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आज है हरिशयनी एकादशी, व्रत करने से होंगे पाप नष्ट, खुलेगा मोक्ष का द्वार

इसके पीछे सिर्फ यही कारण है कि आप पूरी तरह से ईश्वर की भक्ति में डूबे रहें, सिर्फ ईश्वर की पूजा-अर्चना करें। देखा जाए तो बदलते मौसम में जब शरीर में रोगों का मुकाबला करने की क्षमता यानी प्रतिरोधक शक्ति बेहद कम होती है, तब आध्यात्मिक शक्ति प्राप्ति के लिए व्रत करना, उपवास रखना और ईश्वर की आराधना करना बेहद लाभदायक माना जाता है।

suman
Published on: 12 July 2019 2:17 AM GMT
आज है हरिशयनी एकादशी, व्रत करने से होंगे पाप नष्ट, खुलेगा मोक्ष का द्वार
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जयपुर: आषाढ़ माह में शुक्लपक्ष एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी को पद्मा एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन से श्री हरि भगवान विष्णु शयन करने चले जाते हैं। इस दिन उपवास रखने से जाने-अनजाने में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी को सौभाग्यदायिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी दिन से चातुर्मास भी आरंभ हो जाता है। चातुर्मास के दौरान पूजा-पाठ, कथा, अनुष्ठान से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। चातुर्मास को भजन, कीर्तन, सत्संग, कथा, भागवत के लिए श्रेष्ठ समय माना जाता है।

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एकादशी तिथि प्रारंभ: 12 जुलाई 2019 को रात 1 बजकर 02 मिनट से. एकादशी तिथि समाप्त: 13 जुलाई 2019 को रात 12 बजकर 31 मिनट तक. पारण का समय: 13 जुलाई 2019 को सुबह 06 बजकर 30 मिनट से सुबह 8 बजकर 33 मिनट तक।इस वर्ष इस एकादशी के दिन कई शुभ और सुंदर संयोग बने हैं जो इस एकादशी के महत्व को कई गुणा बढ़ा रहे हैं। इस वर्ष हरिशयन यानी देवशयनी एकादशी के दिन सर्वार्थ सिद्धि नामक शुभ योग भी बना है जो दोपहर 3 बजकर 57 मिनट से आरंभ होकर अगले दिन सुबह तक रहेगा। इस योग के कारण इस दिन भगवान विष्णु का पूजन व्रत अत्यंत शुभफलदायी होगा। अगर आप कोई धार्मिक या शुभ कार्य करना चाहते हैं या कोई नया काम शुरू करना चाहते हैं तो इस अवसर पर कर सकते हैं।

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पुराणों के अनुसार इस तिथि से आगामी चार माह के लिए भगवान विष्णु योग निद्रा में रहते हैं। कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष एकादशी पर भगवान विष्णु की योग निद्रा पूर्ण होती है। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। चातुर्मास में साधु-संत चार मास एक ही स्थान पर रहते हुए लोगों को धर्म का ज्ञान उपलब्ध कराकर सत्य के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, जिसका अनुकरण आज भी साधु-संत करते हैं। कहा जाता है कि इन चार माह सत्य बोलने से मनुष्य के भीतर आध्यात्मिक प्रकाश उत्पन्न हो जाता है। इस एकादशी पर सुबह जल्‍दी उठकर स्‍नान करने के बाद स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें। इस दिन पवित्र नदियों में स्‍नान का विशेष महत्‍व है। अगर ऐसा न कर पाएं तो गंगाजल से घर में छिड़काव करें। घर में भगवान विष्‍णु की मूर्ति स्‍थापित करें। पूजा के बाद व्रत कथा अवश्य सुनें। आरती करें और प्रसाद बांटे।

इन चार मासों में कोई भी मंगल कार्य- जैसे विवाह, नवीन गृहप्रवेश आदि नहीं किया जाता है। ऐसा क्यों? तो इसके पीछे सिर्फ यही कारण है कि आप पूरी तरह से ईश्वर की भक्ति में डूबे रहें, सिर्फ ईश्वर की पूजा-अर्चना करें। देखा जाए तो बदलते मौसम में जब शरीर में रोगों का मुकाबला करने की क्षमता यानी प्रतिरोधक शक्ति बेहद कम होती है, तब आध्यात्मिक शक्ति प्राप्ति के लिए व्रत करना, उपवास रखना और ईश्वर की आराधना करना बेहद लाभदायक माना जाता है।

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कथा

एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- ‘महाराज यह देवशयन क्या है? जब देवता ही सो जाते हैं, तब संसार कैसे चलता है? देव क्यों सोते हैं?’ श्रीकृष्ण ने कहा, ‘राजन्! एक समय योगनिद्रा ने प्रार्थना की- ‘भगवन् आप मुझे भी अपने अंगों में स्थान दीजिए।’ तब भगवान ने योगनिद्रा को नेत्रों में स्थान देते हुए कहा-‘तुम वर्ष में चार मास मेरे आश्रित रहोगी।’ ऐसा सुनकर योगनिद्रा ने मेरे नेत्रों में वास किया। भागवत महापुराण के अनुसार, श्रीविष्णु ने एकादशी के दिन विकट आततायी शंखासुर का वध किया, अत: युद्ध में परिश्रम से थक कर वे क्षीर सागर में सो गए। उनके सोने पर सभी देवता भी सो गए, इसलिए यह तिथि देवशयनी एकादशी कहलाई। भगवान सूर्य के मिथुन राशि में आने पर भगवान मधुसूदन की मूर्ति को शयन कराएं और व्रत-नियम धारण करें। फिर तुला राशि में सूर्य के जाने पर (कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी) पुन: भगवान जनार्दन को शयन से उठाएं और इस मंत्र से प्रार्थना करें- ‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुध्यते जगत् सर्वं चराचरम्॥’

जो मनुष्य इस चातुर्मास्य के समय अनेक व्रत नियमपूर्वक रखता है, वह कल्पपर्यंत विष्णु लोक में निवास करता है, ऐसी शास्त्रों की मान्यता है। भगवान जगन्नाथ के शयन करने पर विवाह, यज्ञादि क्रियाएं संपादित नहीं होतीं और देवउठनी एकादशी के दिन उनके जागने पर सभी धार्मिक क्रियाएं पुन: प्रारम्भ हो जाती हैं।

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