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उत्सव: विशेष महत्व है गणेश चतुर्थी का
इस वर्ष गणेश चतुर्थी पर बहुत शुभ योग बन रहा है। ग्रह-नक्षत्रों की शुभ स्थिति से शुक्ल और रवियोग बन रहे हैं। सिंह राशि में चतुर्ग्रही योग भी बन रहा है यानी सिंह राशि में सूर्य, मंगल, बुध और शुक्र बने रहेंगे। इस शुभ संयोग में गणेश स्थापना होने से समृद्धि और सुख-शांति मिलेगी। गणेशोत्सव में मिट्टी की गणेश प्रतिमाओं की ही स्थापना की जानी चाहिए। मिट्टी में पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल व वायु तत्व का समावेश होता है, इसलिए मिट्टी के गणेश की पूजा करना ही शास्त्र सम्मत है। पीओपी से बनी प्रतिमाओं को कतई इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ये पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाती हैं।
गणेश चतुर्थी : 2 सितंबर
मध्याह्न गणेश पूजा : 11: 05 से 13: 36
चंद्र दर्शन से बचने का समय : 08:55 से 21:05 (2 सितंबर 2019)
चतुर्थी तिथि आरंभ : 04:56 (2 सितंबर)
चतुर्थी तिथि समाप्त : 01:53 (3 सितंबर)
गणेश विसर्जन : गुरुवार, 12 सितंबर को।
गजानन की प्रतिमा लेने जाएं तो नए वस्त्र धारण करें। इसके बाद हर्षोल्लास के साथ उनकी सवारी लाएं। सुबह स्नान करने के बाद गणेश प्रतिमा लें। एक कलश में जल भरकर उसके मुंह पर वस्त्र बांधकर उसके ऊपर गणेश जी को विराजमान करें। गणेश जी को सिंदूर व दूर्वा अर्पित करके 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डïू गणेश जी को अर्पित करके बाकी गरीबों या ब्राह्मणों को बांट दें। शाम के समय गणेश जी का पूजन करना चाहिए। गणेश चतुर्थी की कथा, गणेश चालीसा व आरती पढऩे के बाद अपनी निगाह नीचे रखते हुए चन्द्रमा को अघ्र्य देना चाहिए। ध्यान रहे कि चन्द्रमा के दर्शन न करें। मान्यता है कि चंद्रमा का दर्शन करने पर कलंक का भागी होना पड़ता है। ये भी ध्यान रखें कि तुलसी के पत्ते का गणेश पूजा में इस्तेमाल नहीं हों। तुलसी को छोड़कर बाकी सब पत्र-पुष्प गणेश जी को प्रिय हैं। पूजन में गणेश जी की एक परिक्रमा करने का विधान है। पुजन शुरू करने से पहली घर के ईशान कोण में रंगोली अवश्य बनाएं।
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प्रचलित कथाएं
एक बार पार्वती जी स्नान करने के लिए जा रही थीं। उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक पुतला निर्मित कर उसमें प्राण फूंके और गृहरक्षा के लिए उसे द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया। ये द्वारपाल गणेश जी थे। उन्होंने घर में प्रवेश करने से शिवजी को रोका तो शिवजी ने क्रोध में उनका मस्तक काट दिया। जब पार्वती जी को इसका पता चला तो वह बहुत दुखी हुईं। तब शिवजी ने हाथी का सर काटकर धड़ पर जोड़ दिया। गज का सिर जुडऩे के कारण ही उनका नाम गजानन पड़ा।
एक अन्य कथा के अनुसार विवाह के बहुत दिनों बाद तक संतान न होने के कारण पार्वती जी ने श्रीकृष्ण के व्रत से गणेश जी को उत्पन्न किया। शनि ग्रह बालक गणेश को देखने आए और उनकी दृष्टि पडऩे से गणेश जी का सिर कटकर गिर गया। फिर विष्णु जी ने दुबारा उनके हाथी का सिर जोड़ दिया।
एक मान्यता है कि एक बार परशुराम जी शिव-पार्वती जी के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत गए। उस समय शिव-पार्वती निद्रा में थे और गणेश जी बाहर पहरा दे रहे थे। उन्होंने परशुराम जी को रोका। इस पर विवाद हुआ और परशुराम जी ने अपने फरसे से उनका एक दांत काट डाला। इसलिए गणेश जी 'एकदन्त' के नाम से प्रसिद्ध हुए।
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गणेश चतुर्थी का महत्व
माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण पर स्यमन्तक मणि चोरी करने का झूठा कलंक लगा था और वे अपमानित हुए थे। नारद जी ने उनकी यह दुर्दशा देखकर उन्हें बताया कि उन्होंने भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गलती से चंद्र दर्शन किया था। इसलिए वे तिरस्कृत हुए हैं। नारद मुनि ने उन्हें यह भी बताया कि इस दिन चंद्रमा को गणेश जी ने श्राप दिया था। इसलिए जो इस दिन चंद्र दर्शन करता है उसपर मिथ्या कलंक लगता है। नारद मुनि की सलाह पर श्रीकृष्ण जी ने गणेश चतुर्थी का व्रत किया और दोष मुक्त हुए। इसलिए इस दिन पूजा व व्रत करने से व्यक्ति को झूठे आरोपों से मुक्ति मिलती है।
गणेश चतुर्थी व्रत को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जाता हैं क्यूंकि इस व्रत को सभी लोग एक त्योहार के रूप में भी मनाते है इसमें लोग भगवान गणेश जी को एक स्थान पर स्थापित करके उनकी मिलकर अर्चना करते है और इसमें सभी बढ़ चढ़ कर हिस्सा भी लेते हैं ऐसे में गणेश उत्सव के बहाने सभी में एकता आती है। 19 वीं शताब्दी में गणेश चतुर्थी एक बड़ा मामला बन गया, जब भारतीय स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक ने जनता को त्योहार मनाने के लिए भारी संख्या में सड़कों पर होने के लिए कहा। ब्रिटिश शासन के दौरान, भारतीयों पर कई प्रतिबंध लगाए गए थे। एक विशाल सार्वजनिक सभा की व्यवस्था करना उनमें से एक था। गणेश चतुर्थी के माध्यम से, तिलक को अंग्रेजों द्वारा लागू किए गए कठोर कानूनों के खिलाफ विद्रोह करने का एक सरल साधन मिला।
विनायक चतुर्थी व्रत का महत्व
विनायक चतुर्थी का व्रत प्रत्येक महीने की अमावस्या के दिन जो चतुर्थी आती है उसमें किया जाता है। विनायक चतुर्थी को वरद विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है। वरद का अर्थ होता है 'भगवान से अपनी इच्छा पूर्ति के लिए पूछना।' जो भी मनुष्य इस व्रत को पूरे मन से करता है भगवान गणेश उसको ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद देते हैं। साथ ही उसकी सब इच्छाएं अपने आप ही पूरी होती जाती हैं।
किसी भी देव की आराधना के आरम्भ में किसी भी सत्कर्म व अनुष्ठान में, किसी भी कार्य में भी भगवान गणपति का स्मरण, उनका विधिवत पूजन किया जाता है। इनकी पूजा के बिना कोई भी मांगलिक कार्य शुरू नहीं किया जाता।
शिवजी, विष्णुजी, दुर्गाजी, सूर्यदेव के साथ-साथ गणेश जी का नाम हिन्दू धर्म के पांच प्रमुख देवों में शामिल है। शिवगणों और देवगणों के स्वामी होने के कारण इन्हें 'गणेशÓ कहते हैं।
श्री गणेश जी के बारह प्रसिद्ध नाम शास्त्रों में बताए गए हैं : सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्ण, लम्बोदर, विकट, विघ्नविनाशन, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र व गजानन।
गणेश जी ने महाभारत का लेखन-कार्य भी किया था। भगवान वेदव्यास जब महाभारत की रचना का विचार कर चुके तो उन्हें उसे लिखवाने की चिंता हुई। ब्रह्माजी ने उनसे कहा था कि यह कार्य गणेश जी से करवाया जाए।
बनाएं खास व्यंजन
भगवान श्री गणेश का प्रिय व्यंजन है मोदक, इसलिए गणेश चतुर्थी में गणपति को इसका भोग अवश्य लगाना चाहिए। जानिए गणपति के प्रिय मोदक को बनाने की विधि :
दो कप चावल का आटा, २ छोटे चम्मच घी या तेल, २ चुटकी नमक, २ कप पानी। ये आइटम बाहरी कवर के लिए हैं।
भरावन की सामग्री में २ कप ताजा नारियल (कद्दूकस किया हुआ),छोटा चम्मच इलायची पाउडर, १ कप गुड़ (कद्दूकस किया हुआ)।
मोदक का बाहरी कवर बनाने के लिए एक बड़े बर्तन में पानी लें और इसमें घी और नमक डाल कर उबाल लें। जब पानी उबलने लगे तो
चावल का आटा धीरे-धीरे करके इसमें डालें और मिश्रण को लगातार चलाते रहें। गैस से उतार लें और ढक्कन से ढंक कर 5-6 मिनट के लिए
रख दें। जब मिश्रण हल्का गर्म हो तभी हाथों में घी लगाकर आटे की तरह गूंथ लें।
भरावन के लिए कड़ाही में गुड़ और नारियल डालकर गर्म करें। जब गुड़ पिघल जाएं, तो गैस कम कर दें और मिश्रण को सूखने दें। मिश्रण को ज्यादा न सुखाएं नहीं तो यह टाइट हो जाएगा। इसमें इलायची पाउडर डालें और अच्छे से मिलाएं। अब इसे ठंडा होने दें।
मोदक बनाने के लिए चावल के आटे की लोइयां बना लें। हर एक लोइयों को गोल करें और इन्हें छोटी पूरी की तरह बेल लें। अब इसमें एक
चम्मच भरावन डालें। इन्हें अंगूठे और उंगलियों की मदद से मोड़ दें और ऊपर की तरफ से गोल घुमाते हुए बंद कर दें। जब सब मोदक बन जाएं तो स्टीम करने वाला एक बर्तन लें और उसमें पानी डालकर गर्म करें। इसमें मोदक डालें और 12 से 15 मिनट तक के लिए पका लें।
पकने के बाद मोदक काफी चमकदार दिखने लगेंगे। इस गणेश चतुर्थी के लिए आपके मोदक बनकर तैयार हैं। मोदक को गणेश जी को प्रसाद
के रूप में अर्पित करें।