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दीपावली: दीपों का त्यौहार, जानें सब कुछ पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
दीपावली 5 दिनों का विशिष्ट त्यौहार होता है, इस बार छोटी दीवाली और बड़ी दीवाली की तिथि एक ही दिन पड़ने को शुभ माना जा रहा है दीवाली का पर्व मां लक्ष्मी को समर्पित है।
झाँसी: दीवाली शब्द का अर्थ है ’ प्रकाश का त्यौहार’, यह शब्द संस्कृत के शब्द ’दीपावली’ से बना है, जिसका अर्थ होता है दीपों की पंक्ति या कह सकते हैं दीपों की श्रृंखला। दीवाली का पर्व संपूर्ण भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। दीपावली 5 दिनों का विशिष्ट त्यौहार होता है, इस बार छोटी दीवाली और बड़ी दीवाली की तिथि एक ही दिन पड़ने को शुभ माना जा रहा है दीवाली का पर्व मां लक्ष्मी को समर्पित है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार दीवाली पर मां लक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण करती हैं और अपने भक्तों को अपना आर्शीवाद प्रदान करती हैं। लक्ष्मी जी को धन की देवी कहा गया है, इसलिए दीवाली पर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है। माता लक्ष्मी और भगवान गणेश का पूजन दीपावली का मुख्य पूजन होता है। कहा जाता है कि लक्ष्मी मां के प्रसन्न होने पर घर में सुख- समृद्धि दोनों आती है।
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13 नवंबर 2020: धंतेरस / धनतेरस / नरक चतुर्दशी/ छोटी दीवाली/ काली पूजा
14 नवंबर 2020: दीवाली/अमावस्या
15 नवंबर 2020: गोवर्धन पूजा
16 नवंबर 2020: भाई दूज / भैया दूज
इस दीवाली पर लक्ष्मी पूजा के लिए कई शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार इस वर्ष दीवाली पर लक्ष्मी पूजा के लिए कई शुभ मुहूर्त हैं। विशेष बात ये है कि इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग में दीवाली का पर्व मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार 13 नवंबर 2020 को प्रदोषकाल में धनतेरस और दीप दान, प्रदोष व्रत, धनवंतरी जयंती मनाई गई है। 14 नवंबर 2020 दीवाली का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन महालक्ष्मी पूजन के समय स्वाति नक्षत्र रहेगा। इस दिन सूर्य और चंद्रमा तुला राशि में रहेंगे और गुरु धनु राशि में रहेगें।
प्रदोषयुक्त अमावस्या की तिथि को स्थिर लग्न और स्थिर नवांश में लक्ष्मी पूजन करना अच्छा माना जाता है। 14 नवंबर को प्रदोष काल शाम 5:33 से रात 8:12 तक रहेगा। इस दिन लक्ष्मी पूजन का उत्तम मुहूर्त शाम 5:49 से 6:02 बजे तक रहेगा।
नरक चतुर्दशी/छोटी दीवाली/काली पूजा का त्यौहार - हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहते हैं। इसके अतिरिक्त इस चतुर्दशी को रूप चौदस और काली चौदस के नाम से भी जानते हैं। इस दिन के महत्व के बारे में कहा जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने करके विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना करना चाहिए। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
ऐसे की जाती है पूजा
दीवाली का त्यौहार - दीवाली के दिन प्रातः जल्दी उठकर अपने परिवार के पूर्वजों व कुल के देवी-देवताओं का पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। अमावस्या होने के कारण इस दिन पूर्वजों के निमित्त श्राध्द पूजन भी किया जाता है। दीवाली या लक्ष्मी पूजा के दिन, हिन्दु अपने घरों और दुकानों को गेंदे के फूल की लड़ियों व अशोक, आम तथा केले के पत्तों से सजाते हैं। इस दिन कलश में नारियल स्थापित कर, उसे घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर रखने को शुभ माना जाता है।
लक्ष्मी पूजा के लिए, एक पर्याप्त ऊंचाई वाले आसन के दाहिनी ओर लाल कपड़ा बिछाकर, उस पर श्री गणेश व देवी लक्ष्मी की सुन्दर रेशमी वस्त्रों व आभूषणों से सुसज्जित मूर्तियों को स्थापित किया जाता है। आसन के बायीं ओर एक सफ़ेद कपड़ा बिछाकर, उस पर नवग्रह स्थापित किये जाते हैं। लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिये, जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है दीवाली पूजा के दौरान चोपड़ा पूजन करते हैं। चोपड़ा पूजा के दौरान देवी लक्ष्मीजी की उपस्थिति में नए खाता पुस्तकों का शुभारम्भ किया जाता है और अगले वित्तीय वर्ष के लिए उनसे आशीर्वाद की प्रार्थना की जाती है।
गोवर्धन पूजा का त्यौहार -
अधिकतर गोवर्धन पूजा का दिन दीवाली पूजा के अगले दिन पड़ता है और इस दिन को भगवान कृष्ण द्वारा इन्द्र देवता को पराजित किये जाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। धार्मिक ग्रन्थों में कार्तिक माह की प्रतिपदा तिथि के दौरान गोवर्धन पूजा उत्सव को मनाने का बताया गया है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। इस दिन गेहूँ, चावल जैसे अनाज, बेसन से बनी कढ़ी और पत्ते वाली सब्जियों से बने भोजन को पकाया जाता है और भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है।
पं गिरीश कुमार शास्त्री
भाई दूज / भैया दूज का त्यौहार -
भैय्या दूज पर, बहनें अपने भाइयों को टीका करके, उनके लम्बे और खुशहाल जीवन की प्रार्थना करती हैं। भाई अपनी बहनों को उपहार प्रदान करते हैं। भैय्या दूज को भाऊ बीज, भाई दूज, भात्र द्वितीया और भतरु द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को प्रातःकाल चन्द्र-दर्शन करना चाहिये। यदि सम्भव हो, तो यमुना-स्नान करना चाहिये, अन्यथा घर में ही तैल लगाकर स्नान करना चाहिये।
स्नान आदि करके मध्याह्न-काल में बहन के घर जाकर वस्त्र और द्रव्यादि द्वारा बहन का सम्मान करना चाहिये एवं वहीं भोजन करना चाहिये। अमावस की काली रात को भगवान राम जब 14 वर्ष के वनवास के बाद पुन: अयोध्या पधारे थे तब उनके आगमन की खुशी में अयोध्या वासियों ने दियों की रोशनी से उजाला कर दिया था। आज भी इस प्रथा का पालन किया जाता है जिसके चलते लोग अपने घरों के भीतर और बाहर रोशनी करते हैं। दीवाली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
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अपने सर्वव्यापी विश्वास के चलते दीवाली, जैन और सिख समुदाय के लोग भी मनाते हैं। विश्वास करने वाले मानते हैं कि यह दिन प्रेम का निराशा पर, रोशनी का अंधेरे पर और ज्ञान का अज्ञान पर विजय का प्रतीक है। हिंदुत्व के तीन मुख्य दर्शनों यानी वेदांत, योग और सांख्य के अनुसार आत्मा का अस्तित्व शरीर से परे है। हिंदुत्व का गूढ़ पहलू दिखाते हुए दीवाली के त्यौहार का महत्व यह है कि यह हमें हमारी वास्तविक प्रकृति का ज्ञान कराता है और आध्यात्मिक रुप से जागरुक करता है।
पं गिरीश कुमार शास्त्री
पुत्र ब्रह्मलीन पं श्री किशोरी लाल शास्त्री
ज्योतिर्विद झाँसी