनसमाजवादी दल के स्थापना सम्मेलन में डॉ. आंबेडकर कोआमंत्रित भी किया था। डॉ. लोहिया के मित्र विमल मेहरोत्रा और धर्मवीर गोस्वामी ने डॉ. आंबेडकर से इस संबंध में मुलाकात भी की थी। डॉ. आंबेडकर ने अपने पत्र में इनसे मिलने की बात स्वीकार करतेहुए कहा था कि 'भारतीय शेड्यूल कास्ट फेडरेशन' की कार्यसमिति में वे डॉ. लोहिया और उनके मित्रोंका यह प्रस्ताव रखेंगे। 30 सितंबर, 1956 को होने वाली कार्यसमिति में यह प्रस्ताव रखने की बातडॉ. आंबेडकर ने कही थी। 2 अक्टूबर को डॉ. आंबेडकर ने अपने दिल्ली स्थित आवास पर डॉ. लोहिया को मिलने के लिए बुलाया था। हालांकि डॉ. लोहिया ने दिल्ली पहुंचने में असमर्थता जताईथी। डॉ. लोहिया ने डॉ. आंबेडकर को कानपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने का न्यौता दिया था।आंबेडकरवाद की अति ने अखिलेश और मायावती को मिलने पर विवश किया । इसी अति कानतीजा है कि सभी दलों के पोस्टर पर डॉ. आंबेडकर के लिए जगह है।

अति को ऐसे भी समझा जा सकता है कि केंद्रीय गृहमंत्रालय को डॉ. आंबेडकर जयंती पर राज्यो कोसतर्कता बरतने के लिए एडवाइजरी जारी करनी पड़ी थी।जब पूरा देश आंबेडकरमय होने का स्वांगरच रहा था तब आगरा में भाजपा विधायक वीरेंद्र सिंह लोधी को आंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यापर्णसे आंबेडकरवादियों ने रोक दिया। नोयडा रिछपालगढी गांव में कुछ असमाजिक तत्वों ने पार्क मेंलगी उनकी प्रतिमा तोड़ दी।बंदायूं में गद्दीचौक इलाके में आंबेडकर की प्रतिमा को सलाखों में बन्दकर ताला लगना पड़ा। बडोदरा में मेनका गांधी द्वारा डॉ. आंबेडकर प्रतिमा पर माल्यापर्ण के बाददलित समुदाय के लोगों को डॉ. आंबेडकर प्रतिमा को धोकर साफ करना पड़ा। मुरादाबाद में समाजकल्याण राज्य मंत्री गुलाबो देवी को डॉ. आंबेडकर जयंती का कार्यक्रम इसलिए छोड़कर जाना पड़ाक्योंकि इसमें हिंदू देवी देवताओं के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी हो रही थी। लखनऊ के महमूदनगरमें सरकारी जमीन पर डॉ. आंबेडकर प्रतिमा लगाने के खिलाफ प्रशासन को खड़ा होना पड़ा।

जब सभी आंबेडकरमय हो रहे थे उसी दिन मुजफ्फरनगर के थाना पोगाना में अपनी पत्नी के खिलाफहुई छेड़छाड़ की शिकायत करने गये पति और बेटे की गिरफ्तारी पुलिस ने पुराने किसी केस में कर ली। महिला को क्षुब्ध होकर आत्महत्या करना पड़ा लखीमपुर के निघासन में बकरा चोरी के आरोप में दलित को इतना पीटा गया कि वह मर गया। अमेठी में दलित छात्रा के रेप के बाद हत्या कामामला प्रकाश में आया। मुजफ्फरनगर के अब्दुलपुर गांव में जाट-दलित संघर्ष आकार ले लिया।हाथरस में दलित समाज के एक व्यक्ति ने घोड़े पर बैठकर गांव घूमने की इच्छा क्या जताई किउसके खेत का पानी बंद कर दिया गया। लेकिन इस तरह की घटनाएँ अतिवाद में गुम हो गयीं। वहभी तब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह कह रहे थे कि वे प्रधानमंत्री डॉ. आंबेडकर के कारण बन पाए।हालांकि मायावती भी यही बात कहती हैं।

दस्तावेज से हरिजन और दलित शब्द हटाने की आदेश निकाले गये हों। भाजपा सांसद रहे भरत सिंहआंबेडकर प्रतिमाओं को नुकसान पहुंचाने के पीछे ईसाई मशीनरी का हाथ बता रहे हों, कभी सोनियागांधी के लिए पेड़ पर चढ़ अपनी कनपटी पर अपनी रिवाल्वर लगा लेने वाले भाजपा राष्ट्रीयकार्यसमिति के सदस्य और पूर्व सांसद गंगाचरण राजपूत मंदिरों में डॉ. 

आंबेडकर की मूर्ति लगाने कीवकालत कर चुके हों , वह भी तब जब भारत भर में महात्मा गांधी से ज्यादा मूर्तियां डॉ. आंबेडकर कीलगी हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरकारी कार्यालयों में डॉ. आंबेडकर के चित्र लगाने का आदेश जारी कर दलित मित्र पुरस्कार के हकदार हो गये हों। बीते दिनों बंद के आह्वान मेंदलितों के गुस्से का अभूतपूर्व विस्फोट दिखा हो। पूर्व मुख्यन्यायाधीश के जी बालाकृष्णन एस सीएसटी कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा कर चुके हों, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को जयभीम और जय हिंद का नारा लगाना पड़ा हो, उन्हें कहना पड़ा हो- इस समय समर की नहीं समरसताकी जरुरत है। उन्हें कहना पड़ा हो कि समभाव और मम्भाव की जरुरत है। मतलब जितना आंबेडकर-आंबेडकर हो रहा है दलित उतने ही कष्ट में 

पड़ते जा रहे हैं। उनके साथ हो रही ज्यादतियों कीअनसुनी हो रही है। विरोध समर्थन अपने उत्कर्ष के चरम पर है। साल 1952 के मतदान के लिए डॉ. आंबेडकर नेअनुसूचित जाति संघ के लिए घोषणा पत्र लिखा था। 19 पेज के इस दस्तावेज में पिछड़ी जातियों, दलितों और आदिवासियों के लिए महज एक पन्ना था। बाकी पन्नों में भारत को अमेरिका और यूरोपकी तर्ज पर औद्योगिक और आधुनिक बनाने की योजना थी। छोटे खेतों की जगह बड़े खेत बनाने औरस्वस्थ बीजों की आपूर्ति की बात थी। डॉ. आंबेडकर जाति व्यवस्था को 

औद्योगिकीकरण औरशहरीकरण से खत्म करना चाहते थे। क्योंकि औद्योगिकीकरण ने दास प्रथा को खत्म किया था। डॉ. आंबेडकर इस्लाम में महिलाओं की स्थिति को लेकर चिंतित थे। वे बहुविवाह प्रथा के खिलाफ थे।वह मानते थे कि सामाजिक आजादी सत्ता की भागीदारी से होगी। जो आज तक नहीं आई।

अमेरिका में कोंडिला राइज और बाराक ओबामा सत्ता की भागीदारी में किसी रहमोकरम औरबैसाखी के बिना आए थे, यहां यह नहीं होने दिया जा रहा है। यही वजह है कि डॉ. आंबेडकर कासामाजिक स्वतंत्रता अभियान जारी है। जब हमें रामायण की जरुरत पडी थी तो हम शूद्रवर्ण के ऋषिवाल्मीकि के पास गये। महाभारत की आवश्यकता पड़ी तो शूद्र वर्ण के ऋषि वेदव्यास के पास गये।आज हम जब डॉ. आंबेडकर के पास जा रहे हैं तो हमारी कोशिश उनकी बड़ी मूर्ति लगाने की है न किउनके आदर्शों पर दूरी तय करने की। सारी कोशिश ऐसी हो रही है जैसे अतिवाद ने आजादी के बादगांधीवाद को मुर्दा कर दिया। आज मुर्दा आंबेडकर वाद गढने की साजिश 

चल रही है। डॉ. लोहिया नेलिखा है कि तीन तरह के गांधीवादी देश में हैं। कुजात, मठी और सरकारी। तीनों तरह के गांधीवादियों नेगांधी का, गांधीवाद का बहुत नुक़सान किया है। अब इसी तर्ज़ पर कुजात, मठी व सरकारी आंबेडकरवादीभी दिखने लगे हैं। इनसे सतर्क रहने की ज़रूरत है।डॉ. आंबेडकर आधुनिक कबीर थे , उन्हें  मुर्दागांधीवाद की ओर मत ले जाइए।उन्हें कुजात, मठी व सरकारी गांधीवाद का हिस्सा मत बनाइये।

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