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बिंदिया सिर्फ नहींं उड़ाती साजन की निंदिया, बल्कि माथे की शोभा बनकर बढ़ाती हैं हर नारी का सम्मान
समाज में मान-सम्मान भी बढ़ता है।सोल श्रृंगार में चूड़ी के बाद है बिंदी जिसे शादी के बाद गर सुहागन को लगाना अनिवार्य होता है। बिंदी का जिक्र आते ही हिंदी फिल्म का गाना.. जो साजन की नींद चुरा लेती है बरबस याद आने लगता है। हाय, हाय तेरी बिंदिया रे...
जयपुर: वेद, पुराणों व शास्त्रों में हमारे रीति-रिवाजों व परंपराओं को बहुत अच्छी तरह समझाया गया है और उनका पालन करने को कहा गया है। उनके पीछे तथ्य भी बताए गए है। खासकर महिलाओं को कई दिशा-निर्देश दिए गए है जिनका पालन जरूरी होता है। इन्हीं में एक है सोलह-श्रृंगार। इसे हर महिला करना चाहिए। इसे पालन करने से ना उनका केवल सौभाग्य बढ़ता है, बल्कि समाज में मान-सम्मान भी बढ़ता है।सोल श्रृंगार में चूड़ी के बाद है बिंदी जिसे शादी के बाद गर सुहागन को लगाना अनिवार्य होता है। बिंदी का जिक्र आते ही हिंदी फिल्म का गाना.. जो साजन की नींद चुरा लेती है बरबस याद आने लगता है। हाय, हाय तेरी बिंदिया रे.....
मां पार्वती को भी दी थी मां मैनावती ने सीख
माथे पर बिंदी या तिलक केवल आज के समाज की देन नहीं है हमारे देवी-देवताओं को भी इसका पालन करना पड़ा है। शिवपुराण की एक कथा के अनुसार जब मां पार्वती की शादी भगवान शिव के साथ हुई तो विदाई के वक्त मां मैनावती पतिधर्म के साथ ससुराल के प्रति कर्तव्यों के पालन की जो सीख दी, उसमें सोलह श्रृंगार और उससे जुड़ी बातें भी बताई। शिवपुराण में ही बताया गया है कि शादी के बाद हर स्त्री को सोलह श्रृंगार करना चाहिए। सिंदूर से बिछिया तक हर चीज पति के रहते पहनना चाहिए, जो स्त्री इसका पालन करती है उसे सम्मान प्यार के साथ सतित्व धर्म के लायक समझा जाता है।
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खूबसूरती में लगता है चार चांद
महिलाओं के सोलह श्रृंगार में एक है माथे पर बिंदी लगाना। वैसे तो आजकल कुंवारी लड़कियां भी बिंदी लगाती है लेकिन शादी के बाद इसका महत्व और बढ़ जाता है। बिंदीका भारतीय संस्कृति में बहुत महत्व है। खासतौर से लड़कियों और महिलाओं के लिए तो यह गहने ये कम नहीं हैं। किसी भी ड्रेस या फिर सूट के साथ बिंदी को टीमअप करने से किसी भी लडक़ी का लुक बदल जाता है। यानि कि इसे आप लड़कियों का एक जरुरी गहना भी कह सकते है। चाहे सूट पहने या फिर साड़ी ये एक ऐसी चीज है जिसे पहनकर लड़कियां-महिलाएं खूबसूरत लगने लगती है। सोलह श्रृंगार की कड़ी में आज हम बिंदी से जुड़ी बातें बता रहे है।
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स्वास्थ्य की निशानी
बिंदी साइज में तो बहुत छोटी होती है लेकिन इसको लगाने के बाद किसी का भी चेहरा एक दम अलग खिल जाता है। ऐसा कहा जाता है कि बिंदी खूबसूरती बढ़ाने के अलावा चेहरे के मसल्स को मजबूत करती है। इससे फेस पर झुर्रियों का आना कम होता है और मसल्स में रक्त का प्रवाह बढ़ता है। रक्त का प्रवाह मसल्स को लचीला करता है जिसके झुर्रियां अपने आप कम हो जाती है। बिंदी वाले प्वाइंट पर मसाज करने से सिर दर्द में आराम मिलता है। बिंदी को लगाने से फेस, गर्दन, पीठ और शरीर के ऊपरी भाग में राहत मिलती है और चैन की नींद आती है। बिंदी को हम लोग फेस के बीचों बीच यानि कि आइब्रो के बीच लगाते है। जहां हमारे शरीर की सभी नसें आकर मिलती है जिसे अग्नि चक्र कहा गया है। ऐसी जगह पर बिंदीलगाने से मन शांत और तनावमुक्त रहता है।
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तनावमुक्त व शांति
बिंदी को परंपरागत रूप से माथे के बीच में लगाया जाता है। इससे जुड़े स्वास्थ्य लाभ भी है।माथे में जिस जगह हम बिंदी लगाती हैं, वहीं से हमारे शरीर की प्रमुख नसें एक दूसरे को काटती हैं। भगवान शिव की तीसरी आंख भी इसी जगह पर है। हिंदू पौराणिक कथाओं के कारण यह वह बिंदु है जो कि व्यक्ति को शांत करने के साथ ही तनाव को भी दूर करने में मदद करता है।
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ब्लड सर्कुलेशन का प्रवाह सही रफतार में
माथे की बिंदी ब्लड सर्कुलेशन का काम करती है, यह हमारे नाक के आस-पास रक्त के प्रवाह को बढ़ाती है और साइनसाइटिस व सूजन से भी छुटकारा दिलाती है। बिंदी लगाने से हमारे सुनने की क्षमता भी बढ़कर तेज होने लग जाती है। उम्र बढ़ती है, हमारी आंखों के बीच की लाइन्स बढ़ती जाती हैं। कुमकुम, हल्दी से बनी बिंदी लगाई जाती है,ज्यादातर लाल रंग की बिंदी भी माथे पर लगाने से तेज बढ़ता है और याद्दाश्त में वृद्धि होती है। कुमकुम, हल्दी से बनी बिंदी में बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो कि इंफेक्शन को दूर करने में मदद करता है।