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Chaitra Navratri 2023: नवरात्र में मां कात्यायनी के दर्शन मात्र से बन जाते हैं बिगड़े काम, जाने महिमा
Chaitra Navratri 2023: जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने-अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था और ऋषि कात्यायन ने भगवती जी कि कठिन तपस्या पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलाई।
Chaitra Navratri 2023: नवरात्र में दुर्गा के नौं रूपो का पूजा करने का विधान है। इसी क्रम में सोमवार को माता दुर्गा के छठें रूप माता कात्यायनी की पूजा हुई। माता कात्यायनी का जन्म महिषासुर के वध के लिए हुआ था। जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने-अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था और ऋषि कात्यायन ने भगवती जी कि कठिन तपस्या पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलाई।
महिषासुर का वध
महर्षि कात्यायन जी की इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। देवी ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार की तथा अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेने के पश्चात शुक्ल सप्तमी अष्टमी और नवमी तीन दिनों तक कात्यायन ऋषि ने इनकी पूजा की दशमी को देवी ने महिषासुर का वध किया और देवों को महिषासुर के अत्याचारों से मुक्त किया।
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जाने कैसे पड़ा नाम
कात्यायनी माता के बारे में लल्लन तिवारी ने बताया कि कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं। कात्यायनी देवी के चार भुजाएं हैं। दायीं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मां के बांयी तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है। मां कात्यायनी की उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ धर्म काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है।
मां कात्यायनी की पूजा से सभी पाप होंगे नष्ट
मां कात्यायनी की पूजा से रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। कात्यायनी देवी का गुण शोधकार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे हो जाते हैं। यह वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होकर पूजी गईं। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। उन्होंने बताया कि भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी। दुर्गा के छठे रूप को मां कात्यायनी के नाम से पूजा जाता है। महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने इनका पालन.पोषण किया तथा महर्षि कात्यायन की पुत्री और उन्हीं के द्वारा सर्वप्रथम पूजे जाने के कारण देवी दुर्गा को कात्यायनी कहा गया।
होगा सभी संकटों का नाश
देवी कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है। मां कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं। देवी कात्यायनी के पूजन से भक्त के भीतर शक्ति का संचार होता है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने पर उसे सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है।
मां कात्यायनी का जन्म महर्षि कात्यायन के आश्रम में हुआ
कात्यायनी माता के बारे में विस्तारपूर्वक बताते हुए उन्होने बताया कि देवी कात्यायनी जी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक समय कत नाम के प्रसिद्ध ऋषि हुए तथा उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध कात्य गोत्र से विश्वप्रसिद्ध ऋषि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। देवी कात्यायनी जी देवताओं ऋषियों के संकटों को दूर करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न होती हैं। महर्षि कात्यायन जी ने देवी पालन पोषण किया था।