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ऐसे ही नहीं कहलाते भगवान गणेश एकदंत, इसके पीछे है उनकी सहनशीलता व कर्तव्यपरायणता की कथा
अभी गणेश उत्सव चल रहा है। कहते हैं कि गणेश जी की पूजा से समृद्धि बनी रहती है। सबसे पहले किसी भी कार्य की शुरूआत करने से पहले गणेश जी का नाम लिया जाता है क्योंकि पुराणों में कहा गया है कि गणेश जी से बुद्धिमान और सहनशील कोई नहीं है इसलिए सबसे पहले उनकी पूजा की जाती है। गणेश जी के कई नाम है
जयपुर: अभी गणेश उत्सव चल रहा है। कहते हैं कि गणेश जी की पूजा से समृद्धि बनी रहती है। सबसे पहले किसी भी कार्य की शुरूआत करने से पहले गणेश जी का नाम लिया जाता है क्योंकि पुराणों में कहा गया है कि गणेश जी से बुद्धिमान और सहनशील कोई नहीं है इसलिए सबसे पहले उनकी पूजा की जाती है। गणेश जी के कई नाम है और हर नाम के पीछे रहस्य है। जैसे एकदंत भी कहलाते है गणेशजी को एकदंत क्यों कहा जाता है ।
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मान्यता के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी ने घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया था जिसके बाद शिव ने परशुराम को परसु हत्या दिया, जिससे वह धरती पर विधि का कार्य कर सकते थे तब परशुराम जी ने धरती पर अपना कार्य पूरा किया और वह भगवान शिव का धन्यवाद करने के लिए कैलाश पहुंचे, उस वक्त उनका रास्ता गणेश जी ने रोक लिया, क्योंकि भगवान शिव ध्यान मुद्रा में थे और उन्होंने गणेश जी से किसी को भी उनके पास ना आने को कहा था जब परशुराम जी ने गणेश जी से आग्रह किया कि भगवान शिव उनके आराध्य हैं और उनसे मिले बिना वो वहां से नहीं जाएंगे, तो गणेश जी ने उनकी कोई बात नहीं सुनी तब परशुराम जी क्रोध में आ गए और गणेश से युद्ध के लिए कहा। भगवान गणेश के पास के युद्ध के सिवा कोई चारा नहीं था तब दोनों में बहुत ही भयंकर युद्ध हुआ। परशुराम जी ने अपनी हर अस्त्र का इस्तेमाल किया। लेकिन गणेश पर किसी भी अस्त्र का कोई असर नहीं हो रहा था तब अंत में परशुराम जी ने भगवान शिव से वरदान में मिले परसु से गणेश जी पर वार किया। गणेश जी उसको रोकने में भी सक्षम थे परंतु वह भगवान शिव के वरदान का अनादर नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने उस अस्त्र का भार अपने एक दांत पर ले लिया और उनका एक दांत खंडित हो गया तब माता पार्वती को पुकारने लगे और माता पार्वती गणेश जी का एक दांत टूटे देख कर क्रोधित हो गई। क्रोध की अग्नि से वो दुर्गा अवतार में आ गई परशुराम जी भी अपनी भूल समझ चुके थे।
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तब गणेश ने माता पार्वती को शांत किया। उन्होंने कहा कि परशुराम जी का क्रोध में आना स्वाभाविक था क्योंकि उन्होंने उन्हें अपने आराध्य से मिलने से रोका था तब माता पार्वती शांत हुई और परशुराम जी ने भी अपनी गलती मान ली और उन्होंने कहा कि ऐसी सहनशीलता और आदर उन्होंने किसी और देव में नहीं देखा। इतना ध्यान करने के बाद भी ऐसे महान को नहीं पा सके परशुराम जी ने यह कहा कि गणेश जी का खंडित दांत व्यर्थ नहीं जाएगा। इससे महाभारत लिखा जाएगा और बाद में गणेश ने इसी खंडित दांत से महर्षि व्यास जी के शब्दों को लिखा। तब से ही भगवान गणेश को सबसे सहनशील देव कहा जाने लगा और उनके एक दांत खंडित होने के कारण उनका नाम एकदन्त पड़ा ।